बगीचा
हां मालूम है मुझे वो बगीचा सूना है आज
मगर कोई तो आएगा टहलने के लिए
खुदा ने मुझे भी दी है माथे पे लकीरे
कोई तो आएगा मुझे झेलने के लिए
मेरी जान जब तुम इश्क़ का कारोबार करके बेज़ार हो जाओ
वापस मत आजाना दिलो से खेलने के लिए
नफरत की आंधी में फ़ना कर दूंगा
मेरे अहसासो से खेलने के लिए
~ सौरभ सक्सेना
अनजाने मुसाफिर के अनसुने अल्फाज
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