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Showing posts from June, 2021

वो कहते हैं

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वो कहते हैं -: तेरे ना रहने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, जो प्यास लगती है एक ग्लास पानी खुद लेना पड़ता..😀 वो कहते हैं -: तेरे नहीं रहने पे मैं अच्छे- अच्छे खाना बनाता हूँ, सुबह बनाता हूँ तो शाम तक वही खाता हूँ......😀 वो कहते हैं -: तेरे नहीं रहने से सुकून रहता है, रात के 2 बजे तक टीवी खुला रहता है....…..😃 वो कहते हैं -: याद नहीं आती है तुम्हारी, फिर बोलते हैं घर की नहीं होती मुझसे सफाई आने की कर लो तैयारी......…😀 अब उन्हें क्या बताऊँ मैं ज्यादा, एक दूसरे के बिना हम हैं आधा.....😊☺ कुछ भी कह लो मैं हूँ इस घर की रानी, चाहे प्यार हो या परेशानी..........☺😊😀😃🤓😍                                     ऋचा कर्ण✍

डाक्टर मसीहा

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********* समर इमरजेंसी है , बहुत ही गंभीर हालत है जल्दी निकलो, डाक्टर रजनी की घबराई हुई आवाज सुन डाक्टर समर ने धीरज बंधाया, घबराओ मत मै पहुँच रहा हूँ,  एक नजर माँ पर डाली, वो चैन से सो रही थी,! माँ की तबियत अचानक ज्यादा खराब हो गयी, समर की तो जैसे जान निकल गयी थी, दीदी को फोन लगाया था, जीजा जी बोले, साले साहब आप डाक्टर है आप डर रहे है, जीजा जी, डाक्टर हूँ, भगवान नही, माँ को कुछ हो गया तो, मेरा क्या होगा, माँ के सिवा मेरा है कौन, आवाज भर्रा गयी थी! समर की,,,,  कल आता हूँ अलका को लेकर, आप खुद को सम्भालिए, और धैर्य रखिये सब ठीक होगा!  समर ने घडी पर नजर डाली,  गेट पर वेल बजी, दीदी होगी, वो गेट की ओर लपका, दीदी, अकेली थी!  उसने दीदी को गले लगा लिया, थैक्स दी, उसकी आँखे भर आयी, माँ अब कैसी है, अलका दी ने पूछा, आप आ गयी हो अब सब ठीक हो जायेगा,  साॅरी दी इमरजेंसी है रजनी का फोन आया था वो बहुत घबराई हुई थी!  आप सब सम्भाल लेना, मै आकर बात करता हूँ, बोलते हुए समर बाहर निकल गया,!  अलका माँ की ओर बढ गयी,!  डाक्टर समर इमरजेंसी रूम की ओर बढ गया, समर सर जल्द...

पेड़

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मैं तो हूँ ...... नन्हा - मुन्हा सा एक पेड़ ...... चाहता  हूँ थोड़ा पानी ....... थोड़ी देखरेख ....... बदले में तुमको ..... फल दूँगा , छाया दूँगा ..... प्राण वायु के बदले ...... तुमसे कुछ ना लूँगा ......         .........@ नेहा धामा " विजेता "

"हैप्पी डाक्टर्स डे"-डॉ.धरती के भगवान हैं

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              (डॉक्टर्स डे पर एक स्पेशल आलेख) *************************************** आज के भागदौड़ और अत्यंत व्यस्त जिंदगी में कोई भी इंसान शरीर से पूर्ण स्वस्थ्य और निरोगी जीवन नहीं जी पारहा है।सभी को कोई न कोई तकलीफ और रोग अवश्य है। इसका मुख्य कारण मानसिक रूक से परेशान रहना और संतुलित खानपान का ना होना,साथ ही साथ अनियमित दैनिक जीवन शैली का होना। यद्यपि की वर्तमान में कोरोना काल के कारण थोड़ा भागदौड़ कम जरूर है किंतु रोजी रोटी के ऊपर पड़े आर्थिक प्रभाव के कारण इंसान और भी ज्यादा चिंतायुक्त तथा अवसादग्रस्त है। कोई न कोई समस्या सभी के सामने मुँह फैलाये खड़ी है। ऐसे में कोई भी पूर्णतयः स्वस्थ्य रह ही नहीं सकता। किसान अगर धरती के हम सभी के अन्नदाता हैं तो डॉक्टर्स भी धरती के हमारे भगवान हैं। इन दोनों के बिना भी जीवन सुचारू रूप से नहीं चल सकता। हम अन्न के बिना तो कुछ दिन उपवास कर के भी जी सकते हैं किंतु शरीर में रोग लिए बीमार रह कर बिलकुल भी नहीं जी सकते हैं। ऐसे में चिकित्सकों का परामर्श और रोगों के सही उपचार के लिए उनके साथ और सहयोग की सभी को नितांत आवश्यकता...

मुखौटे वाला दानव

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गांव में मेला लगा था, जलेबियां,चाट पकौड़े,झूले,खिलौने सभी के स्टॉल लगे थे। गांव के लोग बड़ी तादाद में मेला देखने जा रहे थे। रामू भी मां से जिद करने लगा , कि उसे भी मेला देखना है। विधवा मां किसी तरह मेहनत मजदूरी कर घर चलाती थी।मेले में जाने के बाद मुंह बांध कर तो कोई लौटेगा नहीं,इसीलिए रोजाना टालती रहती। आखिर अब मेले का एक दिन बाद खत्म होने वाला था।उस दिन रामू अड़ गया कि मां मुझे कुछ पैसे दो ,मुझे मेला जाना ही है। आखिर मां को उसकी जिद के आगे झुकना पड़ा। उसने कुछ पैसे चावल के मर्तबान में छुपा रखे थे,उठा कर दे दिए। रामू बहुत खुश था, उसने पहले खिलौने देखे ,जो बड़े महंगे थे,उसका मन ललचा रहा था,लेकिन उसने मन को मनाया और झूला झूलने गया।झूला झूल कर वह उतरा ही था,तो सामने एक मुखौटे वाला ,ढेर सारी मुखौटे लगा सबको बुला रहा था। हंसने वाला,जोकर वाला,भूतिया,डरावना मुखौटा ले लो। महंगा नही ,बस 10रूपये दे जाओ,और अपना मनपसंद मुखौटा ले जाओ। रामू  झट से मुखौटे वाले के पास पहुंच गया,वह देखने में बहुत भयानक था। उसने मधुर स्वर में कहा ,कौन सा मास्क लोगे,बच्चे। रामू ने  एक डरावना मास्क पसंद क...

