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Showing posts from May, 2021

झिलमिलाती रोशनी की कर दूं तुम पर बौछार

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कैद कर लेते खुबसूरती को काश तो कर देते हम अमावस्य में झिलमिलाती रोशनी की बरसात काश ये निगाहें तुम तक पहुंच पाती तो हम कर पाते जी भर तुम्हारा दीदार हो जाते तब हम समुद्र के भी पार जब करा देते तुम पानी में  बन कर छवि खुद का दीदार झिलमिल झिलमिल सी देखो आ गई फुहार  कुछ ना आ रहा नजर  बस आ रही है तुम्हारी याद झिलमिलाती रोशनी अब जा तू  समुद्र के पार, कर दे उन भी प्रेम की बौछार।।  प्रिया  ❤️✍️

बालमन का सपना

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माँ, मैंने कल सपना देखा। सूरज के कांँधे पर चढ़कर भोर - किरन का डेरा देखा, माँ ,मैंने कल सपना देखा। तितली के संग उड़ते उड़ते फूलों को बहुतेरा देखा, माँ मैंने कल सपना देखा। नदियों के संग बहते- बहते सागर भीतर मोती देखा, माँ ,मैंने कल सपना देखा। चंदा  के संग चलते -चलते अटल खड़ा ध्रुव तारा देखा, माँ ,मैंने कल सपना देखा। सूरज, सागर, तितली, नदिया, चंदा से भी प्यारा देखा, दोनों बाँहों को फैलाए तेरा हँसता चेहरा देखा माँ मैंने कल सपना देखा।                                 मीनू 'सुधा'                            ‌‌  स्वरचित                  पूर्णतया मौलिक

गर्मी की छुट्टियां

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मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती  आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती मामा मामी का लाड़ और नानी की कहानी है होती मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती मां के पास मामाजी की चिट्ठी आती थी कि अमुक तारीख को आएंगे लिवाने तुम  कर लेना तैयारी बस से उतरते ही, तांगे में बैठने की जल्दी थी होती मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती कभी अश्टेचंगे की कौड़ी खेलते तो कभी राजा,मंत्री,चोर,सिपाही, कभी ताश के पत्तों की बाज़ी थी होती मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती  शाम को भैया दीदी संग, मेले को जाना ऊँचे झूले पर बैठके डर से चिल्लाना हर शाम नर्मदाजी के घाट पर ही थी बीता करती मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती रात में छत पर खुली हवा में बिस्तर होते थे गद्दे बिछाके सारे सब साथ मे सोते थे कभी चिढ़ाना,कभी लड़ाई,कभी मस्ती थी होती मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती ✍🏻प्रीति ताम्रकार        जबलपुर

मोह

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रामू अपनी पत्नी  के साथ बड़े अभाव की  जिंदगी गुजार रहा था। पत्नी को ईश्वर में कोई आस्था नहीं थी,जबकि रामू ईश्वर का महान भक्त था,वह  अभाव में भी लोगों कि मदद करता,अतिथियों का सत्कार करता । एक बार गांव के बाहर एक सन्यासी ने आश्रम बनाया।रामू उनकी सेवा खातिर में लग गया। सन्यासी बहुत प्रसन्न हुए।एक दिन प्रवचन में उन्होंने ग्रामीणों से कहा,यह दुनिया मोह माया है,सब अपने अपने स्वार्थ से जुड़े हैं। रामू कुछ व्यथित हुआ ,उसने सन्यासी से कहा_,"गुरुजी ऐसा नहीं है ,मेरी पत्नी मुझसे बहुत प्यार करती है,मेरे बगैर वह रह ही नहीं सकती।" सन्यासी हंसने लगे ,उन्होंने कहा_ चलो परीक्षा ले लेते हैं। उन्होंने रामू के कान में कुछ कहा,उसके बाद रामू घर चला गया। उस दिन रामू बहुत खुश था,पत्नी से उसने कहा कि,आज विभिन्न प्रकार में स्वादिष्ट भोजन बना दो ,जी भर के खाऊंगा। पत्नी ने बड़े मनोयोग से खाना बनाया। खुशबू पूरे घर में फ़ैल रही थी,अचानक रामू के पेट में दर्द  हुआ और वह दर्द से छटपटाने लगा ,और थोड़ी देर में उसकी इहलीला समाप्त हो गई। पत्नी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह दहाड़े मार कर रोए...

अग्निपरीक्षा

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*************** अग्निपरीक्षा सा जीवन है कांटों पर चलना पड़ता है, पुरुष प्रधान इस समाज में हर महिला को सहना पड़ता है। नही झुकी थी मातु सती खोया अपने प्रियतम शिव को, अपने सतीत्व की शक्ति से फिर जला दिया था निज तन को। पृथक हुई न शिव से शक्ति अग्निपरीक्षा दे डाली, तपा दिया निज आत्मा को तब बन कर आयी हिम की लाली। थी अग्निपरीक्षा सीता माँ की जब श्री राघव ने आदेश दिया, धरा,गगन,वानर मंडल सब साक्षी थे जब स्व को भस्मीभूत किया। लौकिक कलंक प्रचंड बने अग्नि में जल कर चूर हुए, रह गई अधूरी बो अग्निपरीक्षा जब फिर सतीत्व पर सवाल उठे। कुरुवंश में जिसका अपमान हुआ बो नारी नही पंचकन्या थी, बो वस्त्र हरण की बो व्यथा किसी अग्निपरीक्षा से कम न थी। बो सत्य नही कहलाता है रक्षा न करें जो अबला की, गुरु,(कृपाचार्य) द्रोण,भीष्म,धृतराष्ट्र सहित सबकी आंखों में पट्टी थी। पाला है अकेले पुत्रों को शकुंतला और यशोधरा ने, कर्तव्य धर्म पर रही अडिग फिर मान बढाया पुत्रों ने। लांघी जब चौखट नारी ने तो अपवादों को सहना पड़ता है पुरुष प्रधान इस समाज में क्यों महिलाओं को झुकना पड़ता है।। (स्वरचित एवं मौलिक)       ...

