कागज के फूल
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आओ सुनाऊं आपको एक प्यारी सी कहानी---
छोटी सी एक गुड़िया थी करती थी नादानी,
सुंदर रूप सलोना उसका,उससे सुंदर मन था उसका,
नये नये वो करतब करती नए-नए वह खेल दिखाती--- सुंदर सी मुस्कान से सारे घर को चमकाती,
लाड प्यार से पल रही थी जैसे कोई राजकुमारी---
मल्लिका पापा के दिल की वो और मां की राजदुलारी,
चारों पहर वो खेल रचाती,कभी मिट्टी का घर बनाती---
कभी कागज की नाव तैराती,अपनी सखा सहेली संग--- वो कागज के फूल बनाती,
और उन फूलों को लेकर प्रभु के चरणों में चढ़ाती,
ली वक्त ने एक करवट आई तूफानी एक आहट---
कहते हैं बुरा वक्त दबे पांव ही आता है,
खुशमिजाज फुलवारी पर बुरी नजर लगाता है,
एक जहरीली हवा का झोंका अचानक से आया---
गुड़िया का चेहरा धीरे-धीरे अकस्मात मुरझाया,
तबीयत हुई उसकी नासाज मिला नहीं कोई इलाज--- दिन-ब-दिन मुरझा रही थी,
उसके सखा सहेली मिलकर प्रभु से अरज लगा रहे थे--- सांस टूटने वाली थी दम उसका घुटने लगा,
उसकी मां बाबा के सर पर,दुखों का पहाड़ टूटने लगा---
हे प्रभु कर दो उपकार गुड़िया का कर दो उपचार,
झटपट से बच्चों ने मिलकर कुछ कागज के फूल बनाए-- परम स्नेह और श्रद्धा से प्रभु के चरणों में सजाएं,
हे प्रभु क्षमा करना खुशबू नहीं है फूलों में,
लेकिन मन के भाव छिपे हैं श्रद्धा है इन फूलों में---
कर दो अच्छा बच्ची को गुड़िया पर उपकार करो--- झर
झर बह रहे थे आसु ,अपनी व्यथा कह रहे थे,
बच्चों की व्यथा को सुनकर और श्रद्धा को देखकर---
एक नजर कागज के फूलों पर उसने घूमाई थी,
मासूमियत को देखकर प्रभु के होठों पर हंसी आई थी, दिया आशीष गुड़िया को पल में आंखें खोली थी---
आंख खोल कर सबसे पहले मां बाबा वो बोली थी,
श्रद्धा में शक्ति होती है श्रद्धा भाव महान है,
इन श्रद्धा के भावों से नहीं खुदा अनजान है ,
हो चाहे कागज के फूल या हो सुगंधित गुलदान---
आस्था में शक्ति है नहीं कोई दूजा भाव महान।
संगीता वर्मा
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