जीवन की संध्या घिर आई
जीवन की संध्या घिर आई ,
जीवन के रिश्ते नातों को जीते ।
**
अब व्याकुल मन कहता ,
सांझ जीवन की घिर आई ।
**
अब संध्या का रवि ढल कहता ,
खुले आकाश में सांस तो लो ?
**
नदिया कहती शिथिल पिन्जडा,
अब शीतलता के साथ जियो ।
**
सूरज की ढलती बेला में ,
शान्ति का अहसास करो ।
**
जो चढ़ता तेजस्वी होकर ,
ढलने पर लालित्य भरे ।
**
सांझ की सुरमई शीतलता ,
ढलती उम्र के साथ जियो ।
**
एक पड़ाव ऐसा भी आता ,
स्वीकार्य हर्ष के साथ करो ।
**
अपनी लालिमा भरो रिश्तों में,
खुशी रिश्तों में बाँट जियो ।
**
प्रकृति संध्या संग सजती है ,
ध्यानस्त योगी आदित्य बना ।
**
सांझ ढले खुलकर प्रकृति के ,
साथ जियो ।।
**----अनिता शर्मा झाँसी---**
**----स्वरचित रचना ----**
Comments
Post a Comment