------जज़्बात-----
दर्द दिल का उसे क्यूँकर दिखाया जाए
वो मिले किसी मोड़ पे तो मुस्कुराया जाए
है शर्मिंदा वो खुद अपने हालात पर
क्यूँकर उसे उसकी नजरों में गिराया जाए
सितम किये होंगे सितमगर ने बहुत
लड़खड़ाया है वो चल हाथ बढ़ाया जाए
प्यार का शायद हो यही उसूल
सताया उसने पर उसे ना सताया जाए
वादा भले रहा हो फलक तक साथ चलने का
अब वो जाना चाहता है चल उसे छोड़ आया जाए
जिसकी वजह से मेरे चेहरे पे मुस्कान अब भी है
उसे कैसे कोई गम दूँ उसे क्यूँ रुलाया जाए
चंद लाइनों में समेट दी जिंदगी अपनी
क्यूँ रो रो कर सबको अपना हाल सुनाया जाए...
---दीपक कुमार
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