बंधन

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कर श्रृंगार खड़ी दरवाजे कर प्रीतम की आस में लगा महावर बजते पायल यौवन के उल्लास में पीहर में उड़ती चिड़िया सी बंधन बंधी उदास सी बेटी बनती बन चिड़िया जो रहती आस पास में उड़ी गगन में नील व्योम में बंधी बंधन की श्वास में  संध्या पंवार राजस्थान

सब कुछ खुला सा है,

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सब कुछ खुला सा है, मगर उन्हें राज नजर आता है, मेरी हर खामोशी में, उन्हें अलग अंदाज नजर आता है। हम चाह कर भी, दूर ही रहे उनसे, इन दूरियों में भी , उन्हें प्यार नजर आता है। मंजिल की चाह में,मुसाफिर बना रहा, मेरे इन रास्तों में, उन्हें संसार नजर आता है। चेहरे की मासूमियत,  आज भी वही है, लेकिन उन्हें तो बस,किरदार नजर आता है। खेलते भी वही है, जीतते भी वही, जिंदगी के हर मोड़ पर, उन्हें बस 'चाल' नजर आता है। जिद्द उनकी है,मुझे अपना बनाने की, इस जिद में मुझे, गैरत का इंसान नजर आता है, वो मुझे समझते है,मैं उन्हें समझता हूँ, फिर भी सब कुछ अनजान नजर आता है। सब कुछ खुला सा है....................               सुशील पांडेय 

चन्द दिन का सुख

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बहुत गरीबी में पली बड़ी थी बो मेरे हिसाब से बारह साल इतनी ही उम्र थी उसकी इन बारह सालो में शायद बारह दिन पेट भर खाना खाया हो उसने । अभी नया मकान खरीद कर हम गाँव से यहाँ शिफ्ट हुये थे।बाहर निकलना भी कम हो पाता था धीरे धीरे जान पहचान होने लगी। पास में ही एक घर था पता नही उस मकान में कितने लोग रहते थे हर बख्त शोर रहता। कभी कभी जब अकेला पन हाबी होता छत पर जाकर उन लोगों का शोर सुनकर मन भूल जाता पता  नही शोर क्यों था मैंने कभी जानने की कोशिश न की। फिर कुछ लोग उस घर से निकलकर दूसरे शहर काम करने चले गए पेट के लिए इंसान  कहि भी चला जाता है। कुछ दिन बाद पता चला बह कमजोर सी शामली लड़की कही गायब हो गई पूरे मोहल्ले में यह चर्चा का बिषय और औरतों का टाइम पास भी। जो नमाँ बाप कभी उसे पेट भर खाना न दे सके आज उसे ढूढने के लिये दिन रात एक किये हुए थे। कोई कहता किसी के साथ  भाग गई कोई कहता कोई औरत जादू करके अपने साथ ले गई। इन्हीं कयासों में एक महीना बीत गया। एक दिन अचानक शाम के समय अपनी माँ के साथ रिक्से पर बैठकर आ गई पर अब न तो बह कमजोर थी न शामली बल्कि पहले से ज्यादा सुंदर तन्दुरुस्त ...

बगीचा

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हां मालूम है मुझे वो बगीचा सूना है आज  मगर कोई तो आएगा टहलने के लिए  खुदा ने मुझे भी दी है माथे पे लकीरे  कोई तो आएगा मुझे झेलने के लिए  मेरी जान जब तुम इश्क़ का कारोबार करके बेज़ार हो जाओ  वापस मत आजाना दिलो से खेलने के लिए  नफरत की आंधी में फ़ना कर दूंगा  मेरे अहसासो से खेलने के लिए  ~ सौरभ सक्सेना अनजाने मुसाफिर के अनसुने अल्फाज

एक सफर ऐसा भी भाग ११

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मै प्रेम के बँधन मे बँधकर ससुराल पहुँच जाती हूँ। देव  - "फिर" प्रिति -  "फिर क्या ,  वो आगे बताने ही वाली थी एकाएक उसकी नजर घड़ी पर पड़ती है।  देव से कहती है ,वो ( प्रेम) आते ही होंगे कमरे मे , मै आपसे फिर कभी बात करूंँगी। देव - अभी क्यों नहीं ?? क्या हुआ?? प्रिति -  "नहीं देव अभी नही" ..अगर आ जाएँगें और देखेंगे मुझे ...." देव - " देखेंगे मुझे.. तो क्या होगा प्रिति जी बोलिऐ" प्रिति - "बिना कुछ जवाब दिए झट से फोन स्वीच आँफ करके रख देती है।" गर्मी छुट्टियों के बाद... प्रिति पहले की तरह स्कूल जाने के लिए बहुत जल्दी उठ जाती है, घर का सारा काम करके अवि को उठाती है क्योंकि आज से अवि भी स्कूल जाएगा अपनी मम्मी के साथ। प्रिति - "अवि उठो बेटा स्कूल जाना है न आपको" अवि - "मम्मा बहुत नीनी आ रही है" प्रिति - " उठो बेटा , माथे को सहला कर बड़े प्यार से  बोलती है ,नहीं तो स्कूल पहुँचने मे लेट हो जाएगें। अवि - "बिस्तर मे पड़े पड़े कभी दायीं ,कभी बायीं करवट लेकर सो जाता है।" प्रिति - "अवि उठो बच्चा कितने दिनो बा...

ये हवाएँ

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 ये हवाएँ....मन को चीरते हूए..... मेरी रूह को छेड़ रही है..... लगता है....छू कर तुम्हें..... मेरी ओर बड़ रही  है..... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... गंध तुम्हारा..... स्पर्श तुम्हारा..... एहसास एक नया सा साँसों में खोल रही है..... उलझ कर मेरे बालों से खेल रही है..... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... बार बार टकराकर मुझसे..... बस एक ही आवाज मेरे कानों में दे रही है..... भटकाकर मुझकोे मुझ से...... तुम्हारा नाम मेरे ध्यान में भर रही है.... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... कभी दायीं तरफ से.....तो कभी बायीं तरफ से..... अपने भँवर में मुझे ये कैद कर रही है..... आकर मेरे करीब तुम्हारी याद दे रही है..... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... एक मधुर स्वर में कोई..... नयी धुन पीरो रही है..... मेरी साँसों में समाकर...... प्रभु का आभास करा रही है...... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर किशन तुम्हारा नाम बह रही है.....           ...

