इंद्रधनुष


मैंने अपने आँगन में 
कुछ विरवे रोपे थे 
खाद पानी से सींचा 
और बहुत दुलराया
और एक
 दिन चटकी कलियां
फूल और फल भी आये 
संग साथ में  तितली लाये
रंग कई बिखराये।
गौरैया और छोटी चिड़िया
 नृत्य गान करती है,
और गिलहरी आंगन में 
झूम झूम नचती है,
सूने निर्जन आँगन में 
रंग समाए सातों ऐसे
आसमान का इंद्रधनुष 
घर मेरे आया हो जैसे!!
क्यों कहते रहते हो ?
अब समय है बदला
और नीरस है जीवन
तुम भी तो कुछ विरवे रोपो
अपने मन के आँगन।


              - कीर्ति प्रदीप वर्मा

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४