"मां के बिना मायका"

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▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎ मां तुम्हारा घर अब बङा सूना लगता है। सब चीज पराई लगती है; तेरे भजन और गीतों के बोल  सुनाई नहीं  देती है !! मेरे मन के कोने सा तेरे घर में भी सन्नाटा दिखता है~ वैसे तो सब चीज  करीने से रखी होती है; बस तेरी बेफिक्री नहीं दिखती है!! मेरे आने की खबर से, तेरी आंखें  जो चमक उठती थीं; उन आंखों की चमक नहीं दिखती है!! मुझसे मिलने की  तेरी ललक नहीं दिखती है। वैसे तो कोई कमी नहीं; पर! फिर कब आऊंगी? ये मिलने की तङप नहीं दिखती है!! मेरे मन के कोने सा तेरे घर में भी सन्नाटा दिखता है। मां तेरे बिना तेरा घर मेरा मायका नहीं लगता है▪︎▪︎                                           ‍✍ डॉ पल्लवी कुमारी "पाम"

प्रेम'

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*** प्रेम  प्रतिक्षा रत निहारता है  राहें, संवरता है  बिखरकर, ख़ामोश रहकर होम देता है  उम्र की सांख्यिकी स्मृतियों की  आग में, विरक्ति नहीं रखती मायने खुशियां और गम, सिर्फ और सिर्फ आंखों में रहता है  'वो' इस उम्मीद में एक दिन तो  लौटकर  थाम लेगा हाथ  सन्नाटे की प्राचीर  तोड़कर, और डूबता  जाता है  'प्रेम' कभी उसमें कभी खुद में !  हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'  कोटा, राजस्थान

फिसलता समय

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⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️ ज़िन्दगी की इस कश्मकश में खो कर हर कोई खुशियों की तलाश में फिरता हैं ये तक भूल जाते हैं की दुनिया एक भूलभुलैया हैं आज हाथो से फिसलता समय हैं और कल किसने देखा हैं...!! ⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️ जो भी हैं, जैसा भी हैं,अभी हैं जो आज समय हमारा हैं पलक झपकते बीत जाएगी ये आज भी फिर क्या हमारा और क्या तुम्हारा हैं ईस आज में क्यूँ ना हम एक होकर बिना कोई बैर के जिले क्योकि आज हाथो से फिसलता समय हैं और कल किसने देखा हैं...!! ⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️ कल को अगर याद करोगे तो बस बीते हुए कल के परछाई दिखेगी इसलिए कल की छोड़ो ये सोचो की आज की लम्हा कैसे बीतेगी बाँट लो हँसी जितने हमारे बस में हैं उदास चहरे को,फिर क्या पता कल क्या हो आज हाथो से फिसलता समय हैं और कल किसने देखा हैं.....!! ⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️ सच कहते हैं की दुनिया में इंसान सब एक जैसे नहीं होते हैं किसी के दिल में प्यार की खुमार तो किसी के नैनो में दर्द की नीर होते हैं कोई अपनों से भरी भीड़ में भी दिल एकेला हैं तो कोई किसी एक अपने के लिए हर पल दिल तड़पता हैं....!! ⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳️⏳...

उपन्यास सपने : एक परिचय

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सपने निद्रा के आगोश में देखे जाने बाले दृश्य ही नहीं होते हैं। अक्सर सपने व्यक्ति के मन में दबी इच्छाओं का प्रतीक होते हैं। व्यक्ति के मन में छिपे प्रेम, ईर्ष्या, निश्चय और उसके संस्कारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। खुद के लिये तो सभी सपने देखते हैं। पर कुछ के सपने खुद की ही इच्छाओं से आगे बढकर दूसरों की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उससे भी बढकर कई बार सपने विश्व कल्याण की राह बनते हैं। उपन्यास 'सपने' चाहत को अपना जीवन बनाने के सपने से शुरू होकर, फिर त्याग की कहानी बनता हुआ, फिर किसी अन्य के सपनों को अपना सपना बनाने की कहानी है जिसका समापन मानवता को ही विश्व धर्म बनाने के बड़े सपने के साथ होता है। वर्ष 2021 के जुलाई महीने के आरंभ के साथ ही यह उपन्यास रश्मिरथी मंच का हिस्सा बनने जा रहा है। भविष्य में यह उपन्यास पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित कराने की योजना है। तब तक यह उपन्यास इस प्रतिष्ठित साहित्यिक मंच का हिस्सा रहेगा। दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'

------जज़्बात-----

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दर्द दिल का उसे क्यूँकर दिखाया जाए वो मिले किसी मोड़ पे तो मुस्कुराया जाए है शर्मिंदा वो खुद अपने हालात पर क्यूँकर उसे उसकी नजरों में गिराया जाए सितम किये होंगे सितमगर ने बहुत लड़खड़ाया है वो चल हाथ बढ़ाया जाए प्यार का शायद हो यही उसूल सताया उसने पर उसे ना सताया जाए वादा भले रहा हो फलक तक साथ चलने का अब वो जाना चाहता है चल उसे छोड़ आया जाए जिसकी वजह से मेरे चेहरे पे मुस्कान अब भी है उसे कैसे कोई गम दूँ उसे क्यूँ रुलाया जाए चंद लाइनों में समेट दी जिंदगी अपनी क्यूँ रो रो कर सबको अपना हाल सुनाया जाए...                ---दीपक कुमार

कागज के फूल

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🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 आओ सुनाऊं आपको एक प्यारी सी कहानी--- छोटी सी एक गुड़िया थी करती थी नादानी, सुंदर रूप सलोना उसका,उससे सुंदर मन था उसका, नये नये वो करतब करती नए-नए वह खेल दिखाती---  सुंदर सी मुस्कान से सारे घर को चमकाती, लाड प्यार से पल रही थी जैसे कोई राजकुमारी--- मल्लिका पापा के दिल की  वो और मां की राजदुलारी, चारों पहर वो खेल रचाती,कभी मिट्टी का घर बनाती--- कभी कागज की नाव तैराती,अपनी सखा सहेली संग---  वो कागज के फूल बनाती, और उन फूलों को लेकर प्रभु के चरणों में चढ़ाती, ली वक्त ने एक करवट आई तूफानी एक आहट--- कहते हैं बुरा वक्त दबे पांव ही आता है, खुशमिजाज फुलवारी पर बुरी नजर लगाता है, एक जहरीली हवा का झोंका अचानक से आया--- गुड़िया का चेहरा धीरे-धीरे अकस्मात मुरझाया, तबीयत हुई उसकी नासाज मिला नहीं कोई इलाज--- दिन-ब-दिन मुरझा रही थी, उसके सखा सहेली मिलकर प्रभु से अरज लगा रहे थे--- सांस टूटने वाली थी दम उसका घुटने  लगा, उसकी मां बाबा के सर पर,दुखों का पहाड़ टूटने लगा--- हे प्रभु कर दो  उपकार गुड़िया का कर दो उपचार, झटपट से बच्चों ने मिलकर कुछ...

