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Showing posts from August, 2021

विरह

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उनके विरह की रात अब , कटती नहीं मैं क्या करूँ। प्रिय मिलन की आस लिए , जगती रही मैं क्या करूँ। बिंदी सजा के कैसे लगूं ,कोई न देखे  मन  व्यथा। बेला कली भायी नहीं ,चुभती रही मैं क्या करूँ। वेणी सजा ली केश में, प्रिय के विरह,के फूल से। अब दंश  बन चूसे मुझे ,खिलती  रही मैं क्या करूँ। चूड़ी चुभे कंगन चुभे , श्रृंगार भी भाते नहीं। पायल बजे गम्भीर स्वर, छलती रही मैं क्या करूँ। संगीत की धुन नहिं लुभाती, साज भी, सजते नहीं। इस पीर में  पीड़ा घुसी ,मन खुश नहीं मैं क्या करूँ। आँखे व्यथित थी देखकर ,उस दिन विदा होते हुए। मेरे लिए  तड़पन लिखा , ये ही सही मैं क्या करूँ। स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह' 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿

"" बेरोजगारी""--:

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🥀🌹🥀🌹🥀🌹🥀🌹🥀 सरकारी नौकरी लगने का  अब इंतजार मत किजिए ओवर एज हो जाएंगे अब कोई स्वरोजगार किजिए कहीं मजहबी अत्याचार तो कहीं महंगाई की मार  हाथों में डिग्री लिए देश का युवा खोज रहा है रोजगार कभी एग्जाम कभी रिजल्ट  कभी ज्वाइनिंग का इंतजार है सिर्फ नौकरीयों में  अब इसका परिहार किजिए  मिनिमम इन्वेस्टमेंट में मैक्सिमम इनकम की गारंटी है छोरिये शर्म उठाइए ठेला हर शाम का बाजार किजिए बेरोजगारी का जो दाग लगा है आपकी दामन पर  जो सब देते हैं ताना  लानत है तुम्हारी जिंदगी पर अब उठिए हर रोज ५०० रुपए से ज्यादा कमाकर उसे बेदाग दार किजिए जो चाकलेट न देने से  कभी खफा हुईं थीं  आपकी माशुका महंगी गिफ्ट दिजिए और अपने इश्क का इजहार किजिए ये जान लीजिए कोई भी  धंधा छोटा नहीं होता  धंधा किजिए खुद को और सब को खुशहाल रखिए सरकार भी कहती हैं बेरोजगारी से अच्छा  कोई रोजगार किजिए स्वरचित कविता ✍️ सर्वाधिकार सुरक्षित अफ्फान हाजिपुरी 🥀🌹🥀🌹🥀🌹

क्लास बंक भाग १

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ये मेरी  वास्तविक कहानी है, जब मैं कक्षा तीन में थी । गांव में सर्वत्र अशिक्षा का माहौल ब्याप्त था। एक प्राइमरी स्कूल भी था गांव में, मेरे घर से पैदल जाने में बीस मिनट लगते। पर कोई भी अपनी लड़की को स्कूल नहीं भेजता था।  स्कूल तक जाने का  कोई सायकिल वाला रास्ता नहीं था।  खेत की पगडंडीयो से होते हुए भैया या पापा मेरे साथ प्रतिदिन जाते-आते थे।  हमारी फैमिली ने सभी पडोसियों से आग्रह किया कि अपने बच्चियों को स्कूल अवश्य भेजें। फलस्वरूप एक पड़ोस की लड़की मीनू  मेरे साथ स्कूल जाने लगी। तबसे भैया -पापा को नहीं जाना पड़ा।  मीनू का गांव में दो जगह मकान था, जहां एक जगह पूरा संयुक्त परिवार रहता था।और एक मकान हमारे घर के समीप था जहां सिर्फ महिलाओं का जमावड़ा लगा रहता।  बड़ा सा घर जहां घर के अंदर एक बड़े से आंगन में बगीचा भी था। वहीं अमरूद का पेड़ और शहतूत के साथ अन्य पुष्प के पौधे भी थे। बड़ा मनोरम स्थान था जहां महिलाएं गपशप करती और हम बच्चे अमरूद और शहतूत खाने में लग जाते। प्रतिदिन की भांति मीनू के साथ मैं स्कूल के लिए निकली।  अमरूद घर के सामने प...

