अग्निपरीक्षा
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अग्निपरीक्षा सा जीवन है कांटों पर चलना पड़ता है,
पुरुष प्रधान इस समाज में हर महिला को सहना पड़ता है।
नही झुकी थी मातु सती खोया अपने प्रियतम शिव को,
अपने सतीत्व की शक्ति से फिर जला दिया था निज तन को।
पृथक हुई न शिव से शक्ति अग्निपरीक्षा दे डाली,
तपा दिया निज आत्मा को तब बन कर आयी हिम की लाली।
थी अग्निपरीक्षा सीता माँ की जब श्री राघव ने आदेश दिया,
धरा,गगन,वानर मंडल सब साक्षी थे जब स्व को भस्मीभूत किया।
लौकिक कलंक प्रचंड बने अग्नि में जल कर चूर हुए,
रह गई अधूरी बो अग्निपरीक्षा जब फिर सतीत्व पर सवाल उठे।
कुरुवंश में जिसका अपमान हुआ बो नारी नही पंचकन्या थी,
बो वस्त्र हरण की बो व्यथा किसी अग्निपरीक्षा से कम न थी।
बो सत्य नही कहलाता है रक्षा न करें जो अबला की,
गुरु,(कृपाचार्य) द्रोण,भीष्म,धृतराष्ट्र सहित सबकी आंखों में पट्टी थी।
पाला है अकेले पुत्रों को शकुंतला और यशोधरा ने,
कर्तव्य धर्म पर रही अडिग फिर मान बढाया पुत्रों ने।
लांघी जब चौखट नारी ने तो अपवादों को सहना पड़ता है
पुरुष प्रधान इस समाज में क्यों महिलाओं को झुकना पड़ता है।।
(स्वरचित एवं मौलिक)
शीला द्विवेदी
जिला जालौन, उत्तर प्रदेश
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