सुकून की जिन्दगी

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जितनी भी दे, सुकून की,  जिंदगी दे, ऐ खुदा!  न करीब दे किसी के ज्यादा,  न दूर की जिंदगी दे,  ऐ खुदा!!  न पतझड़ सा, बना जीवन,  न सावन की कमी दे,  ऐ खुदा!  न गमों के दे बादल, न खुशी के,  आंधी दे,  ऐ खुदा!!  न समंदर की गहराई दे,  न आसमां सा ऊचाई दे,  हो जाऊँ रूबरू खुद से, बस,  इतनी सी जिंदगी दे,  ऐ खुदा!!  जितनी भी दे सुकून की जिंदगी दे,  ऐ खुदा!!  श्वेता कर्ण

विश्व तंबाकू निषेध दिवस

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पावन पवित्र शरीर तुम्हारा , क्यों नशे की आदत पालते हो । सिगरेट बीड़ी का धुआं उड़ा , अपनी शान बखारते  हो । पावन पवित्र शरीर तुम्हारा।। कहते हो चिंता ने घेरा , खुश हूं आज जन्मदिन तुम्हारा । मौसम है सुहाना, चलो गाय कोई तराना,  चलो आओ दो पैग लगा लेते हैं ।  मिल जाए कोई बहाना ।  पावन पवित्र शरीर तुम्हारा  गुटखा ,जर्दा ,पान मसाला खाते हो ,  कैंसर जैसी बीमारी लाते हो ।  गाल गलाते ,गुटखा खाकर ,  दारू पीकर करते लीवर ,किडनी खराब ।  जागो ए मानव तुम जागो ,  क्यों करते अत्याचार अपने साथ।  पावन पवित्र शरीर तुम्हारा , क्य इसमें तुम जहर घोलते ।  घरवाले जब हो जाए परेशान,   जां पर जब आ जाए बात ।   छोड़ो बीड़ी ,तंबाकू ,शराब,    गांजा ,सुल्फा, गुटका यार ।    तुम हो ईश्वरीय संतान ,    क्या इनका काम तुम्हारे पास।।                    दिल की कलम से                    मधु अरोड़ा         ...

खामोशी

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खामोश जिंदगी है  खामोश है जमाना! अरे मुझको मेरे प्यारो जरा कुछ तो तुम बताना!  बच्चा भी गुमशुम है बचपन कहाँ  बताना । माता की आँखे चुप है बेटो जरा बताना । हर गाँव हर गली में  गुम सुम है दाना दाना । पत्नी भी बोलती थी  पर चुप है क्यू बताना । गुड़ियों की इस जमी पर कमी क्यू हुई बताना। भाई का भाई सब है पर साथी क्यू बनाना । जिंदा है जिंदगी में खामोश क्यू जमाना । लाखों थी ख्वाइशें पर आज  चुपचाप है जमाना । संध्या पंवार

कविता

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हा मैं कविता लिख रही थी। हा मैं कविता लिख रही थी।। बैठी थी घर की छत पर , आसमाँ को देख कर तारे गिन रही थी। अतीत और वर्तमान के ख्यालों से परे, भविष्य की सुनहरी  कल्पना कर रही  थी।। हा मैं कबिता........ अचानक ही मन में भाव आया, शब्द और व्याकरण का नया रूप पाया। अलंकारो की परिभाषा में, शब्दों के मोती पिरो रही रही थी।। हा मैं कबिता............ जो अश्रु बन कर नेत्र से, निकले करुण रस है वही। प्रेम और श्रंगार रस भी, है  हृदय  के  भाव   ही ।। कल्पनाओं की लड़ी ये, पन्नो पर उतर रही थी।। हा मैं कबिता  लिख रही थी। हा मैं कबिता लिख रही थी।। (स्वरचित एवं मौलिक) शीला द्विवेदी उरई जालौन  उत्तर प्रदेश

अहसास अकेलेपन की भाग ३

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मुझे याद आ रहा था कि बचपन में मैं एक बार एक  रंगीन मछली🐠 लेकर आया था, और मैने उसे एक जार में पानी डाल कर उसमें रख दिया था|फिर मैंने उसे खाने के लिए कुछ दिया, पर वो अनमनी सी घूमती रही, और उसने कुछ भी नहीं खाया|थोड़ी देर बाद में मैंने देखा वो पानी की सतह पर जाकर बैठ गई|अगले दिन मैंने देखा कि वो मछली🐠 पानी में उल्टी पडी़ हुई है|उस दिन के बाद मैं कभी भी मछली नहीं लेकर आया|मुझे यह किसी ने भी नहीं बताया था कि वो अकेले थी तो इसलिये मर गयी, अगर इसके साथ और भी मछलियाँ  होती तो वो बेचारी छोटी सी मछली न मरती| फिर मैंने सोचा! कि इस संसार में आदमी हो या या पेड़🌳 पौधे🌱 कोई भी अकेले नहीं रह सकते हैं। हर एक को साथ की जरूरत होती है| हमें भी अपने आसपास देखना चाहिए कि अगर कोई भी अकेला हो तो उसे साथ देकर उसे मुर्झाने से बचाएं, और अगर हम भी अकेले हैं तो किसी के साथ वक्त गुजारें और अपने को मुर्झाने से बचाऐं|क्योंकि अकेलापन संसार की सबसे बड़ी सजा है।  गमले को तो गमले के पास खींच कर किया जा सकता है, लेकिन इसांनो को चाहिए, कि वो अपने रिश्ते को सहेज कर रखें और उन्हें समेट कर रखें| अगर ...

दिल में उठा तूफान

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प्रेम लहरों ने दी है दिल में दस्तक क्षितिज पर दिलबर की यादों का पहरा है मैंने ओढ़ ली प्रेम की सतरंगी चूनरिया दिल के आसमां पर इंद्रधनुषी प्रेम रंग सुनहरा है दिल में उठा तूफान कब ठहरा है दिल की गहराई में और भी गहरा गहरा है  गहरा गहरा है।। सनम के दीदार की खातिर लगता है चांद भी आसमां से आज धरा पर उतरा है सिमट गया हूं मैं भी छुईमुई सा प्रेम की किरणों संग दिल में हुआ नया सवेरा है दिल में उठा तूफान कब ठहरा है दिल की गहराई में और भी गहरा गहरा है गहरा गहरा है।। प्रेम धुन में मचला मन  गुनगुना रहा प्यार के गीत मन का भंवरा है महक रहा है तन बदन महबूबा के केशों में जड़ा सुगंधित कस्तूरी गजरा है दिल में उठा तूफान कब ठहरा है दिल की गहराई में और भी गहरा गहरा है गहरा गहरा है।। उमड़ रहा है तूफान सीने में कजरारे नयन कोमल कपोल वो हूर परी दिल की अप्सरा है कहो कैसे बताएं जनाब दिल में उठा जज़्बातों का उफान रग रग में पसरा है बता ए पिंटू दिल में उठा तूफान कब ठहरा है दिल की गहराई में और भी गहरा गहरा है गहरा गहरा है।। पिंटू कुमावत'श्याम दिवाना'🙏🙏💐💐

