वृजवासी घनश्याम
वृन्दावन की कृष्ण कन्हैया,
ओ मोहन मुरली वाला....!
तेरे हाथों की चमत्कार से
वृजवासी हुए कृपाला....!!
नंदलाल के शिशमहल का,
तू एकलौता अभिमान....!
आफ़त की भी मोल नहीं,
जहाँ तू आये घनश्याम....!!
नैनन की राहें देख रहीं है,
तेरी राधा चितचोर....!
कौन बजाये आकर बंशी,
मेरी दिल की पटखोल....!!
शंखनाद की गूँज उठी है,
कंश की जय-जयकारी....!
मृत्युलोक को कंश गये हैं,
जय हो जय श्रीकृष्ण मुरारी....!!
लेखक:- विकास कुमार लाभ
मधुबनी(बिहार)
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