पुरुष भी प्रताड़ित होता है ....।

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पुरुष भी प्रताड़ित होता है .....। तानों को भी सुनता है , पिसता, घुटता रहता है , अंदर ही अंदर बिखरता है , पुरुष भी प्रताड़ित होता हैं। रोता भी नहीं है , ना ही कुछ कह  पाता है , पिघलता नहीं आंसुओं में , प्रस्तर बन टूटता रहता है  पुरुष भी प्रताड़ित होता है ...…। सताया तो यह भी जाता है उलाहनों में तड़ पाया जाता है , दहेज का आरोप लगा , मान सम्मान स्वाहा कर दिया जाता है।  पुरुष भी प्रताड़ित होता है....।  जी तोड़ मेहनत करता है , तिनका तिनका जोड़ता है , परिवार की खुशियों में , अपनी खुशी खोजता है । पुरुष भी प्रताड़ित होता है....।  विवाह अग्नि में आहुति पुरुष भी देता है  संग अपने नए रिश्तो को जोड़ता है , जिम्मेदारी की बाढ़ में झोंक दिया जाता है । पुरुष भी प्रताड़ित होता है....।  मजबूती का ठप्पा लगा मुझ पर , इज्जत तार-तार कर दी जाती है , रिश्तो में रोजगार में बेवजह आरोप से , छलनी मेरा स्वाभिमान कर दिया जाता है । पुरुष भी प्रताड़ित होता है .......। एक ऊँगली औरत की उठती है , मुझ पर व्यंग बाण चल जाते हैं, ' कई बार बिना गुनाह के भी,  सलाखों के पीछे कर दिया जाता ह...

समुंदर में सूर्योदय

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   चैन्नई के बीच पर थोड़ी खाली जगह पर मजदूरों की टोली परिवार सहित टिकी हुई थी। न जाने कितने साल बीत गये। किराये पर कमरा लेने की हैसियत न थी। और खाली जगह का कोई पूछने बाला न था। तो बस इसी जगह छोटे छोटे झोंपङ पट्टों में आशियाना बना रहते आये थे।      सूरज को उगते देखना रईसों का शौक है। तभी तो इतनी दूर बस सूरज को उगते देखने आते। मशहूर तमिल अभिनेत्री संजना अभी तक एक फ्लैट में रहती आयी थी। पर समुद्र के किनारे एक बंगला बनाने की तमन्ना मन में घर कर रही थी। फिर एक दिन खाली जगह उसकी नजर में आयी। भिखमंगों का कब्जा था। पर इनकी जगह नहीं हो सकती। इनमें कहाॅ बूता कि जगह खरीद सकें। जगह का मालिक कहीं विदेश में रहता था। संपर्क करके जगह खरीद ली।      एक दिन समुंदर से सूरज निकला। सैलानी प्राकृतिक सुंदरता को देख रहे थे। कुछ बुलडोजर झोंपङियों को साफ कर रहे थे। मजदूरों के परिवार अपने सामानों को बचा रहे थे। समुंदर से सूर्योदय के समय उन्हें अपना सूरज समुंदर में डूबता दिख रहा था। दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'

" मोहन "

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देखूं खुद को जब जब आइने में " मोहन " तेरा ही अक्ष नजर आता है  नाम लेती हूं किसी और का  " मुख " से नाम तेरा ही निकल जाता हैं .......@ नेहा धामा " विजेता "  बागपत , उत्तर प्रदेश

मां

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🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻 कोई अस्तित्व मेरी इस ज़िन्दगी की जो तेरे आँचल में मेरी जीवन मिला न होता क्या होती वज़ूद मेरे ज़िन्दगी की इस जहाँ में जो माँ तेरे साये में हमारी जीवन पला न होता...!! जिसको देखकर सवर गयीं मेरी ज़िन्दगी उस हकीकत की मेरी आईना हो तुम कबकी बिखर गयीं होती ये ज़िन्दगी मेरी जो माँ तुमने मुझे प्यार से संभाला न होता....!! दुनिया ने ठुकरा या मुझे ज़िन्दगी के हर कदम पर ढाल बनके खड़ी रही अपनी गुड़िया की तुम जाने क्या अंजाम होती में एकेली इस दुनिया में जो माँ तेरे साथ का सहारा हमें न मिला होता....!! हर कोई बोझ समझा अपने ज़िन्दगी के लेकिन हमें अपने ममता से संवार कर रखी तुम मिट गयीं होती हमारी भी हस्ति इस ज़ालिम दुनिया से जो माँ तुमने भी हमें सबकी तेह ठुकरा दिया होता...!! हर कदम पर जरूरत होती माँ बाप की हमारी ज़िन्दगी में पर एकेले ही दोनों की हर एक फ़र्ज़ निभायी हो तुम कभी नहीं समझ पाते हम अहमियत रिश्तो की जो माँ तुमने हर एक रिश्ता निभाना सिखाया न होता....!! 🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻 नैना....✍️✍️

विश्वास

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एक बार परख कर बार-बार तो मत परखो,   किसी के विश्वास पर कुछ तो विश्वास  रखो। हैऔरत काली भी, दुर्गा भी और लक्ष्मी भी,  क्यों उसके चरित्र पर बार-बार उंगली रखो।  सर्वस्व न्योछावर कर देती है सात फेरों की अग्नि में,  तो क्या उसके दिल को भी तुम ना रखो।  कभी सीता ,कभी मीरा ,कभी द्रौपदी बनती आई,  आज उसके आंसुओं का कुछ तो मान रखो।  न समझना कमजोर बस उसके दिलो दिमाग को ,'सीमा'  बनी चिंगारी गर वो तो टूटे घरों का मजा चखो। स्वरचित सीमा कौशल  यमुनानगर हरियाणा

