बेटी


 पेड़ की डाली पर न उतरती हैं बेटियां,
बेटों की तरह उसी प्रक्रिया से,
कोख में आती हैं बेटियाँ।
फिर क्यों बेटों की तरह दुलार मान , न पाती हैं बेटियाँ।
 बेटों को बड़े कॉलिज ,इंस्टिट्यूट,
फिर क्यों , विद्यालय तक समिट कर रह जाती हैं बेटियां।
बेटे तो रहते  हैं तमाम उम्र बहुत लापरवाह  से,
बचपन में ही संवेदनशील हो जाती है बेटियां।
हर हाल में सबका रखती ख्याल,
 फिर क्यों वो अधिकार न पाती हैं बेटियां।
बेटा तो होता एक घर का चिराग,
दो -दो घरों को रोशन करती हैं बेटियाँ।
 चाँद और तारों पर घर बनाने की बात करने वालों,
 अपनी सोच भी ऊँची रखो यह चाहती हैं बेटियां।

अंजू दीक्षित,
बदायूँ,उत्तर प्रदेश।

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