आज है जो राज

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आज है जो राज जमाना हमने देखा है दीवाना सबको करता है मिली हमको खुशी जो आज वो किश्मत से पायी है हुआ जो आज उसको  हम बया करते लगा राजा बने है सब  मिला है ताज भी हमको लगे कुँवर से मुस्काने करे कोई ना बहाने बहन सौपा है सबको आज का राज ये देखो संध्या पंवार राजस्थान

पुरवा

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😷 तेरे मुँह पर भी मॉस्क ....... 😷 मेरे मुँह पर भी मॉस्क ....... दो गज की दुरी ......  🙍‍♂️तेरे .....🙍‍♀️मेरे दरमियां ..... फिर कैसे मैं कह दूँ ..... पुरवा सुहानी आई रे ...... आई पुरवा ......       ...…....@ नेहा धामा " विजेता "

इंद्रधनुष

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मैंने अपने आँगन में  कुछ विरवे रोपे थे  खाद पानी से सींचा  और बहुत दुलराया और एक  दिन चटकी कलियां फूल और फल भी आये  संग साथ में  तितली लाये रंग कई बिखराये। गौरैया और छोटी चिड़िया  नृत्य गान करती है, और गिलहरी आंगन में  झूम झूम नचती है, सूने निर्जन आँगन में  रंग समाए सातों ऐसे आसमान का इंद्रधनुष  घर मेरे आया हो जैसे!! क्यों कहते रहते हो ? अब समय है बदला और नीरस है जीवन तुम भी तो कुछ विरवे रोपो अपने मन के आँगन।               - कीर्ति प्रदीप वर्मा

अंबर का धीरज टूट गया

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आज धरती का दुख देख-देख। अम्बर का धीरज टूट गया। भीग गयी अंखिया अम्बर की। बरस गये अश्रु बादल बनकर। हुआ दुखी तब मिलन धरा का। अपने अम्बर के आलिंगन में। संताप अहा ! दोनो को था । मनुज टूट बेहाल जो था । सुबक दुखित दोनो ही थे । विकराल रूप से अशक्त सभी। अलग-अलग थे सभी लोग यहाँ । कोई भी मिलकर दुख न बाँट सका। ऐसी विपदा से टूटा हृदय । बिन बुलाई आपदा घिर आयी। कैसे धीरज देता अम्बर-धरा को। खुदका धीरज ढह गया आज। कितनी लाशों से धरा दबी। कितनी आहो को सहती । द्रवित नेत्रो से अम्बर-धरती को देख रहा। कितने असहाय से विध्वंस को झेल रहे। क्रूर प्रहार धरती ने झेला। निष्ठुर प्रहर बलशाली है। धरती का सीना धधक रहा। अम्बर का धीरज पिघल रहा।     अनिता शर्मा झाँसी       (स्व-रचित )

समय तो आयेगा ही

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       कहते हैं समय कभी ठहरता नहीं है,बस चलता रहता है।इसी पर मैंने कभी लिखा था कि -"समय समय के साथ यूँ भी चला जायेगा, समय ठहर कर भला क्या पायेगा?"      जीवन और समय का तारतम्य कुछ ऐसा है कि जन्म के उपरांत हम सब भले ही जन्मोत्सव / जन्मदिन मनाने में हर्ष का अनुभव करते हों, उल्लास मनाते हों ,परंतु वास्तविक तथ्य तो यह है कि हमनें अपनी जिंदगी के उतने दिन बिता लिए। हर पल हम अपने ही अंत की ओर गतिशील हैं यानी समय तो आएगा ही जब हम अपने जीवन के अंत समय का दीदार कर इस संसार को अलविदा कह देंगें,न चाहते हुए भी कहना ही पड़ेगा अर्थात समय आयेगा और हमें इस संसार के बंधनों से मुक्त करा ही देगा।       इसी तरह सुख, दुख, यश, अपयश, जन्म मृत्यु सभी कुछ समय के इशारों पर नाचने को विवश हैं। कहावत भी है कि घूर के दिन भी फिरते हैं। कुछ भी स्थाई नहीं है। मान, सम्मान ,पद, प्रतिष्ठा ,अमीरी, गरीबी सब कुछ समय के फेर में है। बस केवल समय समय की बात है। कठिन और दुष्कर समय भी समय की प्रतीक्षा करते करते आखिर समय मिलन के साथ चले ही जाते हैं। समय को रोकना ईश्वर के वश में भी नहीं...

रिश्तें

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वैसे तो संसार में रिश्तों की भीड़ हैं पर जीया वही जाता हैं जो दिल से निभाया जाता हैं प्रेम सहकार हो जहाँ निःस्वार्थ भाव रहता हो स्वार्थ से परे जब हृदय में बसता हो रिश्ता वही जो दिल में रहता हो सरिता से निश्छल बहते रहते है रिश्ते स्वार्थ भावना से नाला बन जाते हैं प्रेम की सुगंध नही  दुर्भावना की दुर्गंध होती हैं ईर्ष्या, बैर, मनमुटाव से फिर जाम हो जाता हैं रिश्ता वही जो, दिल से निभाया जाता हैं। दूध में पानी की तरह मिलकर एकसार होता हैं बैर की एक बूंद से रिश्ता फट जाता हैं चाहें जितना मथों करलों जो हो उपाय पर फिर रिश्तों से प्रेम घी नहीं निकल पाता है रिश्ता वही जो दिल से निभाया जाता हैं। छोटे ही गिरते हैं अक्सर बड़ो की नजरों से बड़े भी गिर जाते हैं कभी अपनों की निगाहों से उम्र से सम्मान नही मिलता खजूर से जैसे छाँव नही प्यार से ही आदर मिलता जिसका कोई छोर नही स्वार्थी रिश्तों से प्रेम किया नही जाता रिश्ता हर किसी से दिल से निभाया नही जाता। गरिमा राकेश गौत्तम पिता बजरंग लाल गौत्तम माँ संतोष गौत्तम खेड़ली चेचट कोटा

नन्हें - मुन्हें कलाकार

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आओ मिलवाऊ तुम्हें दो नन्हें - मुन्हें कलाकरों से ....... फर्श को दीवारों को कैनवास बनाने वालों से ........ कभी जब बन जाते चित्रकार घर का कोना - कोना रंगों से रंग खुद भी रंगों में रंग जातें हैं ...... कभी इंजीनियर बन घर का सामान खेल - खिलौने सबके इंजर - पिंजर हिल जातें हैं ….. कभी रोना ,कभी हँसना ,रूठना,  मनाना ,दौड़ना ,भागना ,नन्हें मुन्हें बन नये करतब दिखाते हैं ... कभी गोदी में लेटे ,छाती से लग ,गर्दन में झूले ,मीठी बातें कर खूब मक्खन लगाते हैं..... कभी कभी तो मेरी अम्मा बन मुझें डाँट पिलाते हैं नन्ही - मुन्हि गुड़ियां कहकर प्यार लुटाते हैं..... सफ़ाई वाले बन आये समझों सामत आई ,सामान सब तीतर - बीतर झाड़ू पोछा भी कर जाते हैं ..... कभी रसोईया बन हाल बेहाल कर जातें हैं, दौड़ा - दौड़ा मम्मी को भरपूर थकाते हैं...... पढ़ने बैठे कॉपी - किताब पुर्जे पुर्जे खुल जाते हैं, टीवी देखें कार्टून पर ख़ूब ऊधम मचाते हैं... खेलें जब गेंद बल्ला सचिन तेंदुलकर बन सबके छक्के छुड़ाते हैं ..... खाना ,खाने बैठे हाथ - मुँह पर लपेट बजरंगी बन जातें हैं ,नहाने जाये बाथरूम का स्विमिंग पूल बना देते हैं ........ ...