पापा के सपने

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जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं पापा ईश्वर आपको हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रखे🙏🙏😊😊🎂 आपके जन्मदिन पर मेरी ओर से शब्दों का उपहार😊 पापा के सपने को पूरा करने में चली.....। पापा का था शौक,  कविताएँ लिखना थाम कलम हाथों में कविताएँ मैं लिखने लगी पापा के सपने को पूरा करने मैं चली........। मेरी कविताएँ पढ़ कर पापा आप खुश हो जाते, जो मिलता कभी मुझे सम्मान फुले नहीं समाते सोचते होंगे पापा आप आया कहाँ से मुझमें ये गुण आखिर मुझमें है पापा आपका ही तो खून आप हो मेरी प्रेरणा आपसे मैं सीखती रही पापा के सपनों को पूरा करने मैं चली........। जो कभी होती लेखनी में गलती वो आप सुधारते, सकारात्मक सोच रखो अपनी हमेशा यही समझाते पापा के हौंसलो से मैं उड़ान भरती रही पापा के सपनों को पूरा करने मैं चली........। मैं नहीं जानती पापा आपकी कलम क्यों रुक गई, चमत्कार कहूँ या आशिर्वाद मेरी कलम क्यों चल पड़ी अपने पापा का नाम रौशन करने मैं चली पापा के सपनों को पूरा करने मैं चली........।                                 🙏ऋचा कर्ण🙏✍✍😊

कर्म और मुस्कान

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श्री कृष्ण सिखाते हैं कर्म और मुस्कान। जीवन है खोना और खोना भ्रम रहता है पाने का।। कर्म हीन बनकर हम खोते अपना भाग्य। कर्म वान बनकर हम पाते जीवन का सौभाग्य।। अंधविश्वासों में पड़ कर बढ़ा रहे दुर्भाग्य। श्रम से नाता तोड़कर हुए आलसी आज।। बीमारियां कर रही हम पर देखो राज।। मेहनत की कमाई अस्पताल में गंवाई। दोष देते भाग्य को गलती है अपनी सपनों में खो कर राह छोड़े अपनी।। योग प्राणायाम करते श्री कृष्ण सदा स्वस्थ रहते बांटते कर्म और मुस्कान। बांसुरी बजाते जन मन हरसाते दुष्टों की दुष्टता क्षण में  मिटाते।। स्वरचित मौलिक प्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ आशा श्रीवास्तव जबलपुर

वफा

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सागर में उतर कश्ती, सागर से क्यूँ डरे,  लक्ष्य को साध,सपने पूरे हो तो अच्छा है।  सवालों में लिपटा ज़माना हंसता ही रहा,  जवाब भी माकूल मिल जाए तो अच्छा है।  नवाजिश से मिले आप,शुक्रिया खुदा का,  पराजित हो जाएं ग़र इश्क में तो अच्छा है।  दिन ढ़ले कयामत की रात भी देखो आ गई,  ख्वाब नैनों में ही मचल कर रह जाएं तो अच्छा है।  आज फिर दिल को याद आए वफा बेहिसाब,  "झा"एक हर्फ हमने भी कहा होता तो अच्छा है।  आरती झा(स्वरचित व मौलिक)  दिल्ली

गुलामी मर्दन की प्रेरणा मदन जी धींगरा---

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उद्देश्य पथ का दृढ़ निराला परिवार परिवश परिधि से स्वच्छंद स्वंत्रता की वेदना अन्तर्मन।। स्वादेशी का दीवाना अंग्रेजी अंग्रेजीयत नीति नियत प्रतिशोध।। कर्म काल युवा नौजवान मदन धींगरा क्रांति की लौ भारत की युवा जगृति प्रेरणा मशाल बोध।। शिक्षा समय काल से गुलामी विरोध अंग्रेजी वस्त्र का विरोध।। पिता इच्छा से लंदन शिक्षा वीर सावरकर साक्षात्कार प्रभाव गुलामी का प्रबल प्रतिरोध।। इंडियन हाउस में श्याम कृष्ण वर्मा की आशाओं का विश्वाश स्वतन्त्रता सोच।। सार्थकता का निर्विकार अविरल भाव प्राभा प्रवाह साहस शक्ति  उदयीमान सौर्य अजोर।। सावरकर की परीक्षा हाथ मे सूजे को दिया घोप ना दर्द पीढ़ा सिर्फ हृदय में गुलाबी की ज्वाला प्रतिरोध।। कर्नल वायली को मौत के घाट उतारा पश्चाताप नही अत्याचार गुलामी भारत  जन जन आकांक्षा स्वतंत्रता सत्य सोच।। अच्छा खासा परिवार पिता की चाहत का सत्य मूक प्रतिरोध।। सात भाईयों में छठा मदन ऐसा क्रांति अजोर जिसके प्रकाश विश्वास परिवार को अस्वीकार ।। किया भारत के जन जन की आत्म स्वर ने स्वीकार लंदन में गर्जन गर्जना शेर शौर्य की युवा युग ने अंगीकार किया।। नंदलाल मणि त्रिप...