वर्दी की ताकत

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क्या कर रही हो माँ, "कूछ नही " तू सोया नही ,नही नींद नहीं आ रही आज मुझे भी पापा की याद आ रही है, पर तुम रोज रात को पापा के कपड़े,उनकी तस्वीर को ही एक नजर देखती रहती हो । अरे पगले मै अपने वीर शहीद पति को रोज मेहसूस करती हू उनसे बाते करती हू ,पता हैं तेरे पापा रोज क्या कहते है। क्या! !!!!!!!!!!!!!           !!!!     मेरे दीपू का ख्याल रखना और उसको मेरी तरह एक वीर सैनिक बनना। मै भी हा बोल देती हू। तू ये वर्दी कहा ले के जा रहा है,,,,रुको माँ मै आता हू। देखो कैसा लग रहा हू ,,,अरे वाह बस वर्दी ढीली हो है दीपू सर । ये कैसा शोर है दीपू , चल बाहर ,माँ ये तो कही आग लगी है ,(दोनो दौड़ के जाते हैं ) पता चला कि भैसो  का छोटा सा खटाल है  वहाँ कीसी कारणवश आग लग गई हैं  ,चारों तरफ हाहाकार मची है सब आग बुझाने में लगे है,दीपू भी आग को बुझाने मे सबकी सहायता करने लगा ,  आग कम होने का नाम नहि ले रही थी ,दीपू बोला ऐसे नही होगा सब अपने अपने घरों से पाईप लाए और बाहर वाले नलो में लगा कर काम आसानी से हो सकता है सबने वैसा ही किया। दीपू की नजर...

मन चिंतन

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मन आज बहुत व्यथित है, स्वयं से चिंतित है.......। कैसे कहूँ प्रसन्न हूँ, सत्य ये असत्य है.....। मन आज बहुत व्यथित है।                 उपेक्षाओं के ज़हान में,                 सहनशीलता के मुस्कान में.....।                 आत्मा बहुत पीड़ित है,    मन आज बहुत व्यथित है....।                  मन देता स्वयं को आस,                   मत हो तू,उदास  ना कोई तुमसे भिन्न, सब है यहाँ प्रश्नचिन्ह..............।            मन आज बहुत व्यथित है..।                             ऋचा कर्ण✍✍                                         

चिंटू जी का प्यार-हास्य कविता

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कॉलेज में जब लिया दाखिला निकले स्कूल पढ़के हर लड़की को देखकर दिल चिन्टू जी का धड़के एक न्यू एडमिशन प्रिंसी ने देखा उसको पलटकर  थोड़ी सी शरमाई फिर चली गई मुस्काकर इसके बाद तो पूछो न चिंटू जी का हाल सोते जागते रहता बस प्रिंसी का ही खयाल मौका मिलते ही इक दिन  चिंटू ने उसको किया प्रपोज़ झुका के नज़रें प्रिंसी ने एक्सेप्ट किया रेड रोज़ अब तो दोनों क्लास के बाद कैंटीन में बैठे रहते और लेट नाइट में भी वाट्सएप पर बाते करते  एक दिन वो बोली होकर बहुत उदास फोन में बैलेंस खत्म हुआ अब कैसे करेंगे बात "फिक्र करो मत मैं हूँ न" बोले चिंटू जी स्टाइल से "पर डे थ्री-जीबी रिचार्ज" कराया  झटपट उसके मोबाइल में प्रेम डगर पर चलते चलते जाने कब बीत गये दिन सात याद रहे वन वीक एनिवर्सरी सो प्रिंसी ने मांगी सौगात चिंटू जी भी सच्चे आशिक पूरा दिन किया प्यार के नाम मूवी देखी,पिज़्ज़ा खिलाया ड्रेस दिलाई सोचे बिन दाम जेब हो गई ढीली उसकी प्यार को यादगार बनाते पास के पैसे खत्म हुए सब महीने की बीस तारीख आते बीत रहे थे दोनों के दिन बाबू शोना करते करते यारों से ले उधार चिंटू  जोमैटो का बिल पे करते लेक...

तूफान जो उठा

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तूफान जो उठा तिश्नगी का जिन्दगी के मायने बदल गये, चिन्ता जो हुयी भविष्य की जीने के तरीके बदल गये, आँखें जो दूरदर्शी हुयी हमसफर हौले से बदल गये, लगा जिसको भी अब ये न रूकेगा अचानक उसके विचार बदल गये, स्वीकार न सके लोग अलगाव को कहते रहे,इसके तो तराने बदल गये, कर भरोसा वो लगा रहा खुद पर जग में जाने कितने जिगरी बदल गये, हुआ असफल और गिरा भी बहुत जमाने के तो जैसे अरमाँ सफल भये, उठा, और शक्ति इकट्ठा की नकारात्मक विचार खुद निकल गये, इस बार जो तबियत से मारा तीर सफलता के पैमाने बदल गये, लहरा चुका था वो परचम अपना लोग भी फिर हौले से बदल गये, विश्वास हमें भी इस पर खूब था कहते हुये, उसी में आकर मिल गये, ये उगते सूरज की सलामी का है जग अंधेरी रातों की मेहनत सब भूल गये, स्वीकारते हैं हौले से सब चमक उसकी जो हालातों से लड़कर,उनकों बदल गये....। स्वरचित व मौलिक✍ सुमित सिंह पवार "पवार" उत्तर प्रदेश पुलिस आगरा

अहसास अकेलेपन की भाग २

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वो  मुस्कुराते हुए बोली...हाँ! अगर पौधे🎋 अकेले हो तो सूख जातें हैं, और अगर इन्हें भी दूसरे पौधे🌿 के पास कर दें, तो ये दूसरे पौधे🎋 का साथ पा कर फिर से हरे हो जातें हैं, और लहलहा उठेगें "क्योंकि ये भी अकेलापन महसूस करते हैं| मीरा बोल रही थी...और मैं सुन रहा था... कि क्या सच में पौधे🎋 अकेले में सूख जातें हैं? मै वैसे पहली बार ऐसा सुन रहा था|फिर मैं सोच रहा था कि सच में पौधे को पौधे का साथ चाहिए होता है?  मीरा ने गमला खिसका कर दूसरे गमले के साथ कर दिया था,, और वो बहुत खुश हो गई थी|मैं उस गमले को देखते हुए, किसी सोच में डूब गया| एक एक करके पुरानी तस्वीरें मेरी आँखों के सामने आ रही थी|कि मेरी माँ के जाने के बाद में पिता जी कैसे एक ही रात में बूढ़े हो गये थे| हालांकि माँ के जाने के बाद वो 16 साल तक रहे, लेकिन बिल्कुल सूखे पौधे🎋 की तरह से|माँ के होते, मैंने कभी भी उन्हें उदास नहीं देखा था|वो हमारे साथ हमारी ही तरह रहते थे,, लेकिन मैंने उन्हें रातों को सुबकते हुए  कई बार देखा था| मीरा भी कह रही थी,,"कि पौधे🎋 सारी रात को अकेले सुबकते है|" और तुमने यह तो पढा़ ही होगा,...