धर्म

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मानव सेवा कर्म बड़ा है दुनिया में सब कर्मों से। मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया में सब धर्मों से।। ईश्वर ने इंसान बनाए फिर धर्म कहां से आया। इस धरा की मानवता पर किसने कहर ढाया।। सभी धर्मों में लोग एक से अच्छे बुरे होते। धर्मों के आवेश में हम मानवता को खोते।। मानवता ही सर्वप्रिय है दुनिया के सब मर्मों से। मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया के सब धर्म से।। धर्म में आकर कैसे हमने इस धरा पर रंग बांटे। किसी ने भगवा रंग पहना कोई अपने बाल काटे।। आज धरा पर मानवता कहां, धर्म की लड़ाई है। चारों तरफ नजर घुमाओ भाई का दुश्मन भाई है।। कैसे मैं मानवता बचाऊं दुनिया के बेशर्मो से। मानवता ही बड़ा धर्म है दुनिया की सब धर्म से।।  नाम - विक्रांत राजपूत चम्बली पता - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

विश्वास घात

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धरती से अब दोमुंहे सर्प गायब हो गए है, क्योंकि इंसान भी अब दोमुंहे हो गए है। इंसानियत और ईमानदारी का मुखौटा पहन लेते है, और अपनों को ही पीछे से  विश्वासघात के विष से डस लेते है। हाथी के दांत जैसा इनका व्यक्तित्व हो गया है, इस झूठ और बेईमानी में सच्चा इंसान खो गया है। लोभ और पाप के वशीभूत हर व्यक्ति हो रहा है, इस क्षणभंगुर जीवन को ही सत्य मान रहा है।। शीला द्विवेदी "अक्षरा"

दे दे इतनी शक्ति

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दे दे इतनी शक्ति, हंसकर वीष पी लूं । तेरा नाम लेते लेते , कुछ पल तो जी लूं । मृगतृष्णा में जाने कब से , भटक रहा है मन ! तू रख दे सिर पर हाथ भोले! तो सफल हो ये जीवन । मन शीप भी तू ! मोती भी तू ! इन आंखों की , ज्योति भी तू ! तेरे चरणों मे करती हूं, मैं खुद को अर्पण ! तू रख दे सिर पर हाथ भोले! तो सफल हो ये जीवन । न वेद पढ़ी, न पुराण पढ़ी , न तेरे दर्शन को पर्वत चढ़ी । न जानू जप - तप पूजा, न जानू नेम धर्म! तू रख दे सिर पर हाथ भोले! तो सफल हो ये जीवन । तुम्हें सब कहते भोले भंडारी, करुणा के हो तुम अवतारी । आकर पार लगा दो नैया, कर दो इतना करम। तू रख दे सिर पर हाथ भोले! तो सफल हो ये जीवन । ...........पिंकी मिश्रा

बनारस

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मेरा है प्यारा, शहर ये बनारस। है प्यारा, मेरा शहर ये बनारस।। जहां बहती निर्मल गंगा वरूणा, जहां है  दिलों में सबके करुणा --२ संस्कृति है बसी नस - नस। मेरा है, प्यारा शहर ये बनारस।। कण कण जहां शिव और शिवाला, अन्नपूर्णा देती है सबको निवाला --२ घाटों के मिलते अनमोल दरस। मेरा है, प्यारा शहर ये बनारस।। ज्ञानपीठों की है जहां पे कतारें, ज्ञानियों ने असंख्य पल हैं गुजारें --२ रहे लिखते मुंशी जी* बरसों बरस। मेरा है, प्यारा शहर ये बनारस सभ्यता है जिसकी सदा से पुरातन, स्वयं में रहा फिर भी ये   नूतन --२ अधूरा है इसके बिना इतिहास मेरा है, प्यारा शहर ये बनारस है प्यारा, मेरा शहर ये बनारस मेरा है, प्यारा शहर ये बनारस            ++++++++       कीर्ति रश्मि नन्द   वाराणसी

यादें कहां रूकती है

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जितना भी आगे बढ़ जाओ जीवन में, अतीत कहाँ पीछे रहता है, यादों के झुरमुट से फिर यादें आ जाती हैं। **** कितनी प्यारी सी हंसी ठिठोली अपनों की, कितनी प्यारी वो सब बातें , कितनी नोक-झोंक और लड़ाई। **** सब अतीत में खो गये लम्हे , समय कहाँ रूकता-थमता , पर यादें बार-बार आकर कहतीं हैं। **** आंखो को नम कर जाती है , होठों पर मुस्कान अनायास आ जाती, यादें दस्तक देती रहतीं हैं। **** हाँ कुछ सबक सिखाया करती , कुछ अलग मुकाम हासिल कर जाते , पर यादें रोके से न रूकती हैं । **** ---अनिता शर्मा झाँसी---- ,,स्वरचित

साकार कर ले मुझे

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बाजुओं में गिरफ्तार कर ले मुझे, पास आकर जरा प्यार करले मुझे। तुझसे है जिंदगी,तू मेरी बंदगी, प्रियतम साकार कर ले मुझे।। जिंदगी में हमेशा भटकती रही, पर तेरी भांति कोई भी मिल ना सका। मन में अरमान जागे, अनेकों मगर, प्रीत का पुष्प कोई भी खिल ना सका।। पर तू मेरा हुआ, अब सबेरा हुआ, अब तो जीवन का आधार कर ले मुझे। मैं भटकती रही, पर अचानक सही, तुझसे टकरा गई, और मन मिल गये। मन की मुस्कान में, तू बसा ध्यान में,  जैसे गुलशन के सारे सुमन खिल गये।। अब यही आस है, बढ़ रही प्यास है, अपनी बांहो का तू हार करले मुझे। मन के मंदिर में तुझको बसाया है अब, तेरे इस रूप की मैं बनी साधिका। ना तो मीरा हूँ मैं, रुक्मणी भी नहीं,  सत्यभामा नही, ना हूँ मैं राधिका।। पर तेरी प्रीत हूँ, मैं प्रणय गीत हूँ, अब तो श्वेता सी स्वीकार करले मुझे। श्वेता कर्ण

नारी

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हमारी नायिका आधुनिक कपड़े पहने स्टेज पर कैटवॉक नहीं करती,इतनी सुंदर भी नहीं कि लोग उसकी सुंदरता के कसीदे पढ़ें,कविताएं बनाएं,न ही घोड़े  पर सवार हो, तलवार लिए दुश्मनों का सामना करती है,वो हमारे ही बीच की ,एक अद्भुत नारी है। हमारी नायिका  ने अपने दम पर अपना जीवंत इतिहास बनाया और महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी। कहते हैं_"औरत मोहताज नहीं,किसी गुलाब की। वो खुद बागबान है इस कायनात की"। गुलाबी रंग को कोमलता का प्रतीक माना गया है,लेकिन इस नायिका ने इस रंग को अपनी पहचान बना दी।आप समझ ही गए होंगे की हम बात कर रहे हैं, गुलाबी गैंग की मुखिया संपत पाल की। 2011में अंतराष्ट्रीय पत्रिका ,"द गार्जियन "में इन्हें सौ प्रभावशाली प्रेरक महिलाओं में शामिल किया गया। इनके जीवन पर देसी , विदेशी  संस्थाओं ने डॉक्यूमेंट्री बनाई। फ्रांस की एक पत्रिका "ओह" ने 2008 में संपत पाल के ऊपर एक पुस्तक लिखी। आप सबने माधुरी दीक्षित अभिनीत बॉलीवुड फिल्म गुलाब गैंग  जो संपत पाल के जीवन पर आधारित थी देखी होगी। संपत पाल एक रीयल नायिका के साथ साथ रील नायिका भी बन गईं।अपने जुझारू व्यक्तित्व और स...

