किस्मत
तृषा घर से जैसे तैसे अपनी 5 माह की बच्ची निशि को लेकर निकल पड़ी,आज जैसे उसमें विरोध करने की हिम्मत आ गई थी ।वह परिस्थितियों से समझौता करते करते थक गई थी। वह रेलवे स्टेशन पर आकर बैठ गई, और किसी भी पहली ट्रेन का इंतजार करने लगी ।बस उसकी आंखों में आंसू भरे थे ,रात के लगभग 3:00 बज रहे थे उसको स्टेशन पर बैठे-बैठे लगभग 2 घंटे हो गए एक ट्रेन आई ,जो देहरादून जा रही थी ।तृषा उसी ट्रेन में बैठ गई, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह जाए तो जाए कहां जाए ?और वह क्या करेगी ,वह बिल्कुल दिशाशून्य सी हो गई थी ।
।उसके सामने वाली सीट पर एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी थी, वह लगातार तृषा को ही देखे जा रही थी ।तृषा को देखते-देखते उन्हें काफी देर हो गई ,उन्होंने सुबह के नाश्ते के लिए बैग से खाना निकाला ,और कहा बेटा खाना खा लो! तृषा का ध्यान हटा वह बोली आप खाइए ,मेरे को तो भूख नहीं है ।उन्होंने कहा बेटा! तुम बहुत परेशान लग रही हो क्या तुम यह बच्चा चुरा कर लाई हो ?
तृषा लगभगचीखते हुए बोली,मैं क्यों बच्चा चुराऊंगी, यह मेरी बेटी है ।
बेटा मेरा यह मतलब नहीं था ।मुझे तो अभी तुम ही खुद बच्चा सी लग रही हो मुझे माफ कर दो ।और फिर यह कहकर उन्होंने तृषाके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा! तृषा तो जैसे सहानुभूति मिलते फफक फफक-फफक कर रो पड़ी ।वे उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरती रही। काफी देर रोनी के बाद तृषा का मन को शांत हुआ ।
तब आंटी ने कहा अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो तुम मुझसे अपनी परेशानी कह सकती हो ,तुम्हारा मन भी थोड़ा हल्का हो जाएगा ।और शायद तुम्हारी परेशानी का कोई हल भी मिल जाए ।
तृषा को तो जैसे उन आंटी पर विश्वास हो गया। और वह कहने लगी "जब मैं दसवीं कक्षा में थी तब मेरे माता-पिता का एक कार दुर्घटना में मर गए थे ।इसके बाद मुझे मेरी दादी ने पाला ,दादी के घर के पास ही एक रोमी नाम का लड़का रहता था ।वह मुझे कहता तो कुछ नहीं था ,जब मैं स्कूल जाती आती तो वह मेरे पीछे पीछे आगे पीछे आता जाता रहता, मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी। धीरे धीरे मैं भी उससे बातें करने लगी। मुझे रोमी अच्छा लगने लगा। दादी के घर भी आने लगा दादी को भी रोमी का व्यवहार पसंद आता था। दादी भी उसको अच्छा लड़का समझती थी ।मैं भी उससे प्यार करने लगी ।हम दोनों बात करते रहते , और एक दूजे का हाथ पकड़े घूमते रहते थे ।
एक दिन अचानक मेरी दादी का निधन हो गया ।मैं तो जैसे चारों तरफ से टूटी गई मुझे कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा था सब रिश्तेदार भी सांत्वना देकर अपने अपने घर चले गए।तब रोमी न मेरा बहुत ध्यान रखा है वह मुझे हर परेशानी से निकालने के लिए प्रयत्न करता मुझे पढ़ने के लिए भी प्रेरित करता उसने अपने स्कूल में मेरा दाखिला करवा दिया ।बस कहता रहता जब तुम 18 की हो जाओगी तब मैं तुमसे शादी कर लूंगा बस जैसे वह मेरे अट्ठारह के होने का इंतजार कर रहा था। जिस दिन मैं अट्ठारह की हुई उसी दिन उसने अपने माता-पिता की और कुछ सगे संबंधियों की उपस्थिति में मुझसे चर्च में शादी कर ली। मैं बहुत खुश थी
अब शादी के बाद उसके रंग रंग बदलने लगे। वह मुझे किसी से भी बात नहीं करने देता उसने मेरी पढ़ाई भी बंद करवा दी ।मैंने कहा मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, पर वह नहीं माना ।उसके माता-पिता ने भी उसे बहुत समझाया पर वह किसी की बात नहीं माना। वह मुझे किसी से बात नहीं करने देता था। मैं बिना उसकी मर्जी के घर की दहलीज भी नहीं लांघ सकती थी अब वह कुछ कमाने भी लगा था उसने अपने मां-बाप से अलग एक कमरा किराए पर ले लिया। वहां पर कुछ दिन तो सब ठीक रहा ।
