एक सफर ऐसा भी भाग ११
मै प्रेम के बँधन मे बँधकर ससुराल पहुँच जाती हूँ।
देव - "फिर"
प्रिति - "फिर क्या , वो आगे बताने ही वाली थी एकाएक उसकी नजर घड़ी पर पड़ती है।
देव से कहती है ,वो ( प्रेम) आते ही होंगे कमरे मे , मै आपसे फिर कभी बात करूंँगी।
देव - अभी क्यों नहीं ?? क्या हुआ??
प्रिति - "नहीं देव अभी नही" ..अगर आ जाएँगें और देखेंगे मुझे ...."
देव - " देखेंगे मुझे.. तो क्या होगा प्रिति जी बोलिऐ"
प्रिति - "बिना कुछ जवाब दिए झट से फोन स्वीच आँफ करके रख देती है।"
गर्मी छुट्टियों के बाद...
प्रिति पहले की तरह स्कूल जाने के लिए बहुत जल्दी उठ जाती है, घर का सारा काम करके अवि को उठाती है क्योंकि आज से अवि भी स्कूल जाएगा अपनी मम्मी के साथ।
प्रिति - "अवि उठो बेटा स्कूल जाना है न आपको"
अवि - "मम्मा बहुत नीनी आ रही है"
प्रिति - " उठो बेटा , माथे को सहला कर बड़े प्यार से
बोलती है ,नहीं तो स्कूल पहुँचने मे लेट हो जाएगें।
अवि - "बिस्तर मे पड़े पड़े कभी दायीं ,कभी बायीं करवट लेकर सो जाता है।"
प्रिति - "अवि उठो बच्चा कितने दिनो बाद आज स्कूल मे न्यू- न्यू दोस्त मिलेंगे , गेम खिलाएगी मैम ,आपको नहीं खेलना , छोड़ो मै चली जाती हूँ आप सोते रहो।"
अवि - "अँगड़ाइयाँ तोड़ते हुए , मम्मा बाबू को गोदी लो न"
प्रिति - " प्यार से मुस्कुराते हुए उसे गोद मे लेती है , मुँह धुलवाकर मँजन करवाती है , फिर उसे नहालकर ,स्कूल ड्रेस पहनाकर ,गिलास से दूध पिलाकर ,कुल्ला कराकर , उसका टिफिन बैग मे डालती है उसके कँधो पर बैग टँगाकर , पानी की बोटल लेकर , उसका हाथ पकड़कर स्कूल के लिए निकल जाती है।"
आज प्रिति बहुत खुश थी , होगी भी क्यों नहीं ,काफी दिनो बाद वो अपनी सहेली शालू से जो मिलने वाली है।
स्कूल पहुँचते ही , अवि को प्रिति उसके क्लास मे छोड़कर आती है। उसे समझाते हुए कहती है बदमाशी मत करना अच्छे से पढाई करना, मैम की बात सुनना
रोना नही, ओके
अवि - "रूआंसा होकर , मम्मा नहीं जाओ न ,"
प्रिति - " अरे बेटा , मै स्कूल मे ही हूँ ,कही नहीं जा रही हूँ। आपको कोई दिक्कत होगी तो मुझे बुला लेना। मै झट से अपने राजा बेटा के पास आ जाऊँगी।"
प्रिति - अवि बेटा आपकी स्कूल की छुट्टी भी , मम्मा से जल्दी हो जाएगी ,आपको चाचू लेने आएंगे ,आप उनके साथ घर चले जाना।
प्रिति - "अवि के दोनो गालो को प्यार से चुमती है।
फिर कहती है जाओ अपने क्लास मे।"
अवि - "मुस्कुराते हुए बाय मम्मा।"
प्रिति - "बाय बच्चा"
प्रिति - अवि को छोड़कर वहाँ से सीधे स्टाफ रुम मे जाती है , अपना बैग टेबल मे रखकर सभी शिक्षको को शुप्रभात कहती है।
तब तक शालिनी भी आ जाती है एकदूसरे के चेहरे को देखकर दोनो के चेहरे पर चमक आ जाती है। दोनो एकदूसरे के गले मिलती है। और कहती है बहुत मिस किया तुम्हें।
प्रिति "मैंने भी "
घंटी बजते ही दोनो अपनी अपनी रेजिस्टर लेकर क्लासेज मे चली जाती है।
लंँच टाईम मे दोनो की नहीं ,बल्कि तीनो
की मुलाकात होती है अपने अपने लँच बाक्स के साथ।
शालिनी देव से बोलती है "सुबह.दिखाई नही दिए तुम?'
