मोह


रामू अपनी पत्नी  के साथ बड़े अभाव की  जिंदगी गुजार रहा था। पत्नी को ईश्वर में कोई आस्था नहीं थी,जबकि रामू ईश्वर का महान भक्त था,वह  अभाव में भी लोगों कि मदद करता,अतिथियों का सत्कार करता ।

एक बार गांव के बाहर एक सन्यासी ने आश्रम बनाया।रामू उनकी सेवा खातिर में लग गया।
सन्यासी बहुत प्रसन्न हुए।एक दिन प्रवचन में उन्होंने ग्रामीणों से कहा,यह दुनिया मोह माया है,सब अपने अपने स्वार्थ से जुड़े हैं।

रामू कुछ व्यथित हुआ ,उसने सन्यासी से कहा_,"गुरुजी ऐसा नहीं है ,मेरी पत्नी मुझसे बहुत प्यार करती है,मेरे बगैर वह रह ही नहीं सकती।"
सन्यासी हंसने लगे ,उन्होंने कहा_ चलो परीक्षा ले लेते हैं।
उन्होंने रामू के कान में कुछ कहा,उसके बाद रामू घर चला गया।
उस दिन रामू बहुत खुश था,पत्नी से उसने कहा कि,आज विभिन्न प्रकार में स्वादिष्ट भोजन बना दो ,जी भर के खाऊंगा।

पत्नी ने बड़े मनोयोग से खाना बनाया। खुशबू पूरे घर में फ़ैल रही थी,अचानक रामू के पेट में दर्द  हुआ और वह दर्द से छटपटाने लगा ,और थोड़ी देर में उसकी इहलीला समाप्त हो गई।

पत्नी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह दहाड़े मार कर रोए या लजीज व्यंजन का समापन  अपने उदर में करे।

फिर उसने झट से फैसला किया,पहले भोजन ग्रहण कर लूं,ये भोजन की खुशबू लार ग्रंथि को सक्रिय किए हुए है,इनका सर्वप्रथम निवारण कर लूं।

उसने फटाफट दरवाजे की सांकल लगाई और थाली लगाई ,और स्वादिष्ट भोजन  जीमना शुरू कर दिया।
खाना खाती और बड़बड़ाते जाती ,इसी समय मरना था,ढंग से खा भी नहीं पा रही। 
झटपट खा,जल्दी से दरवाजे खिड़की की कुंडी खोली ,और जोर जोर से रोना शुरू किया।
भीड़ जुट गई,सभी उसे दिलासा देने लगे ।
तब तक सन्यासी अपने चेलों सहित वहां पहुंचे।
अन्तिम क्रियाकर्म की तैयारी शुरू हुई,सन्यासी ने मना कर दिया,उन्होंने सबसे कहा , _'ये मेरा शिष्य है,इसकी इसे अग्नि नहीं बल्कि इसे आश्रम के रीति रिवाजों से  दफनाया जाएगा ,और समाधि बनवाई जाएगी,और  ये सब मेरे शिष्य भली भांति कर देंगे।"
और पार्थिव शव आश्रम के पिछवाड़े ले जाया गया।
सन्यासी ने रामू की पत्नी से कहा_ ,तुम्हारे भरण पोषण की जिम्मेदारी आश्रम की होगी ,तुम निश्चिन्त रहो।
और वे वापस लौट गए।


जब सभी ग्रामवासी लौट गए,तब रामू उठ खड़ा हुआ,बड़ी मुश्किल से सन्यासी द्वारा सिखाए गए  योग की वजह से वह सांस रोकने में सफल हो पाया था।
उसने दुखी होकर कहा ,गुरुदेव मेरी पत्नी कैसे रह पाएगी।
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गुरुदेव ने कहा बस ,देखते रहो।
धीरे धीरे आश्रम की तरफ से रामू की पत्नी के लिए ,बहुत अच्छी अच्छी चीजें ,सूखे मेवे,अनाज उत्तम किस्म का भेजा जाने लगा,पत्नी खुश थी ,और रामू को लगता वो बहुत दुखी होगी।
एक महीना हो आया,गुरुजी ने रामू से कहा अब तुम भेष बदल अपनी पत्नी के घर जाकर भिक्षा ले आओ,और उसका मन टटोलना ,अगर वो दुखी हो तुम्हारे बिन तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।
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रामू बहुत खुश था ,भोर होते ही उसने भेष बदला ,और पहुंच गया अपने घर,पत्नी गुनगुनाती दरवाजा खोलती है ,भिक्षुक को देख एक बार दरवाज़ा बंद करने को सोचती है ,फिर कोई विचार उसे रोक देता है।

वह कुछ चावल लेकर आयी ,रामू ने कहा क्या पानी पिला सकती है,उसने कहा हां क्यों नहीं???
रामू ने आधा ग्लास पानी खत्म किया ,और फिर इधर उधर नजर दौड़ाई ,सवालिया निगाहों से पूछा,आपके पति नहीं नज़र आ रहे,आप अकेली रहती हैं क्या?
पत्नी ने कहा " हां ,अभी एक महीने पहले ही उनका देहांत हुआ।
रामू ने पूछा_"आपका भरण पोषण"
पत्नी ने कहा_ आश्रम से गुरुजी भिजवाते हैं।
अब रामू ने अगला सवाल दागा _ पति की कमी महसूस करती होंगी।

पत्नी ने कहा _ नहीं,वो रहते तो ,कभी भी इतनी अच्छी अच्छी चीज़े मयस्सर नहीं थी,दो जून का खाना बड़ी मुश्किल से मिलता था।
उनके चले जाने से बड़ा आराम हो गया,आश्रम से तरह तरह की सुस्वादु चीज़े मिल जाती है।मै बहुत खुश हूं।
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रामू निराश लौट आया,गुरु जी ने पूछा कहो क्या करना चाहते हो? मोह माया का त्याग या संसार की ओर वापस।

रामू ने गुरु के पैर पकड़ लिए और वह अब पूर्णतः ईश्वर को समर्पित हो गया।अब कोई शे शंका  शेष ना रही ।
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