"इंसानियत का पाठ"

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"इंसान हैं इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं। धोखाधड़ी, और चापलूसी करते जा रहे। गैरों को सीख की गठरिया भरते जा रहे।। बस झूठ के सहारे ,क़दम आगे बढ़ाते हैं। इंसान हैं, इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं।। कहते हैं हिन्दू मुस्लिम, और सिख  ईसाई, सब एक हैं, सब नेक हैं, आपस में हैं भाई। और मजहबों को लेकर आपस में लड़ाते हैं। इंसान हैं, इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं।। कहते कुरान ,बाईवल, गुरुग्रंथ या गीता। इनको पढ़ो इन्हौने है संसार को जीता।। और सीख इनकी अपने न ध्यान में लाते हैं। इंसान हैं, इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं।। दीन दुखियों की सेवा अब लूट बनी है। धनिकों को गरीब लूटने की छूट बनी है।। धनवान गरीबों को अब लूटके खाते हैं। इंसान हैं, इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं।। नफ़रत,भरी फिजाओं में प्यार कहां है। इंसानियत का आज तलवगार कहां है।। बेईमान आजकल नया इतिहास रचाते हैं। इंसान हैं, इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं।। एक दूसरे से चल रहे हैं, आज सब पहले। हर ओर यहाँ चल रहे हैं, नहले पे दहले।। नफरत का कदम प्यार की बातों से बढ़ाते हैं। इंसान हैं, इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं।। हैवानियत के दौर में इंसाफ कहां है। मत पूछिए...

खडहररेड लाइट एरिया

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. आकाशी निस्तेज आंखों से बस दीवार को घूरे जा रही थी, दीवार पर चिपकी छिपकली कब से शिकार पर नजर रखे हुए थी! आकाशी उठना चाहती थी, पर जिस्म टूट रहा था'अचानक से छिपकली ने झपट कर शिकार को अपने मुंह मे डाल लिया, वो एक छोटा सा कीट था जो खुद को बचाने की जद्दोजहद कर रहा था,!  आकाशी का मन विचलित हो गया, उसे छिपकली से घिन थी, और धीरे धीरे उसे खुद से घिनआने लगी, उसे भी तो दबोचा गया था, जब वो पांच साल की थी, कुछ धुधंला सा याद है, कोई महिला थी जिसने उसे शहर की बस मे बैठा दिया था, एक बिस्किट का पैकेट देकर, उसे याद है उसके माँ बाप रईस थे गाडी बडा घर कुछ चेहरे पर आज तक उसे वो चेहरे कही नजर न आये, जो उसके अपने थे!  वो बच्ची भटक रही थी सडक पर भूखी प्यासी, एक अधेड़ अपने साथ ले गया, झोपड़ी थी, उसने रोटी दी फिर वो सो गयी, रात मे दर्द से तडप गयी, उसके साथ क्या हुआ कुछ न समझ पायी, अगले दिन सरकारी हास्पिटल मे थी, सब उसकी बाते कर रहे थे!  बस इतना ही समझ आया, कुछ दिनों बाद उसे एक घर मिल गया, वहाँ बहुत सारे बच्चे थे उस जैसे, वहाँ सभी की एक माँ थी! पूरा समय उन्ही के साथ निकल जाता, बारह बरस निकल गये थे...

मै तन्हा यहाँ हूँ

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वो रह रह कर मेरा दिल चुरा रहे हैं  मै तन्हा यहाँ हूँ और वो मुस्कुरा रहे हैं 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सब कुछ ले गए वो अब बाकी कहाँ है  मयखाने को छोड़कर अब साकी कहाँ है  जो कहना था उनको मुझसे अब वो घबरा रहे हैं  मै तन्हा यहाँ हूँ और वो मुस्कुरा रहे हैं  🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 वो गुजरा हुआ फ़साना अब याद आ रहा है  वो प्रेम का तराना अब याद आ रहा है  अब पास आने पर वो क्यूँ कतरा रहे हैं  मै तन्हा यहाँ हूँ और वो मुस्कुरा रहे हैं  🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 चलो छोड़ दो अब वो रंजोगम की बातें  अब कैसे कटेगा दिन अब कैसे कटेंगी रातें  अब क्यूँ वो रह रहकर इतना याद आ रहे हैं  मै तन्हा यहाँ हूँ और वो मुस्कुरा रहे हैं  🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 अब "लखनवी" अपने मन की कुछ न कहेगा  पहले भी चुप था वो अब भी चुप रहेगा   अब खामोश है ये आलम बस चलते जा रहे हैं  मै तन्हा यहाँ हूँ और वो मुस्कुरा रहे हैं 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 आपका मुकेश लखनवी

हमेशा नहीं रहने वाला

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तुम्हारी     यादों में हर पल आऊंगा मैं हमेशा मैं नहीं रहने वाला तुम्हारे आंखों से आंसू की बारिश हर पल करवाऊंगा मैं तुम अगर कभी भूल जाओ तेरे सपने में आकर याद  दिला आऊंगा मैं  । हर खुशी के पल में आऊंगा मैं हमेशा मैं नहीं रहने वाला तुझे अपनी याद दिल आऊंगा मैं। बचपन से पाला है मैंने अब मैं चला जाऊंगा पर मैं अपने यादें छोड़ जाऊंगा। मेरी तस्वीर का देखकर आंखों से आंसू बहाओंगे मैं हमेशा नहीं रहने वाला पर अपनी याद दिलाउगा मैं।     आऊंगा मैं हमेशा मैं नहीं रहने वाला तुझे अपनी याद दिल आऊंगा मैं। बचपन से पाला है मैंने अब मैं चला जाऊंगा पर मैं अपने यादें छोड़ जाऊंगा। मेरी तस्वीर का देखकर आंखों से आंसू बहाओंगे मैं हमेशा नहीं रहने वाला आज हर पल तुझे याद सताती है मेरी मेरी कहीं बातें की याद आती है तुझे। तेरे आंसुओं के सैलाब  रूकने का नाम नहीं ले रहा  मेरी याद तुझे हमेशा याद आती है तुझे।  कभी रोते कभी तड़पती हो मेरी कमी की याद सताती है तुझे। मेरे कुछ अच्छे पलों को याद कर लेना अपने संस्कार का तहजीब समझ कर पालन कर लेना मैं आज हूं कल चला जाऊंगा...