भटकती रूह भाग २

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गतांक से आगे शरबत पीने के बाद, हम 1832 के भारत में पहुंच गए,जहां आज़ादी के लिए कुछ लोग  बंद कमरे में सलाह करते दिख रहे थे,उनकी फुसफुसाहट बता रही थी , कि  किसी जोरदार हमले की तैयारी की जा रही। दो जुड़वां भाई दिख रहे थे, _,जो कह रहे थे आज ",या तो आर या पार,"।आज अंग्रेज़ो के छक्के छुड़ा कर आएंगे या शहीद हो कर आएंगे। फिर सब जय देवड़ी मां, कह   निकल पड़ते हैं। हम देख रहे थे ,बहुत भयंकर युद्ध हुआ ,अंग्रेज़ भाग रहे थे,वो जंगल की भौगोलिक स्थिति समझ नहीं पा रहे थे। और ये क्या?? कुछ अंग्रेज़ राजा जगतपाल के पास पहुंचे हुए हैं,उनको लुभावने प्रस्ताव दे रहे। राजा ने उनके लिए विदेशी शराब और मनोरंजन के साधन पेश किए,साथ साथ ,मदद का आश्वासन। अरे ये क्या??? राजा तो गद्दार निकल गया।हमारे मुंह से निकला ,उस व्यक्ति ने हमें घूर कर देखा और कहा  _हां। फिर राजा ने गुप्तचर भेज, दोनों भाइयों का पता अंग्रेज़ हुक्मरानों को दिया।और फिर उन्हें घेर कर मार दिया जाता है। तभी हमें हमारे पास बैठे ,जैसा एक आदमी दिखता है,वह बहुत गुस्से में दिख रहा था। उसके आस पास काफी लोग इकट्ठा थे,जो उसे समझ...

निर्भीक पत्रकारिता

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हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹🌹🙏🙏🙏      निर्भीक पत्रकारिता करते अपना कर्तव्य निष्पक्ष रहकर। देते सच्ची सूचनाएं जान को संकट में  डालकर। सामना करना पड़ता है अक्सर लोगों की कड़वी बातों की। दिन रात एक करके करते रहते बाते देश के हित की । आपके लिए सभी समान अमीर गरीब ऊँच नीच, जाति धर्म मज़हब से परे आपलोगों का व्यक्तित्व। डटे रहते भयंकर आंधी ,तूफानों में। डरते नहीं किसी नेता या अफसरानों से। भोली जनता फँस जाती इनकी चिकनी चुपड़ी बातों से। आप सूचना के माध्यम से सही वस्तुस्थिति से अवगत कराते। कोरोना के इस भीषण झंझावात में भी, डटकर हैं आप लोग ख़ड़े हुए। जान की परवाह किये बिना कुत्सित लोगों की करतूतों का पर्दाफ़ाश करते हुए। जितना भी आपसे बन पड़े,  उससे अधिक सेवाभाव करते हुए। दुनियाँ को आप लोगों ने कितना जागरूक बनाया। गाँवों कस्बों में भी सूचना का प्रकाश फ़ैलाया। नमन करती आपलोगों को हृदय से साभार। पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सभी सम्माननीय पत्रकार।🙏🙏 स्नेहलता पाण्डेय "स्नेह"✍️✍️ नई दिल्ली

मां का टाइपराइटर......?

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                    टाइपराइटर  हां  टाइपराइटर टाइपराइटर ही तो बन गयीं हैं  मां........... हम सब के लिए । मां की  अनकही बातों को, माँ के दिल में, छुपे दर्द को, हम सब भाई बहिन के हाव भाव में स्पष्ट......! देखा जा सकता है। मानो माँ ने प्यार से , अपनी ममता भरी नाज़ुक उँगलियों से टंकित कर दिये हों टक...टक....टक ....टक.... एक..... एक............ शब्द.। हमारे  दिल और  दिमाग़, हमारी पेशानियों.......  पर ।  स्पष्ट पढ़ी जा सकती है, उनके प्यार की अमिट छाप। सच मुच इंसानी टाइपराइटर बन  गयी  हैं  मेरी माँ........  वो करती हैं हमारी देखभाल उनकी  सेवा,  उनका ख़्याल और क्या हम कर पा रहे हैं ? किन रास्तों में, हम जा रहे हैं? क्या कभी हम  बन पाए ? टाइपराइटर.................? माँ  जैसा....................?  माँ  का  टाइप राइटर....... सर्वाधिकार सुरक्षित @भूपेंद्र चौहान “राज” 

आइये कभी

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चाय हो जाय एक साथ, दो गज की दूरी पर बैठकर, समझा जाए कि,        गुनगुना पानी पीकर        शरीर मे ठंडक है या नही? समझा जाए कि,       चेहरा छिपाकर रखने से,       आत्मीयता कम तो नही? समझा जाए कि,       जिंदगी के लिए,       कड़वा काढ़ा पी सकते है,       लेकिन क्या संबंध निभाने में,       कड़वी बाते बर्दास्त है कि नही? समझा जाए कि,      सामाजिक दूरी से,      संबंध वही है या बदल गए?      यदि वही है तो,      हकीकत में अपनापन गायब क्यो? आइये कभी चाय हो जाय...............