"औरत"

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♥️🙏♥️🙏♥️🙏 हिम्मत की हौसले की दीवार है औरत जो मुश्किलों को कांटे वो तलवार है औरत आंधियों में भी अपने उम्मीद की दियों को बुझने नहीं देती  ऐसी निडर हिम्मतदाड़ है औरत ताकत को इसको तुमने अभी जाना है कहां तुफाने जिंदगी की पतवार है औरत मुंह तोड दुश्मनों को ये देती है जवाब ये जिंदगी के हर जंग की हुंकार है औरत पैसों के बल से क्या खरिदोगे तुम समझा है क्या तुमने बजाड़ है औरत कभी मां कभी बहन कभी पत्नी बनकर संवारती है जिंदगी  मानो सबकी जिंदगी की अटूट प्यार है औरत दो घड़ों की जिंदगी को स्वर्ग सा सुंदर बनाती है  खुद जलकर दुसरों को रौशनी देती है ऐसी समझदार है औरत इसके वगैर दुनिया का वजूद है कहां मरियम सीता फातिमा का किरदार है औरत इनके मुकाबले हुकूमत क्या करे कोई  सुल्ताना लक्ष्मीबाई की अवतार है औरत आओ हम सब मिलकर इनको इज्जत करें ये हम-सब की इज्जत का हकदार हैं औरत  ♥️🙏♥️🙏♥️🙏 स्वरचित कविता ✍️ सर्वाधिकार सुरक्षित अफ्फान हाजिपुरी

प्रथम प्रेम पत्र

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कैसे शक्य, क्षत्रिय कन्या लिखे पत्र प्रेम का मन में बसे प्रियतम आराध्य को वरतीं आयीं निज अनुसार पति मन में बसा देख स्वयंवर सभा में क्षत्रिय राज कुमारियां निज चाहत लिख खत किया किसने अभी तक अज्ञात प्रिये मुझको क्या मैं ही पहली नारि धर्म शास्त्रों के ज्ञाता लिखे मनु ने विवाह प्रकार अष्ट न उत्तम सभी कन्या रुचि न विचार विवाह नहीं बृह्म क्यों सर्वश्रेष्ठ निकृष्ट कैसे कम आसुरी विवाह से सुन गुण मुनियों से उठी उमंग प्रेम की  मधुसूदन, प्रेम में आपके  विदर्भ राज दुहिता के  भाई की जिद  बहन ब्याहे चेदि कुमार से गुणों में हीन  लंपट शिशुपाल संग  बृह्म विवाह सर्वोच्च  अनुरूप कन्या हेतु  विचारते अनुरूप वर अभिवावक कन्या से पूछकर रुचि कन्या की अवहेल  प्रेरित स्वार्थ से निज हित साधन  विवाह क्या कम कन्या बिक्री से  लिखती प्रेम खत  कुमारी अभागिनी  आओ प्रियधन  अपनाने प्रेयसी को अक्षर त्रुटि अनेक  मन प्रेम पढिये  आइये अपनाने  दासी रुक्मिणी को  प्रेम हित लगाते दाग  सुने अनेकों चरित  अनुरोध करती  कन्या हरण का...

हर अफसाने में

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🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 कैसे नज़रअंदाज़ कर दू तुम्हे सनम तुम बसते हो मेरे दिल के आईने में दुनिया से जुदा ज़ब तन्हा होती हूँ घिर जाती हूँ मैं तेरे यादो के आशियाने में जानती हूँ जान से भी ज्यादा चाहते हो मुझे देखा करते हो छुप छुप कर आँखे मिलाते नहीं सामने दुनियाँ से जुदा हर एक अदा है तुम्हारी यूँ बेपनाह प्यार तेरा जताना मुझ से कहते नहीं जो बात लबों से कभी हम सोचते है एक बार देखे तुमसे इजहार करके शायद तुम भी कर लो एकरार प्यार की चुरा लो मुझे भी तूम किसी बहाने से क्या तुम्हे भाता है मुझे इस तरह तड़पना या कोई डर है तुम्हे इस ज़माने की रुसवाई से कभी तो कहाँ करो क्या है राज़ तेरे यूँ दूर रहने की क्या मिल जाता है सुकून तुम्हे मेरे दिल जलाने में जी लोगे तुम शायद गैरों के साथ ज़िन्दगी पर मैं मिट ना जाऊं कही तुमसे दिल लगाने में शायद मिट जाऊ मैं तेरे ख्यालो से कभी पर लिखें जाओगे तुम नैना के हर अफसाने में 🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 नैना....✍️✍️

विदेशी बहू स्वदेशी संस्कार

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  रेवती जी चिंता के साथ-साथ डरी भी हुई थीं जब से उनके बेटे भारत का फोन आया था फोन पर उसने कहा कि, वह अपनी पत्नी लिजा के साथ हमेशा के लिए भारत आ रहा है अब वह उनके साथ ही रहेगा। अपने बेटे की बात सुनकर रेवती जी ख़ुश होने के स्थान पर चिंता में पड़ गई कि,वह अपनी विदेशी बहू के साथ कैसे रहेंगी जिसकी परवरिश विदेश में हुई है जो पाश्चात्य संस्कृति में रंगी होगी वह इस छोटे से शहर में भारतीय संस्कारों को मानने वाले अपने सास-ससुर के साथ कैसे रहेंगी वह तो विदेशियों के कपड़े पहनेंगी मैं अपनी बहू को ऐसे कपड़ों में कैसे देख पाऊंगी यहां के लोग क्या कहेंगे यही सब सोच-सोच कर रेवती जी की चिंता बढ़ती जा रही थी। रेवती जी अपने घर के बाहर गार्डन में बेचैनी से टहल रही थीं तभी उनके पति सुरेश वहां आ गए उन्होंने रेवती के चेहरे की परेशानी को भांप लिया वह उनके पास आकर हंसते हुए बोले " क्या बात है मैडम आज आप बहुत परेशान लग रही हैं"?? "जब बात परेशानी की है तो परेशान होना लाजिमी ही है" रेवती जी ने झल्लाकर जबाव दिया। " ऐसी क्या परेशानी आ गई जिसने तुम्हें इतना परेशान कर दिया है हमें भी तो आपकी पर...