वक्त

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यह वक्त भी ना बड़ा अजीब है  कभी दोस्त तो कभी लगता रकीब है ।।।।। कभी बिन मांगे बहुत कुछ है दे जाता  कभी बिन पूछे बहुत कुछ है ले जाता  कभी बनाता बादशाह कभी रखता गरीब है।  यह वक्त भी ना बड़ा अजीब है ।।।। कभी गैरों को अपना कर दें  कभी अपनों को पराया, कभी दोस्तों की महफिलसजती  कभी छोड़े साथअपना साया , कैसा है यह दौर कैसा अपना नसीब है  यह वक्त भी ना बड़ा अजीब है ।।।।। वक्त दिखाएं हमें जमीन पर तारे  वक्त ने अच्छे अच्छों के मुकद्दर सवारें, वक्त तोवक्त है हर वक्त यह बदलता है बस हिम्मत रखने वालों से शायद थोड़ा यह डरता है , ना डर ,सीमा, इससे तू खुद तौफीक है यह वक्त भी बड़ा अजीब है

बेटी

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 पेड़ की डाली पर न उतरती हैं बेटियां, बेटों की तरह उसी प्रक्रिया से, कोख में आती हैं बेटियाँ। फिर क्यों बेटों की तरह दुलार मान , न पाती हैं बेटियाँ।  बेटों को बड़े कॉलिज ,इंस्टिट्यूट, फिर क्यों , विद्यालय तक समिट कर रह जाती हैं बेटियां। बेटे तो रहते  हैं तमाम उम्र बहुत लापरवाह  से, बचपन में ही संवेदनशील हो जाती है बेटियां। हर हाल में सबका रखती ख्याल,  फिर क्यों वो अधिकार न पाती हैं बेटियां। बेटा तो होता एक घर का चिराग, दो -दो घरों को रोशन करती हैं बेटियाँ।  चाँद और तारों पर घर बनाने की बात करने वालों,  अपनी सोच भी ऊँची रखो यह चाहती हैं बेटियां। अंजू दीक्षित, बदायूँ, उत्तर प्रदेश।

पवित्र रिश्ता

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रिश्ता पवित्र मेरा माता पिता से उन्होंने मुझको जन्म दिया निःस्वार्थ जिन्होंने प्यार दिया सपने जो देखे थे मैंने उन सपनों को आकार दिया रहूं सदा संतोषी मन में ऐसा मुझे सुविचार दिया अपनी गलती को समझ सकूं ऐसा मुझे संस्कार दिया विनम्रता हो बातों में अपनी ऐसा शिष्टाचार दिया खुशियां जिस आंगन में खेले ऐसा इक परिवार दिया एक अच्छा इंसान बनाकर उनने मुझ पर उपकार किया नमन करूँ में सादर उनका जीवन मेरा संवार दिया ✍🏻प्रीति ताम्रकार       जबलपुर

जीवन की कस्ती-------

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भावों रिश्तो संग जीवन कस्ती जैसी निर्मल निर्झर प्रवाह हद हस्ती जैसी सागर की गहराई जीवन की सच्चाई जैसी।। झरने झील तालाब नदियां जीवन जीवन मकसद की राहों जैसी कभी निर्बाध निकलती कभी डूबती छिछलेपन की कंकण जैसी।। जीवन की कस्ती का पतवार जैसा चाहो वैसी कभी चाहत की मस्ती कभी वक्त की मार तूफानों जैसी।। जीवन की कस्ती जीवन की कठिन चुनौती से  डगमग होती झूठ और सच्चाई जैसी ।। उठते गिरते तूफानों में जंग जीवन का लड़ती जीत हार का जश्न हाहाकार हश्र की संसय जैसी।। जीवन के रिश्ते नाते जीवन की कस्ती सवार मांझी मकसद मंजिल खेवनहार को मिलती चाही अनचाही मुरादों जैसी।। कभी चाहों की राहों की कस्ती कभी अनचाही शादिल और किनारा अनजानी दुनियां जैसी।। तूफ़ांनो झंझावत में  लहरों तूफानों में कस्ती जब फंसती सवार भाँवो के रिश्तो में हलचल जैसी।। रिश्ते नाते कुछ मुसक जैसे जिस जिस कस्ती में सवार उंसे कुतरते डूब ना जाए  भागते जल बिन मछली जैसी।। छोड़ अकेला खुद खुदा को शुक्र कहते पता नही होता  उनको उनकी नियत दुनियां में चोर उचक्कों जैसी।। जीवन की कस्ती मस्ती सूझ  बोझ सोच समझ शौम्य संयम पतवार की हस्ती।। जिम्म...

जीवन की संध्या घिर आई

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जीवन की संध्या घिर आई , जीवन के रिश्ते नातों को जीते । ** अब व्याकुल मन कहता , सांझ जीवन की घिर आई । ** अब संध्या का रवि ढल कहता , खुले आकाश में सांस तो लो ? ** नदिया कहती शिथिल पिन्जडा, अब शीतलता के साथ जियो । ** सूरज की ढलती बेला में , शान्ति का अहसास करो । ** जो चढ़ता तेजस्वी होकर , ढलने पर लालित्य भरे । ** सांझ की सुरमई शीतलता , ढलती उम्र के साथ जियो । ** एक पड़ाव ऐसा भी आता , स्वीकार्य हर्ष के साथ करो । ** अपनी लालिमा भरो रिश्तों में, खुशी रिश्तों में बाँट जियो । ** प्रकृति संध्या संग सजती है , ध्यानस्त योगी आदित्य बना । ** सांझ ढले खुलकर प्रकृति के , साथ जियो ।। **----अनिता शर्मा झाँसी---** **----स्वरचित रचना ----**

दुश्मनी भाग १

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  यह धारावाहिक है आराधना के साधारण से जीवन में असंख्य उतार-चढ़ाव की, क्या आराधना इन मुसीबतों का सामना कर पायेगी! कहीं किसी से दुश्मनी मोल ले लेना आराधना के लिए जीवन भर के लिए पछतावा तो नहीं रह जाऐगा, जानने के लिए धारावाहिक से जुड़े रहे।                          *****************धन्यवाद**************        आराधना बहुत ही  सादगी और शालीनता से जीवन जीने वाली  मध्यम वर्गीय खानदान की इकलौती बेटी थी।  उसने अपने जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव देखे थे,  उसके पिता एक सरकारी विद्यालय में चपरासी की नौकरी करते थे, आराधना भी उसी विद्यालय में सातवीं में पढ़ती थी। उसके पिता को झाड़ू पोंछा करते हुए देखकर उसकी कई सहेलियां उसका मजाक उड़ाती,  एक चपरासी की बेटी होने के कारण आराधना कई बार अपने पिता  से गुस्सा हो जाया  करती थी। आराधना पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थी,  वह अपने पिता को ऐसी नौकरी करते देखना कभी पसंद नहीं करती थी, वह जल्दी से बड़ी हो जाना चाहती थी और अपने...