बीते यादों के झरोखों से अंतिम भाग

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समय के साथ बीती यादें भी पीछे छूट गयी। ...........मैं पापा की अंतिम इच्छा को पूरा करने में लग गयी।.....भगवान की दया और पापा के आशिर्वाद से मुझे बैंक में नोकरी मिल गयी।छोटा भाई आर्यन भी इंजीनियरिंग की तैयारी करने लगा। कुछ दिन बाद आर्यन  की भी नोकरी लग गयी।धीरे-धीरे सब ठीक हो गया ...... ............अब माँ भी हमे देख के खुश रहने लगी।             बदलते वक्त के साथ गुजरे हुए पल की यादें एक दिन......"अचानक".. ताजा हो गयी।   जब     मेरे एक रिश्तेदार  मेरे लिये शादी का रिश्ता       लेकर आये। और माँ से बोले अंजली के लिए एक बहुत ही अच्छा लड़का है नज़र में................       तो माँ बोली ठीक है ।बात आगे बढाइये अब उसकी उम्र भी हो गयी है शादी करने की............।                    एक दिन ऐसा आया कि मैं आकाश की  दुल्हन बन गयी । दिल के एक कोने में मानस की याद भी बसी थी। ****........... ...............               ...

सुबह का नजारा

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स-सूर्य की रश्मियों के संग वो सुबह का नजारा था। ब-वायु धीमी,व्योम निर्मल और वो नदी का किनारा था।। ह-हमारे उस गांव का दृश्य बड़ा ही अनुपम और प्यारा था। क- कुहू-कुहू   कोयल का  मधुर मधुर संगीत प्यारा था।। न-नृत्य करती मोर बारिस संग मदमस्त हो जाती थी। ज-जहां मैं स्वयं को प्रकृति से जुड़ा हुआ महसूस करती थी।। राहें बेशक पथरीली थी लेकिन प्रेम और अपने पन का संदेश देती थी। थ-था प्रेम आपस में सभी का ऐसा इक गांव हमारा था।। शीला द्विवेदी "अक्षरा

लफ्ज़ आईना है

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तेरे मेरे मन की बात बताते , कभी खुशी कभी गम दर्शाते।।  खुशी से भावविभोर चेहरा,  लफ्जों में खुशी दर्शाता चेहरा ।।  लफ्ज़ हैं आईना।।  दुख में आंखों के आंसू ,  मन की व्यथा बताते आंसू ।  लफ्ज़ तुम्हारा भाव दिखाते,   लफ्ज़ हैं आईना ।।   गुस्सातिरेक से बात    तुम्हारी बदल जाती,    मनोदशा तुम्हारी दिखलाते ।    लफ्ज़ हैं आईना ।।    कितना प्यार तुम्हारे दिल में,     प्यार को परिभाषित करते ।     प्यार का अतिरेक है बनते ,     लफ्ज़ है आईना।।      लफ्जों की क्या बात करो तुम ,      लफ्जों से शुरू बात है ।      लफ्ज़ परवरिश छलकाते ,      चरित्र का आईना बन जाते ।      लफ्जों की महिमा भारी       इनसे चलती दुनिया सारी ।      लफ्ज़ है आईना।।                  दिल की कलम से                  मधु...

हम होंगे कामयाब

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फिर से बहार आएगी, अपने भी शहर में। डरते हुए सब लोग फिर न होंगे  जी घर में।। कोरोना को हरा के होंगे कामयाब हम। मत सोचिए कब तक रहेंगे और कहर में।। आई है बैक्सीन इसे आप लगाओ। मानव के लिए, बन रही अमृत ये जहर में।। हिम्मत हमारी कामयाब हमको करेगी। बस हौसलों का साथ हो, हर एक पहर में।। फिर से सजेंगी गुमठियां, फिर चाट खाएंगें। फिर आएगी रौनक सभी दीवार ओ दर में।। दुनिया में  हमारी ही बैक्सीन छा गई। हम कामयाब हो गए दुनिया की नजर में।। रखिए बनाए हौसला, हिम्मत न हारिए। हमको मिलेगी कीर्ती कोरोना समर में।। स्वरचित , कीर्ती चौरसिया  जबलपुर (मध्य प्रदेश)

एहसास अकेलेपन का

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अभय की पत्नी मीरा ने कुछ दिन पहले सारे गमले 🏝छत पर रखवा दिये| फिर नर्सरी से पौधे🌱 मंगवाकर छत पर एक छोटा सा गार्डेन बनवा लिया|और नियमित रूप से उन्हें पानी देती,"और माली को बुलवा कर उसमें खाद वगैरह डलवा देती|" शुरू शुरू में तो मुझे उसकी बातों पर हसी आती थी, "पर फिर मैंने सोचा कि चलो कहीं न कहीं तो उसका दिल लगा रहता है...एक दिन मैं छत पर गया तो हैरान हो गया... मैंने देखा कि कितने ही पौधों 🌱में फूल निकल आऐं हैं,, और निंबू के पौधे में दो निंबू लगें हुए हैं,, और मिर्चों के पौधे में दो तीन मिर्चें भी लगीं हुई हैं।  फिर छत पर ही बैठ गया... थोड़ी देर,,मैंने देखा कुछ दिन पहले मीरा ने एक बांस का पौधा🌱 लगाया था,, तो वो उस गमले को खींच कर दूसरे गमले के पास कर रही थी| .... पर गमला भारी होने के कारण खिसक नहीं रहा था...मैंने उससे कहा कि अरे! रहने दो ये वही पर,, अगर भारी है तो... इस पर वो बोली नहीं! ये बांस का पौधा🌱 सूख रहा है। मै उसकी बात सुनकर हस पडा़,, और मैने कहा कि अगर पौधा🌱 सूख रहा है तो इसे पानी दो, खाद दो... इसे दूसरे गमले🏝 के पास करने से क्या पौधा सही हो जाएगा?

ये लफ्ज आईने है

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लफ्ज कहने को तो शब्द है पर हकीकत मे ये आईना है  हमारे व्यक्तित्व का, लफ्ज आईना है हमारे संस्कार का, लफ्ज ही है जो रूबरू कराते है हमारे विचारो से, लफ्ज आईना है हमारे विचारो का! हमारे लफ्जो की  प्रकृति को देखकर ही पता चलता है हमारे स्वभाव का, हमारे लफ्ज ही जरिया है हमारी कटुता, मधुरता,सौम्यता, करूणा और दयावान प्रवृति से परिचय कराने का! इसलिए कहते है कि लफ्ज कम बोलो पर तोल के बोलो!                                                        श्वेता अरोड़ा

