सब कुछ खुला सा है,



सब कुछ खुला सा है,
मगर उन्हें राज नजर आता है,
मेरी हर खामोशी में,
उन्हें अलग अंदाज नजर आता है।
हम चाह कर भी, दूर ही रहे उनसे,
इन दूरियों में भी ,
उन्हें प्यार नजर आता है।
मंजिल की चाह में,मुसाफिर बना रहा,
मेरे इन रास्तों में,
उन्हें संसार नजर आता है।
चेहरे की मासूमियत, 
आज भी वही है,
लेकिन उन्हें तो बस,किरदार नजर आता है।
खेलते भी वही है, जीतते भी वही,
जिंदगी के हर मोड़ पर,
उन्हें बस 'चाल' नजर आता है।
जिद्द उनकी है,मुझे अपना बनाने की,
इस जिद में मुझे,
गैरत का इंसान नजर आता है,
वो मुझे समझते है,मैं उन्हें समझता हूँ,
फिर भी सब कुछ अनजान नजर आता है।
सब कुछ खुला सा है....................
              सुशील पांडेय 

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