काला रंग

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बहुत पसंद है मुझे सभी रंगो मे रंग काला क्योकि काले रंग का तो है मेरा बांसुरी वाला! काली काली आंखे उसकी और बाल घुंघराले, रोज रोज करते है मेरे दिल को मतवाले! नैनो मे बसा हुआ, सूरमा काला काला, करता है हंसी ठिठोली मुझसे वो नंदलाला,  रोज रोज आए मेरे सपने मे वो ग्वाला,  कहे पास आके मेरे सपने मे,श्वेता तू तो है गोरी गोरी,पर मै तो काला!  लगे मुझे तो वो सबसे प्यारा, वो श्याम रंग वाला, इसलिए तो बहुत पसंद है मुझे सभी रंगो मे रंग काला!                                       श्वेता अरोडा

नन्ही-सी परी मिल गई ....

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    👩‍🍼👩‍🍼👩‍🍼 सूखी पत्तियों को ओस की नमी मिल गई ,शाख को लगा जिंदगी मिल गई ....... वर्षों से गुम थी हंसी मेरी जाने कहां , मासूम होठों पर वह हंसी मिल गई ........ सब मेरी परछाई कहते हैं उसे , उसके बचपन में बचपन की खुशी मिल गई ........ मां की जिन बातों से कभी चिढ़ती थी मैं , आज मुझ में वह सारी कमी मिल गई ...... अप्सरा सी लगती है बिटिया मेरी , ममता को मेरी नन्ही-सी परी मिल गई ....... ......✍️ पिंकी मिश्रा

ओ मां मेरी----

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ऐ मां मेरी सुन मां मेरी ओ मां मेरी----- तुझको मैं याद करती हर घङी;हर घड़ी। भूलूं तूझे कैसे?वो पथ मुझे दिखता नहीें ,दिखता नहीं। ए मां मेरी----- अब तुझको कहीं खोजती नहीं , अम्बर से तेरा पता अब पूछती नहीं।  ढूंढती हूं तुझको अब खुद में कहीं।  ओ मां  मेरी----ओ मां मेरी। तू मुझमें ही कहीं सोई है मेरे अन्तर में ही कहीं खोई है। तुझको जगाती हूं  हर रोज बुलाती हूं।  मेरे अन्तस से जब तू झांकती है। मन के मुरझाये फूल खिलाती है तुझको ही अर्पण करती हूं।  तेरे आशीष से आँचल भरती हूं । खुशियां जो तुम बिखेरती थी  अपने इन आँचल में अब समेटती हूं।  शिकवा अब कोई करती नहीं। तू गूंजती है,मन में ही कहीं~  जैसे हों कीर्तन के बोल  दूर से आती कानों में।  तुझसे मिलती हूं,बातें  हजार करती हूं  हर पल यही,हर पल यहीं। तू मुझमें ही कहीं खोई है। नींद  में  सोई है। ऐ मां मेरी----" एक बार मुझे भी सोना है। तेरे गोद में मुझे खोना है। ए मां मेरी ,सुन मां मेरी। तू गंग में बहती रही मैं चुपचाप तकती रही। अब रोज  स्पर्श मैं करती हूं।  गंग जल में तेर...

गजल

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आसमान के तारों के मानिंद अनेक हसरतें हैं मेरे सीने में पर जो चांद बन के  तू आ जाए पास मेरे खुदा की कसम  मजा ही आ जाए जीने में मेरे मन में खुशबू बिखेरने वाले तुम मेरे लिए गुलाब जैसे हो तुमसे ही रंगो ताजगी है मुझ में तुम ही तो मेरे गमों के कातिल हो।। तुम्हारा जो साथ मिला है मुझे हमदम मेरे हर ख्वाब पूरे हुए समझो तुम मेरी जिंदगी का सदाबहार कुसुम सच! तुम औरों से अधिक मेरे हो         श्वेता प्रसून

🙏जय हो गंगा मैया🙏

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जय हो जय हो हे! पतितपावनी गंगा माई    कल्याण करने सर्वजन की,तुम धरा पर आई।।       घोर तपस्या कर ,लाए तुम्हें भगीरथ       सफल हुए जगत की,संपूर्ण मनोरथ ।।       तीव्र वेग जलधारा की, जब संभल न पाए     शिवशंकर ने कृपा कर,जटा में स्थान दिलाए।।       हिमालय के गोमुख से,होवे गंगा का उदगम       प्रवाहित हो सहायक नदियों से होता संगम।।       हे गंगा मईया,पापनाशिनी तुम हो बहुत उदार    पवित्र धारा से,जगत का करती तुम हो उद्धार।।              जय हो जय हो हे! पतितपावनी गंगा माई     कल्याण करने सर्वजन की,तुम धरा पर आई।।           🙏💐जय हो गंगा मैय्या💐🙏                                   मनीषा भुआर्य ठाकुर  (कर्नाटक)       

सत्तो अंतिम भाग

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  डाक्टरी की पढाई करते समय सत्तो ने जो मेहनत की, उसपर जितना लिखा जाये, कम ही है। अपनी मेहनत और योग्यता के बल पर वह हमेशा शिक्षकों की चहेती रही। अपने नम्र व्यवहार से सभी सहपाठियों के मध्य सम्मानित होती रही। हमेशा सत्तो का स्थान क्लास में टाप पर रहता। प्रयोगात्मक में तो उसके बराबर कोई नहीं टिकता। पर सत्तो का पढाई में होशियार होना उसकी सबसे बड़ी योग्यता न थी। वह जानी जाती थी अपने सेवा भाव के कारण। प्रशिक्षण के दौरान जूनियर डाक्टर के रूप में कार्य करते हुए वह मरीजों से ऐसा भावनात्मक रिश्ता बना लेती कि ज्यादातर मरीज उसे पसंद करने लगते। सत्तो गंभीर से गंभीर मरीजों को हौसले की वह दवा दे देती कि उनमें भी जीने की इच्छा जग जाती। वे मरीज भी बीमारी से दो हाथ करने को तैयार हो जाते। अधिकांश मरीज मृत्यु से जंग जीतने लगे।    एम बी बी एस करने के बाद सत्तो ने स्त्री रोग में विशेषज्ञता हासिल करने के लिये आगे की पढाई की। वियोग का यह समय फौलाद सिंह ने संगीत की साधना में गुजारा। प्रेम की ताकत के बलबूते पर फौलाद सिंह एक सफल संगीतज्ञ बन गया।    सत्तो के पास अनेकों बड़े अस्पतालों से नौक...

