विश्वास घात


धरती से अब दोमुंहे सर्प गायब हो गए है,
क्योंकि इंसान भी अब दोमुंहे हो गए है।
इंसानियत और ईमानदारी का मुखौटा पहन लेते है,
और अपनों को ही पीछे से 
विश्वासघात के विष से डस लेते है।
हाथी के दांत जैसा इनका व्यक्तित्व हो गया है,
इस झूठ और बेईमानी में सच्चा इंसान खो गया है।
लोभ और पाप के वशीभूत हर व्यक्ति हो रहा है,
इस क्षणभंगुर जीवन को ही सत्य मान रहा है।।

शीला द्विवेदी "अक्षरा"

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४