महंगाई

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आम आदमी पर पड़ी, मंहगाई की मार। पेट्रोल का दाम भी , अब हुआ सौ के पार।। बेलगाम बढ़ने लगा,  खाने वाला तेल। लाकडाउन से जिंदगी, बनी हुई है जेल।। हर दिन होते जा रहे, मंहगे आटा दाल। भाव देखकर हो गये, आज टमाटर लाल।। लौकी कद्दू भी कहें, हम भी हैं अनमोल। आम खास बन कर कहें, हमें सोच कर तोल।। भिंडी टिंडे हो गये, अब गरीब से दूर। बतलाओ सरकार अब, क्या खाए मजदूर।। हरा करेला कह रहा, करो न हमसे आस। हम भी अब से हो गये, धनवानों के खास।।  इस मंहगाई से, बढ़ा बजट का भार। भोजन भी मुश्किल हुआ, सोचो कुछ सरकार।। श्वेता कर्ण

झुनी की समझदारी

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माई '"तू मुनी का ब्याह ना कर  अभी तो वो कितनी छोटी सी है ,हम कछू ना कर सकत है झुनी थाहरे बापू सुनते कहा हैं । मेरी अकल ना रही अब की में थाहरे बापू को समझा सकू । कै बाते चल रही है माँ, छोरी मे  बा -----------......... बापू ,बापू  हा बोल ना कै बोल रही है,,,,,,,,,,,,,,,बापू तू मुनी का ब्याह ना कर अभी वो कितनी छोटी है ,उसे तो कछू करना भी नही आता ।।।।।।।।।।।।।।देख ब्याह तो होगा चाहे कछू हो जावे और दस साल की हो गई है मुनी।  तेरा भी तो हुआ था भूल गई कै,,,,,,,,,,,,,,नही बापू कैसे भूल सकत है हम ऊ दिन को दस साल मै ब्याह और  चौदह साल मे विधवा ।..........    का मिला हमको यही तो है ।अब तो हमार कछू न होवेगा ।पर बापू हम मुनी के साथ गलत ना होने देगे। .....समझा ले मुनी की  अंम्मा इसको ,जबान बड़ी हो गई है छोरी की कट जावेगी। आज कल तो कौनौ ना करत है इतनी छोटी उम्र मे ब्याह ,ऊ उउऊ लाल बत्ती पे आते है और सख्ती से मना कर देते है की ब्याह नही होगा ।झुनी को ये बात दिमाग में आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई । ब्याह की तयारी शुरु हो गई ,झुनी बस राह देख रही हैं ...

भककती रूह भाग १

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मैं  रांची विश्वविद्यालय  से पारलौकिक विज्ञान  पर प्रोफेसर शास्त्री की देख रेख में शोध कर रही थी। मैंने स्थानीय लोगों से राजा जगतपाल सिंह के किले के बारे में सुन रखा था, कि किले के आस पास एक साया घूमा करता है,और उनके किले पर हमेशा बिजली गिरा करती है। मैं और मेरे  साथी वहां जाकर देखने का फैसला करते हैं।मैंने अपने साथ किर्लियन 📷 कैमरा रख लिया। जो सायों कि तस्वीर लेने में सक्षम है। रांची से 18 किलोमीटर दूर पिठौरिया गांव है,वहीं यह किला 200 वर्ष पुराना है,जो अब जीर्ण शीर्ण हो चुका है, लगातार बिजली गिरने से। हमने ऑटो बुक कराया ,ऑटो ड्राइवर हमें काफी डरावनी कहानियां सुना डरा रहा था। किले से कुछ ही दूर पर उसने  हमें छोड़ दिया। किले  की इमारत बता रही थी कि किला कितना भव्य था,इसमें 100 कमरे थे।काफी समृद्धि थी राजा जगतपाल के राज्य में। लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी हुई कि यह किला शापित हो गया।  हमने उसके प्रवेश द्वार में ही कैमरा लगा दिया,ताकि कोई भी हरकत कैमरे में कैद हो सके।               और किले के अंदर हमने प्रवेश किय...

जीवन एक संघर्ष

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संघर्ष स्वभाव है जीव का संघर्ष से ही जीवन है हार गया जो संघर्ष से वह जीवन भी क्या जीवन है।। नौ मास मां के गर्भ में उल्टा लटका किया जीवन पाने की जिद में संघर्ष दुनिया से हो रूबरू  घूटनों के बल जीवन रेंगने लगा बार बार गिरकर संभला किया कदम उठाने की जिद में संघर्ष।। संघर्ष स्वभाव है जीव का संघर्ष से ही जीवन है हार गया जो संघर्ष से वह जीवन भी क्या जीवन है।। कदम उठा  जीवन चलने लगा किया दौड़ने की जिद में संघर्ष हंसते खेलते गिरते संभलते जीवन सरपट दौड़ने लगा ले किताब पाठशाला में जाने लगा किया पढ़कर सुनकर नया सिखने की जिद में संघर्ष।। संघर्ष स्वभाव है जीव का संघर्ष से ही जीवन है हार गया जो संघर्ष से वह जीवन भी क्या जीवन है।। पौथी पढ़ पंडित हुआ किया नौकरी पाने की जिद में संघर्ष नौकरी मिली हूर परी मिली मुस्कुराया जीवन ना मिली तो दर दर की ठोकरें खाने लगा किया खुद की पहचान बनाने की जिद में संघर्ष।। संघर्ष स्वभाव है जीव का संघर्ष से ही जीवन है हार गया जो संघर्ष से वह जीवन भी क्या जीवन है।। पहचान मिली नये रिश्ते बने किया अपनों का प्यार पाने की जिद में संघर्ष रूठने मनाने में ही बीत गया जीवन कि...

वृजवासी घनश्याम

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वृन्दावन की कृष्ण कन्हैया, ओ मोहन मुरली वाला....! तेरे हाथों की चमत्कार से वृजवासी हुए कृपाला....!! नंदलाल के शिशमहल का, तू एकलौता अभिमान....! आफ़त की भी मोल नहीं, जहाँ तू आये घनश्याम....!! नैनन की राहें देख रहीं है, तेरी राधा चितचोर....! कौन बजाये आकर बंशी, मेरी दिल की पटखोल....!! शंखनाद की गूँज उठी है, कंश की जय-जयकारी....! मृत्युलोक को कंश गये हैं, जय हो जय श्रीकृष्ण मुरारी....!!    लेखक:- विकास कुमार लाभ                    मधुबनी(बिहार)