हाथों में थामे हाथ

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हाथों में थामे हाथ   मुझे ले चला कहाँ         हाथों में थामे हाथ- -  मैं हो गई हूँ तेरी तू हो गया है मेरा ले चल मुझे वहीं पर बस प्यार हो जहाँ         हाथों में थामे हाँथ- -  सपने हुये वो पूरे जो थे कभी अधूरे मैं हूँ धरा तुम्हारी तू मेरा आसमाँ          हाथों में थामे हाथ- -  आँखों में तेरी सूरत ज्यों देवता की मूरत बंधन न देह का हो बस रूह हो फ़ना       हाथों में थामे हाथ- -             -कीर्ति प्रदीप वर्मा

जिंदगी और हवाई जहाज़---

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जिंदगी हवाई जहाज ख्वाबों खयालो कल्पना उड़ानों में उड़ती ।। खूबसूरत कल्पना लोक विचरती कभी कल्पना ख़्वाब खयाल वास्तविकता वास्तव के रनवे पर चक्कर काटती एरोड्रम पर रुकती।। करती कुछ विश्राम ।। नई सोच नई कल्पना की  उड़ान उड़ती नए अम्बर की ऊंचाई का पंख परवाज़।। उड़ते आकाश में कभी आशाओ के बादल साफ निराशाओं का अंधकार।। डगमगाता खतरे के देता संकेत कभी सभल जाता कभी अविनि पर चकनाचूर।। अविनि से जीवन शुरू अविनि ही शमशान कब्रिस्तान कल्पनाओं ख्वाब की उड़ान विखर जाती टुकड़े हज़ार।। हवाओं में उड़ना इंसानी जिंदगी फितरत अंदाज़ जिंदगी का जांबाज  पंख परवाज हवाई जहाज।। कल्पना लोक में उड़ते  समय मौसम खराब तमाम खतरे तमाम  फिर भी बेफिक्र लड़ता जीवन की कल्पनो की उड़ान भरता जिंदगी में इंसान।। नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

संभलते- संभलते

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जिंदगी के सफर में गिरते पड़ते चलना सीख लिया है लोगों की फिक्र करना छोड़ अपने रास्ता चुन लिया है बड़ी मतलबी दुनिया है यारों जिंदगी  में संभलना सीख लिया है। हर मोड़ पर जिंदगी के तजुर्बे सिखाती गई हमने भी जिंदगी के सफर में उबड़-खाबड़  रास्ते पर चलना सीख लिया है। कुछ अजनबी मिले कुछ अनजाने लोग उनसे हमने भी सबक सीख लिया है हमने भी संभलना सीख लिया है चलते-चलते हमने भी जिंदगी के डगर पर चलना सीख लिया है। कभी दुखों का सैलाब देखा कभी सुखों का हर एक मोड़ पर हमने कुछ नया ही सीखा जिंदगी हर एक मोड़ पर कुछ नया किस्सा बयां करती है हमने भी जिंदगी से हर दिन हर पल कुछ नया ही सीखा। जिंदगी के सफर में हमने भी संभलना सीख लिया।.........  सपना कुमारी  बिहार पटना

किरदार नारी के

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मैं नारी गीली मिट्टी सी, तुम बन जाओ कुम्हार जिस रूप में ढालोगे मुझको दिल , से निभाऊंगी वो किरदार........। जो रूप दोगे राधा का प्रीत की रीत निभाऊंगी, आधा होके भी पूरा होता,प्रेम तुम्हें दिखलाऊँगी मैं हर किरदार निभाऊंगी...............। जो रूप दोगे सीता का धर्म कर्म सिखलाउंगी, अग्नि परीक्षा दे के धरती में समा जाऊँगी मैं हर किरदार निभाऊंगी..........। जो रूप दोगे रानी का रणनीति भी दिखाउंगी, ममता को आँचल में बाँध युद्ध करके दिखाउंगी मैं हर किरदार निभाऊंगी..........। जो रूप दोगे क्षत्राणी का राजनीति भी सिखाऊंगी, शत्रु जो डाले बुरी नज़र  जौहर भी करके दिखाउंगी मैं हर किरदार निभाऊंगी...........।                                  ऋचा कर्ण✍✍                           

गलत तो कहीं भी हो सकता है

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"अरे हरिशा तुम तैयार नहीं हुई ?जल्दी करो तुम्हारे पापा तुम्हे जाते हुए छोड़ देंगे ,वरना मुझे जाना पड़ेगा " शिल्पा ने अपनी बेटी तनु से कहा । "मम्मी बस दो मिनट, आई आप भी ना हमेशा जल्दी में रहती हो पापा चले गए तो क्या हो गया मैं खुद चली जाऊंगी यहीं पास में तो है मेरा कॉलेज " तनु ने कहा और बालों को सही करने लगी । "नहीं बिल्कुल नहीं अकेली नहीं जाएगी तू ,जानती है ना _ _ _ _ _  "हां मां जानती हूं आज कल जमाना बहुत खराब है , अकेले लड़कियों का कहीं जाना सही नहीं है  है ना मां " इससे पहले शिल्पा कुछ बोलती तनु  बोल कर हस पड़ी । "हां यही अब जल्दी कर , शिल्पा ने कहा और खुद तनु के लिए चाय बनाने लगी । तनु चाय पीकर अपने पापा के साथ कॉलेज चली गई वहां उसे पता लगता है कि उसका उन्न बच्चो में नाम आया है जो हर साल कॉलेज की तरफ से दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपने कैरियर को लेकर विचार विमर्श करने वहां के प्रोफेसरों को मिलने जाते है  तनु  अपना नाम उस सूची में देख कर खुश हुई और उसने घर आते ही सबसे पहले अपने पापा को इस के बारे में बताया । ",क्या कह रही है तू होश में...

तुम्हारा दिल कहेगा

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 इतना आसान होता हैं क्या जीना किसी को भूल कर जो कभी हमें याद भी नहीं करते गीले शिकवे भूल कर अगर सच में ख़ुश हो मुझे तड़पते हुए छोड़ कर तो जाओ पूरी आजाद हो मेरी तरफ से दुबारा कभी मूड के देखना मत.....!! कभी नहीं सोची थीं की तुम ऐसे छोड़ जाओगे भूलना भी चाहुगी तुम्हे तो और भी याद आओगे हैरत में हूँ तुम्हे कोई तकलीफ नहीं होरही मुझसे दू जाने में तो.. जाओ पूरी आज़ाद हो सनम मेरे तरफ से पर दुबारा तकलीफ देने आना मत....!! मेरी प्यार की कहानी सब छल थीं या मेरे किस्मत मुझसे रूठी हैं सबके दिलो को जोड़ने वाली क्या पता थीं की खुद की दिल भी टूटी हैं.... कहासे लाते हैं इतना बड़ा दिल ओ दिलो से खेलने वाले जाना हैं न जाओ पर भूल कर भी अब किसी मासूम दिल को तोडना मत......!! कैसा दर्द होता हैं दिल के टूटने की जो बेज़ुबान हैं किस चीज़ की सजा देदेते हैं बिन सोचे जो दिल बेगुनाह हैं इन होठों पर मुस्कान की बारिश हुआ करती थीं कभी हर पल मुझे तो रुला दीया बेदर्दी अब किसी की लबों की हँसी छीनना मत...!! जिस ज़ुबा से आज मुझे भूलने की दावा कर रहे हो क्या यही तक था तुम्हारा झूठी प्यार जो यही से ...