एक पिता का त्याग

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कंकड़ पत्थर चुन चुन उसने मंजिल तक तुझको पहुंचाया कांटे चाहे लाख चुभे पर कभी नही था वो घबराया टूटी चप्पलें पहन पहन कर अपने दिन उसने काटे थे पर तेरी कामयाबी पर गलियों में लड्डू बांटे थे फटी शर्ट और फटे हैं जूते इस पर उसका ध्यान कहां था उसकी दृष्टि बेटे पर थी जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए खड़ा था रात रात भर जाग के उसने अपने घर का बजट बनाया बहुत कटौती की थी उसने पर तेरा लक्ष्य तुझे दिलाया आज उसी इंसान की आंखे क्यों चुपके चुपके रोती हैं तेरे लिए वो हरदम जागा तेरी भावना क्यों सोती हैं? क्या उस बाप के आंखों में तुझको विश्वास नहीं दिखता अपना परिवार अलग कर लिया मां बाप का त्याग नहीं दिखता संगीता शर्मा "प्रिया"

अधूरे जज़्बात भाग :- १२

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                 जिस प्रकार  सच सुनने के लिए  संयम और हिम्मत  की आवश्यकता होती है ठीक  उसी प्रकार  सच बोलने के लिए भी  संयम और हिम्मत की जरूरत पड़ती है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि  हमारे जीवन में घटित  कुछ बातें ऐसी होती हैं  जब हम उन बातों को  दूसरों के सामने लाते हैं तो भूकंप  वाली परिस्थितियों का आना निश्चित हैं । ऐसे में सुनने वाला या  बताने वाला और कभी - कभी तों  दोनों को ही विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता हैं इसीलिए सच सुनना जितना कठिन  होता है , बोलना तों उससे  भी अधिक कठिन होता है । इन सारी बातों का भान अरण्या को‌ था लेकिन वह किसी को धोखा देना नहीं चाहती थी इसलिए उसने सच को उजागर करने का दृढनिश्चय कर लिया था और वह अभी भी इस पर अडिग थी ।  ' हाय !  आई  एम  अरण्या ,  नाॅट शिविका ।'   अरण्या ने अपना दाहिना हाथ सुजाॅय की तरफ बढ़ाते हुए कहा ।  ' आई  नो  वेरी  वेल दैट यूं आर अरण्या ।'   ...

लखनऊ

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लखनऊ 18 वीं, 19वीं सदी के दौरान  भारत के कलात्मक,और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। नवाबों द्वारा बनाई गई कुछ विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक धरोहरें इस शहर की शान में चार चांद लगाती हैं। कहते हैं इस ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी को श्री राम के अनुज लक्ष्मण ने बसाया था , उस समय इसका नाम लक्ष्मणपुरी के नाम से विख्यात था।गोमती नदी के तट पर बसा लखनऊ वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राजधानी है। नवाबों की इस नगरी को शायरों ने अपनी शायरी में सजाया है लौट आया दिल फिर उन गलियारों में बीता था बचपन जहां चंद यारों में जहां की हवा भी अदब से चलती है दबे पांव वो मुझसे कहती है मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं। गंगा जमुनी संस्कृति को अपने में समेटे ,यह  तहजीबों  का शहर है। ये शहर मुख्य रूप से अपने शाही दख्तरखानों,और चिकनकारी के लिए मशहूर है। कैसे पहुंचें उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के कारण आवागमन की हर सुविधा उपलब्ध है,हवाई,सड़क और रेल मार्ग से आप यहां पहुंच सकते हैं। यहां यूं तो बहुत कुछ है देखने को ,लेकिन आज कुछ चुनिंदा दर्शनीय स्थलों के बारे में संक्षिप्त रूप से जानते हैं। _ बड़ा इमामबाड़ा ...