दिल की तख्ती

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मेरे दिल की तख्ती पर प्रियतम नाम सिर्फ तुम्हारा है, आज मैं अगर खुश हूँ तो ये एहसान भी तुम्हारा है। थक जाती हूँ मैं तो उठाते हो तुम, रूठ जाती हूँ मैं तो मनाते हो तुम। नींद में भी हर वक्त ख्वाब बन कर आते हो तुम, तुम ही मेरी हर खुशी हो तुमसे ही जीवन हमारा है, आज अगर मैं खुश....... कभी सुबह का सूरज बन जाते हो, तो कभी चौथ का चांद बनते हो तुम। बेरंग सी मेरी जिंदगी के सतरंगी रंग हो तुम, मेरी श्वासों की रागिनी में राग सिर्फ तुम्हारा है, आज मैं अगर खुश...... मैं अविरल सी अतृप्त सी गंगा की धारा हूँ, प्रेम के अथाह महासागर हो तुम। छलकती है प्रेम की अमृत विंदु बो गागर हो तुम, प्रेम का ये अनुपम रूप तेरा न्यारा है, आज मैं अगर खुश हूँ तो ये एहसान भी तुम्हारा है। शीला द्विवेदी "अक्षरा"

विश्वास

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छोड दे सबकुछ ऐ बन्दे उस ऊपर वाले पर, अच्छा बुरा जो है करना,विश्वास रख उस जग के रखवाले पर! विश्वास रख ऐसा जैसा कि बालक ध्रुव ने किया,बनाया उसे पुत्र अपना,बिठाया अपनी गोद  मे, विश्वास हो मीरा जैसा,जिसका विष भी अमृत कर डाला! जब हो अंधकार चारो तरफ,ना आए कुछ नजर तो निश्चिंत होकर कदम बढा दे, अपना उस सृष्टि रचने वाले पर! छोड दे सबकुछ ऐ बन्दे ,उस ऊपर वाले पर!                                    श्वेता अरोडा

किस्मत

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तृषा घर से जैसे तैसे अपनी 5 माह की बच्ची निशि को लेकर निकल पड़ी,आज जैसे उसमें विरोध करने की हिम्मत आ गई थी ।वह परिस्थितियों से समझौता करते करते थक गई थी। वह रेलवे स्टेशन पर आकर बैठ गई, और किसी भी पहली ट्रेन का इंतजार करने लगी ।बस उसकी आंखों में आंसू भरे थे ,रात के लगभग 3:00 बज रहे थे उसको स्टेशन पर बैठे-बैठे लगभग 2 घंटे हो गए एक ट्रेन आई ,जो देहरादून जा रही थी ।तृषा उसी ट्रेन में बैठ गई, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह जाए तो जाए कहां जाए ?और वह क्या करेगी ,वह बिल्कुल दिशाशून्य सी हो गई थी ।    ।उसके सामने वाली सीट पर एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी थी, वह लगातार तृषा को ही देखे जा रही थी ।तृषा को देखते-देखते उन्हें काफी देर हो गई ,उन्होंने सुबह के नाश्ते के लिए बैग से खाना निकाला ,और कहा बेटा खाना खा लो! तृषा का ध्यान हटा वह बोली आप खाइए ,मेरे को तो भूख नहीं है ।उन्होंने कहा बेटा! तुम बहुत परेशान लग रही हो क्या तुम यह बच्चा चुरा कर लाई हो ?    तृषा लगभगचीखते हुए बोली,मैं क्यों बच्चा चुराऊंगी, यह मेरी बेटी है । बेटा मेरा यह मतलब नहीं था ।मुझे तो अभी तुम ही खुद बच...

अकेलापन

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अकेलेपन में मैं अक्सर प्यार के गीत गुनगुनाया करता हूं सुरीले गीतों की सिढीयां चढ़ ख्वाब संजोया करता हूं। अकेला होकर भी  मैं कहां अकेला होता हूं हंसना मुस्कुराना प्यार लूटाना ही सीखा मैंने ना कभी मैं रोता हूं ख्वाबों की दुनिया सजा दिल्लगी के मैले में खोया रहता हूं अकेला होकर भी मैं कहां अकेला होता हूं। अकेला होकर भी मैं कहां अकेला होता हूं।। अकेलेपन में ख्वाबों में अक्सर आती है मखमली लिबास में महबूबा लपेटे हुए प्यार वो गुलाब की भिन्नी भिन्नी खुश्बू गजरे की महकती बयार उंगली के पोरों की मिठी छुअन जैसे हो मिठी कटार बिन छुए अधरों को अधरों से बरसती है मधुर प्रेम रस धार वो कातिल नजरें बंद आंखों से हुस्न का दीदार जल उठते हैं शोले दिल में लिए प्यार की अंगार जब अकेलेपन में ख्वाबों में अक्सर आती है वो दिलरूबा सज संवर कर सोलह श्रृंगार अंतर्मन में घुल जाती हैं होले होले छन छन छन छन  गुंजती पायल की झंकार मायूसी की जलती है होली बरसते हैं ओस के मोती दिल में लिए प्यार की फुहार भीग जाता हूं ऐसे जैसे दिल की सुखी जमीं पर छाई हो सावन बहार तन्हाई में प्रेम की नदियों से बहता है बस प्यार ही प्यार।। अ...

मां

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मां साक्षात माता भवानी की अवतार हैं  मां की ममता खत्म हो सकता नहीं क्योंकि वह तो  पहाड़ है   मां की ममता को पार कर सके यह असंभव है  क्योंकि मां की ममता अगम और अपार है। मां घर के सब के लिए हाजिर जवाब हैं  और अपने संतानों  के लिए वह तो नवाब है  दुनिया में जिसके पास भी मां हैं वह तो सबसे धनवान है  मेरे साथ भी मेरी मां है इसका हमें भी अभिमान है। हे ममतामई आपकी दी हुई जीवन आपके नाम करता हूं  हे जन्म देने वाली जनानी आपके लिए जीता और मरता हूं आपके लिए कुछ ना कर पाता हूं इसलिए सौ सौ बार क्षमा मांगता हैं  आप की छाया जीवन भर साथ रहे मैं यही चाहता हूं।  तुम्हारे सामने तुम्हारी संतान की हर गलती क्षम है  यह लिखते हुए मेरे दोनों आंखें नम है  हे मेरी मां  मेरी तरफ से आपको सौ बार नमन है  ममता को समेटे रखने का आपके पास बहुत बड़ा दामन है। मां के बारे में जितना लिखूं वह कम है  और मां का वर्णन कर सके किसकी लिखने में इतना दम है  मां पर कुछ विशेष लिख ना पाया इस बात का हमें गम है  पर क्या करूं शायद मेरी लेखनी में नह...