लेकिन जब कुछ उसके मन का सा नहीं होता, तो वह मुझे मारपीटने लगा ।और अगले दिन ऐसा हो जाता था, जैसे कि कल कुछ हुआ ही नहीं ।मेरे लिए महंगे महंगे गिफ्ट लाता मेरा ध्यान रखता कभी मेरे लिए फूल लाता मुझे उसका व्यवहार कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।अचानक मुझे पता लगा कि मैं मां बनने वाली हूं मुझे लगा शायद मेरी परेशानी खतमहो जाएगी रोमी मेरा पहले से अधिक ध्यान रखने लगा था कुछ दिनों बाद हमारे घर में निशी आ गई और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खुशियों से भर दे वह मुझसेऔरनिशी से बहुत प्यार करते थे ।"
लेकिन कल रात वापस से उसके अंदर पता नहीं क्या परिवर्तन हुए मैं गहरी नींद में सो रही थी ,अचानक से निशी जोर जोर से रोने लगी ।मेरी आंख नहीं खुली वह निशी पर जोर जोर से चिल्लाने लगा उसने उसके मासूम गाल पर थप्पड़ जड़ दिए थप्पड़ की आवाज से मेरी अचानक से आंखें खुली ,मैंने जैसे-तैसे निशि को बचाया। मैंने देखा वह निशि को को मार रहा था मैंने उसको बचाया तो वह मुझे भी मारने लगा ।मैंने हिम्मत करके निशि को उठाया ,और चुप कराया पता नहीं मेरे अंदर कहां से हिम्मत आ गई ।कि मैंने रोमी को खींच कर बाथरूम में बंद कर दिया ।अपना और निशि का नजरूरी समान बैग में डाला ,और वहां से स्टेशन पर आ गई ।जाने को तो मैं दादी के घर भी जा सकती थी। लेकिन वह मुझे वहां से ढूंढ लेता, मैं निशी को कमजोर और बेबस नहीं बनाना चाहती। इसलिए मैं इसको लेकर स्टेशन पर आ गई इतने में आपबीती सुनाती रही। आंटी की आंखों से आंसू बहते रहे और वह मेरे को प्यार से सहलाती रही । उन्होंने गले लगाते हुए कहा तृषा परेशान मत हो ट्रेन रात को देहरादून पहुंचेगी ।और "तुम अब मेरे घर चल रही हो !"मेरे पति का भी कुछ समय पहले ही निधन हुआ है मैं बिल्कुल अकेली रहती हूं ,मेरे कोई संतान नहीं है
।.मेरे पति बहुत अच्छे स्वभाव के थे वह मुझे बहुत प्यार करते थे ।पर शायद संतान का सुख उस समय मेरे नसीब में नहीं था ,शायद इसीलिए ईश्वर ने तुम्हें मुझसे मिलाया है
तुम शांत हो जाओ और खाना खाओ ।मैं तुम्हारे बिना खाना नहीं खा पाऊंगी। यह कहकर उन्होंने निशी को मेरी गोद से ले लिया ।उसको प्यार करने लगी ।मुझसे बोली तुम मुझे आंटी नहीं मां कहोगी ,।उन्हें त्रिषा में अपनी बेटी दिखने लगी थी ।वह जिस ममता को तरस रही थी वह सब निशी पर लुटाना चाहती थी।निशी मुझे नानी कहेगी और तुम पढ़ना चाहती हो ना तो मैं तुम्हें पढाऊंगी जब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओगी ।तब तुम से ब्याज समेत सब पैसे वसूल लूंगी।
रोमी रोमी का क्या होगा वह तो मुझे तंग करेगा नहीं निशी सुबकते हुए बोली " मैं एक समाज सुधारक भी हूं और जो नारियों के अधिकार के कानून के खिलाफ आवाज उठाती हैं मैं उन्हें जानती हूं हम उनसे बात कर लेंगे अब तुम्हें रोमी से डरने की कोई जरूरत नहीं।"
तृषा को तो ऐसा लग रहा था जैसे उसे उसकी खोई हुई मां वापस मिल गई ।और वह वापस उनके सीने से लग कर रो पड़ी "अरे पगली क्यों रो रही है मैं हूं ना "!तृषा को तो अपने भाग्य पर यकीन ही नहीं हो रहा था अचानक से उसे इतनी खुशी मिल गई ..।वह एक बार फिर भगवान का धन्यवाद कर उठी ।।
धन्यवाद दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी अगर कोई त्रुटि हो तो आप मुझे बताएं ताकि मैं आगे उसको ठीक कर पाऊं।।
धन्यवाद
दिल की कलम से
मधु अरोड़ा
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