"श्रीकृष्ण भजन"

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"कान्हा तेरे नाम की, करती जय-जयकार। भक्ति भाव की उर मिरे, बहती निर्मल धार।। छप्पन मेवा साथ है, चरणामृत की धार। माखन मिश्री भोग हैं, करूं खूब श्रृंगार।। जीवन के हर मोड़ पर, तुझसे करूं पुकार। तुम्हीं मेरे उर में बसे, तुमसे मुझको प्यार।। तेरे द्वारे पर लगी,  मोहन भीड़ अपार। तेरी दया से ही भरे, भक्तों का भंडार।। खुशहाली की धूम है, गोकुल में चहूं ओर। मुरली की धुन पर नचे, वृंदावन का मोर।। तीन लोक आधार तुम, तुमसे है उद्धार। भक्तों के उर में बसे, सिर्फ तुम्हारा प्यार।। यमुना तट पर रच रहे, मोहन रास अपार। गोपीयंग संग राधा नचें, अलबेली सरकार।। हर नारी बन द्रोपदी, करे करुण चित्कार। आओ कृष्ण मुरारि अब, कर दो बेड़ा पार।।"                              अम्बिका झा ✍️

कान्हा आजा ----

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महाप्रलय में मत्स्य रूप मनु मानव नारी सतरूपा सृष्टि का निर्माण ,कान्हा आजा तुझको पुकारे संसार।। मंदराचल धारण के कच्छप सागर मंथन के  रत्न  देवो तत्व के अमृत दानव अहंकार का अभिशाप।।  अविनि हरण का हिरण्याक्ष अस्तित्व अविनि के बाराह कान्हा आ जा तुझको पुकारे संसार।। पग तीन में लिया नाप ब्रह्मांड  बलि गया पाताल दानव सत्ता का अंत कान्हा आ जा तुझको पुकारे संसार।। श्री हरि नाम जगत उपकार हरि नाम रटत बालक प्रह्लाद  श्री हरि नरसिंह नाम कान्हा आ जा तुझको पुकारे संसार।। अन्याय अत्याचार के पर्याय शासक जन जन की त्राहि त्राहि अन्याय अत्याचार का नाश तुम परशुराम कान्हा आ जा पुकारे संसार।। मर्यादा की संस्कृति सांस्कार अवध पूरी के राम कान्हा आ आ जा पुकारे संसार।। सुनी अँखियाँ यशुदा की थक गई पंथ निहार कान्हा आ जा पुकारे संसार।। कोख की मर्यादा मान देवकी बसुदेव तेरो नाम जपत संध्या प्रभात कान्हा आ जा पुकारे संसार।। कारागार की दर दीवारें तेरे दरस की राह निहारे कब आओगे पालनहार कान्हा आ जा पुकारे  संसार।। नंदलाल मणी त्रिपाठी पीतांम्बर  गोरखपुर उत्तर प्रदेश

आज राधा रूठी है

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प्रभु क्रीङा की याद  पवित्र वृन्दावन धाम निकट राधा बल्लभ रहतीं विधवा नारि कहाती आनंदी माँ पूजती प्रभु श्याम रख वात्सल्य भाव सुत बना घनश्याम ज्यों हो नंदरानि आज राधा रूठी है रहतीं भावलोक में जग से अनजान राधा श्याम रचाते लीला मान वृद्धा को मात आज राधा रूठी है मंदिर माँ आनंदी बंद है आज बहू राधा आज रूठ गयी काहि लङका तैयार भूखा थक गया मनाय प्रभु कुछ करो उपाय आज राधा रूठी है मेरे कौन दस पांच एक सुत, बधू एक बधू सुंदरी सुलक्षणी पत्नी का अधिकार आज रूठ बैठी लङके से आज राधा रूठी है बहू जा अब मान सच बता बात क्यों रूठी है आज जग की क्या चिंता हो जा तैयार बनायी मनपसंद खिचङी लगा भोग मुस्करा दो अब आज राधा रूठी है अरे मंहगे वस्त्र चाहती राधा बेटी मैं कंजूस दोष न कृष्ण का भविष्य की चाह बहू बेटे के लिये बचत नहीं पसंद राधा को खूब पहनो खाओ मेरा कितना जीवन आज राधा रूठी है माँ चली तुरंत बाजार लायी मंहगें कपङों के भंडार  मंदिर में दर्शक अपार  पर्दे के पीछे माँ हर्षित  अब मुस्करा रही राधा  होती तैयार खुश होकर  कुछ मिनट में हटा पर्दा अद्भुत राधा कृष्ण का श्रंगार  एक अनजान सा रहस...

आइने में

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श्रीकृष्ण जन्म

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  जन्म लिए हैं श्रीकृष्ण हो श्यामा रोहिणी नक्षत्र में। घोर बारिश में आये हैं श्यामा कंस के जेल में। देवकी  कंस की प्यारी बहना, पिया घर छोड़ने ले जाता कंसा, सुन लिया आकाशवाणी हो श्यामा,  उस ने मार्ग में। नेह दिखाते हो जिस बहना पर,  आएगी उसके ही कारण आफत, आठवां पुत्र होगा काल हो श्यामा, तेरे जीवन में। आकाशवाणी सुन कंस घबराया, पति पत्नी को कारागार में डाला, मोही बन गया निर्मोही हो श्यामा, जीवन के लोभ में। भादो महीना तिथि है अष्टमी, काली अंधियारी रात है कितनी, माया जाल फैलाये हो श्यामा, पहरू सो गए  नींद में। बारह बजे अवतरित हुए हैं, वासुदेव जी चिंतित हुए हैं, सूप में रखकर लाल हो श्यामा, आये यमुना पार गोकुल में। नंद को सौंपकर जिगर का टुकड़ा, बार बार देखें लाल का मुखड़ा, बुझे मन से चल दिये हो श्यामा, नियति को भुगतने। पुत्र को सौंप के। स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'