देव "हाँ आज थोड़ा लेट हो गया था"
शालिनी "पहले ही दिन लेट ..क्यों छुट्टीयो मे ज्यादा
सोने की आदत पड़ गई क्या"
देव "कल रात को नींद ही नहीं आई ,भोर मे नींद आई"
शालिनी "अच्छा..ये बात..कही वीणा जी से खटपट त़ो नहीं हो गई न "
देव "अरे नहीं बाबा"
देव "तुम बताओ तुमने क्या किया छुट्टीयो मे"
शालिनी "मै तो मायके चली गई थी।"
शालिनी "प्रिति तुमने, क्या ...किया ?"
प्रिति - 'मै क्या करती ,मै यही थी.
यूँ ही एकदूसरे से बाते करते करते ,यूँ ही समय बीतता जाता है।
६ महीने के बाद..
एक दिन प्रिति को प्रिंसिपल साहिबा आँफिस मे बुलाती है और "कहती है मै चाहती हूँ की आप आँफिस मे भी काम करे , अगर आप को सहुलियत हो तो। आपका नम्र वयवहार देखकर लगता है आप बखूबी पैरैन्टस को अच्छे से समझा पाएंगी। आपकी सैलेरी भी बढा दी जाएगी ।"
प्रिति "लेकिन मै कैसे करुंँगी , मुझे तो कम्प्यूटर भी चलाना अच्छे से याद नहीं।"
प्रिंसिपल साहिबा - "उसकी आप फिक्र मत करिऐ वो तो आपको देवेंद्र प्रसाद (देव) सर सिखा देंगे।"
प्रिति - मै आपको सोच कर बताती हूँ
प्रिंसिपल साहिबा - "ओके" जल्द बताईयेगा ।'
प्रिति - घर जाकर रात भर बहुत सोचती है फिर इस नतीजे पर पहुंँचती है की एकबार कोशिश कर के देखने मे हर्ज क्या है।
प्रिति स्कूल पहुँचकर शालिनी से मिलती है , प्रिंसिपल साहिबा के दिए हुए आँफर के बारे मे बताती है।
शालिनी प्रीति से कहती है" यह तो बहुत खुशी की बात है तुमने क्या सोचा है?? फिर खुद कहती है वैसे इसमें सोचने वाली भी बात किया हैं , तुम्हारी मदद देव कर देगा बोल देती हूंँ उसे।"
प्रीति - "मैंने उनको बोल दिया है आज लंँच टाइम मे जाकर के कोशिश करके देखूंँगी।"
शालिनी - "आज मुझे घर में काम है मैं आज हाफ टाइम में घर चली जाऊंँगी। नहीं तो मैं भी चलती तुम्हारे साथ आज ऑफिस।"
प्रीति - "तुम तो हमेशा मेरी मदद करती आई हो, कोई बात नहीं मैं कर लूंँगी।'
शालिनी "मुझे भरोसा ही नही , बल्कि यकीन है तुम पर ,तुम बहुत मेहनती और.समझदार हो जरूर कर लोगी , फिर तो देव है ही तुम्हारी मदद के लिए।"
प्रीति "तेरा यही विश्वास तो मुझे प्रेरणा देता हैं। लगता है भगवान को मुझ पर तरस आ गया था तभी तो तुम दोनो दोस्तो को मेरी जिंंदगी मे भेजा है।
शालिनी "हट पगली" "कुछ भी बोलती हो ..तरस खाकर नहीं ..अच्छे दोस्त और दोस्ती किस्मत वालो को मिलते है जैसे हम तीनो।"
यह कहकर.दोनों सहेलियां एक दूसरे की गले लगती है और अपनी अपनी क्लास में चली जाती है।
लंँच टाईम मे शालिनी घर चली जाती है। प्रिति आँफिस मे देव के पास जाती है।
वहाँ सोनिया मैम भी अपना काम कर रही होती है।
देव प्रिति को अपनी कुर्सी को छोड़कर उसे बैठने को कहता है।
प्रिति देव को देखने लग जाती है .। और कहती है मै कैसे बैठूं इस पर, उसे घबराहट सी होने लगती है।
देव - क्यों क्या हो गया ?? वो आँखो से आश्वासन देता है बैठने के लिए , प्रीति बैठ जाती है और माउस से पकड़ कर काम करने की कोशिश करती है,मगर जैसे ही माउस को पकड़ती है , माउस फिसल कर नीचे गिर जाता है।
वहांँ पर बैठी सोनिया मैम देखकर हंँसने लग जाती है कहती है हर काम हर किसी के बस का नहीं होता है।
प्रिति सोनिया को आंँखें तरेर कर देखती है, मगर कुछ कहती नहीं , थोड़ी देर स्क्रीन पर फाईलों को आगे पीछे करके देखती है । देव से कहती है बाद में आती हूँ कह कर उठकर चली जाती है।
क्रमशः..........
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