ओ मां मेरी----
ऐ मां मेरी सुन मां मेरी ओ मां मेरी-----
तुझको मैं याद करती हर घङी;हर घड़ी।
भूलूं तूझे कैसे?वो पथ मुझे दिखता नहीें ,दिखता नहीं।
ए मां मेरी-----
अब तुझको कहीं खोजती नहीं ,
अम्बर से तेरा पता अब पूछती नहीं।
ढूंढती हूं तुझको अब खुद में कहीं।
ओ मां मेरी----ओ मां मेरी।
तू मुझमें ही कहीं सोई है
मेरे अन्तर में ही कहीं खोई है।
तुझको जगाती हूं
हर रोज बुलाती हूं।
मेरे अन्तस से जब तू झांकती है।
मन के मुरझाये फूल खिलाती है
तुझको ही अर्पण करती हूं।
तेरे आशीष से आँचल भरती हूं ।
खुशियां जो तुम बिखेरती थी
अपने इन आँचल में अब समेटती हूं।
शिकवा अब कोई करती नहीं।
तू गूंजती है,मन में ही कहीं~
जैसे हों कीर्तन के बोल
दूर से आती कानों में।
तुझसे मिलती हूं,बातें हजार करती हूं
हर पल यही,हर पल यहीं।
तू मुझमें ही कहीं खोई है।
नींद में सोई है।
ऐ मां मेरी----"
एक बार मुझे भी सोना है।
तेरे गोद में मुझे खोना है।
ए मां मेरी ,सुन मां मेरी।
तू गंग में बहती रही
मैं चुपचाप तकती रही।
अब रोज स्पर्श मैं करती हूं।
गंग जल में तेरे अवशेष हैं ।
तुझको ही अर्पण करती हूं।
चुपचाप मैं भी बहती हूं;
तेरे संग बीते पल मेरे अनमोल हैं।
इनको ही अब बुनती हूं।
कोई शिकवा ईश से करती नहीं,करती नहीं।
ओ मां मेरी सुन मां मेरी-----
✍डाॅ पल्लवी कुमारी"पाम
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