दिल का आईना

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दिल के आइने में, तेरा अश्क़ बसाया है, कोई देख न ले, इसलिए दिल में छुपाया है, जब मैंने आईना देखा, मेरे चेहरे की जगह, तेरा चेहरा नज़र आया, मैंने घबराकर, बंद की आंखें, जो राज़ दिल में छुपाया, वह आइने में कैसे नज़र आया, अपनी ही नादानी पर, मैं मुस्कुराई, इश्क़ की नादानियां, कहां छुपती हैं, यह तो आईना है, जो जैसा है, वही दिखाएगा, इश्क़ कौन छुपा पाया है, हवाओं में भी, इसकी खुशबू बिखरती है, आज मन का राज़, आइने ने दिखाया है ।। डॉ कंचन शुक्ला स्वरचित मौलिक

शुभता का जन्मोत्सव

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आज ही के दिन कान्हा आए,  आज ही प्रकटी योगमाया... देव का कर होना था अंतर्ध्यान, नारायण से वर था पाया विश्व-दुर्ग से रक्षा करती शक्ति ने दुर्गा नाम था पाया!  ब्रह्मांड ने तब धरा पर  शुभता का जन्मोत्सव मनाया! आसुरी शक्ति के अंत का  वचन तब सच होने को आया! खिल उठे सब वन- उपवन,  भादों में भी आया सावन, अधीर यमुना का व्याकुल मन भी चरण पखार तब शांति पाया! महकी धरती, झूमा अंबर जीव कोटि का मन हर्षाया! देव कृपा से देव दृष्टि जो पडी बरसों से सूने आंगन में.. मैया यशोदा ने भी झूला सजाया!   पावन बेला ऐसी आई.. सांझी बेला में भी नंदबाबा के जीवन में आनंद भर आया! मोरमुकुट धारी कान्हा के दर्शन को देवलोक भी पृथ्वी पर आया!  मन मुदित, तन प्रफुल्लित  धरती ने भी उत्सव मनाया...  लीलाधर ने बडी लीला की,  नित्य नया इक रूप दिखाया- नटखट कान्हा यशोदानंदन  माखन खा आनंदित होते जितना भी दोनो, कम ही लागे, अत् वो नन्हा माखनचोर कहलाया!  भक्ति भाव ही ग्रहण किया जब जब कान्हा ने माखन खाया। बस भाव का भूखा है कान्हा, भाव- अ-भाव के मन ने  जीवन में अभाव ह...

एक कोरी स्लेट

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बच्चा  एक कोरी स्लेट है उस पर कुछ ऐसा लिखना पढ़े अगर उसको कोई तो  कभी आपका सिर झुके ना सद्गुणों का अक्षर ज्ञान हो और रिश्तों की गिनती आए ना भूले अपनी सभ्यता को  हम कुछ ऐसा पाठ पढ़ाएं उसकी जबान में अपने वतन  इस भारत का भूगोल रटा हो इसकी भक्ति में लीन रहे वो सोंधी मिट्टी में रचा बसा हो रग रग में व्याप्त हो उसके महापुरुषों की जीवन गाथा कर्तव्य पथ पर उसके कभी आने न पाए कोई भी बाधा  संगीता शर्मा सहायक अध्यापक प्राथमिक विद्यालय

नटखट कान्हा

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बंदी गृह में जन्म लिया कान्हा ने, तोड़ दिए बंदी गृह के बंधन, देवकी,वासुदेव का नंदन, चल पड़ा यशोदा और नंद बाबा के गांव के अंदर, मोर मुकुट सिर पर साजे, बांसुरी हाथ में मोहत बाजे, नदिया के तट पर करे शरारत, गोपियों संग रास लीला रचावत, कान्हा का बाल रूप है बहुत प्यारा, जिसे देख हर्षित जग सारा। घर घर से वो माखन चुराते, बड़े चाव से उसको खाते, उनका सुंदर रूप देखकर हर्षित होते नर नारी, ऐसे है कान्हा मनोहारी, असुरों को मार गिराया, कालिया नाग को सबक सिखाया, एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया, दोस्ती का भी फर्ज निभाया, गीता का भी पाठ पढ़ाया, भटके हुए की राह हो तुम, चारों दिशाओं में कान्हा तुम ही तुम। हरप्रीत कौर दिल्ली

सोहर

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.       जनमें आज कन्हैया बिरज में। कहना कन्हैया जी ने जन्म धरे हैं कहना ना बजत  बधाए बिरज में।। मथुरा कन्हैया जी ने जनम धरे हैं गोकुल बजत बधाए बिरज में ।  कौन लुटावे सोना औ मोती कौन करे गौ दान बिरज में।। यशोदा लुटा वे सोना औ मोती नंद करें गौ दान बिरज में।। कौन करे सखी मंगल सोहर कौन मचाई दधि कीच बिरज में। गोपी करें सखी मंगल सोहर ग्वाल मचाई दधि कीच बिरज में।। आशा मगन हो विनती करें यह सब कुछ छोड़ बसौ  यहीं बिरज में। स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ आशा श्रीवास्तव जबलपुर

"तेरी राधा"

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आई यमुना तट, राह तेरी टकत टुकुर टुकुर वेश बदल घुमत रहो प्रेम गली टुकुर टुकुर सब जानत हैं यह मनवा, फिर भी डोलत ठहर ठहर सुध बुध खोई यह अंखियन , नीर बहाए ठहर ठहर बंशी शोभित मुख पर तेरी , धुन बजत मधुर मधुर मोर पंख में सदैव तत्पर, मयूर नृत्य थरकाय मधुर मधुर श्याम रंग तेरा मन लुभावे मोरे सारी सारी रंग प्रेम का चढ़ा रास रचांऊ सारी सारी मैं चांद बनू तू बन जा तारा, मैं रहूं सिर्फ तेरी राधा तू श्याम तो मैं काजल बनू, कृष्ण में बसी सिर्फ तेरी राधा।। सुनीता ओझा

अवतार लो

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  घिर चला यूँ घोर तम,  डूबा सा विश्व अधमतम  हे ज्योतिर्मय ,लो अवतार पुनः हो प्रकाश- पुंज l है  पथ भ्रमित मानव ,  पथ न सूझे न पथ- कर्म  हे पार्थ सारथी, प्रकट हो फिर दो गीता सा ज्ञानl अमानवीयता मानो कालिया नाग सी, भू जलधि पर तांडव में लगी, हे जगदीश्वर, ला मानवता करो इसका मर्दनl चहुँओर बिछी है चौसर, अस्मिता है लगी दाँव पर हे दयानिधि,आर्द्र विनय सुन रखलो लाज आज फिर नारी कीl    घट भर छलके पाप की,  माखनचोर आ फोड़ो मटकी हे चक्रधर, करो संहार एक बार फिर गहि चक्र सुदर्शनl  मधुर प्रेम की तान सुना दो,  मैं को मेरे चित्त से मिटा दो हे मुरलीधर,सत् चित आनंद रत करो जन- गण- मन कोl निगम झा स. उप निरीक्षक, स. सी. बल सिलीगुड़ी

शुभ जन्माष्टमी

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कान्हा ने लिया मनुज अवतार  बधाई सब को बारंबार , आयो रे नंदलाल रे  आयो मदन गोपाल रे। गीता का जो ज्ञान दिया  वह सारे जग में छाया , तेरी कान्हा हे मनमोहन  फैली सारी माया। तुम मेरे बन जाओ मोहन  मैं बन जाऊं मीरा  मैं तो मोह माया का पत्थर  गोपाला तू  हीरा। दही की हांडी तुम्हारी कान्हा  मेरे घर में टांगी , आ जाओ कान्हा मेरे घर  यही मांग है मांगी।  आज जन्मदिन तुम्हारा आया  झूमे नाचे गाए , बांसुरी की धुन पर कान्हा जग से पाप मिटाएं।

सेवाधर्म

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  देशभक्ति दिखाने का कौन सा एक तरीका होता है। जिस तरह मनुष्य चाहे, देश के प्रति अपने प्रेम को सिद्ध कर सकता है।   प्रेम कोई भी आसान नहीं होता है। न तो नायक और नायिका का प्रेम और न ही देश के प्रति प्रेम। प्रेम हमेशा बलिदान चाहता है। सिद्ध करना होता है कि प्रेमी प्रेम के लिये योग्य है भी या नहीं। फिर देशप्रेम तो प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है। इसके लिये बहुत खोना होता है।    पूणे के एक प्रसिद्ध टीवी अस्पताल के प्रसिद्ध चिकित्सक डाक्टर कौस्तुभ  ज्यादा उदास थे। कोई एक दुख था जो उन्हें मन ही मन परेशान कर रहा था। कोई निर्णय ले पाने में वह खुद को असमर्थ पा रहे थे।   वैसे देखा जाये तो डाक्टर को किसी तरह की परेशानी नजर नहीं आती। एक अच्छा व्यक्तित्व, अच्छी आय, अच्छा रुतबा और सबसे अलग एक प्रेम करने बाली माशूका सब कुछ तो था उनके पास। एक सुखी व्यक्ति को और क्या चाहिये। जो जो सुखी व्यक्ति के मापदंड हैं, वे सब उन्हें प्राप्त थे। फिर भी यह सत्य न था। एक अनोखी चिंता उनके मन को दग्ध कर रही थी।     वैसे तो एक चिकित्सक का जीवन ही सेवा का पर्याय कहा जाता है। मानव से...

कृष्णा 🙏 🙏

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भाद्र मास कृष्ण पक्ष,  मनोहारी रोहिणी नक्षत्र,  बन वासुदेव देवकी नंदन,  लिया जन्म मनोहारी ने।  धर्म अधर्म की आई बेला थी,  कंस के आंतक से धरा काँपी थी,  मृदुल मुस्कान हरि अवतार हुए,  लीला अद्भुत आँखों में चमक छाई थी।  घनघोर अँधेरी रात हुई थी,  ले चले बाबा वासुदेव यमुना तीरे थे,  उफनती नदी छूने पाँव आतुर थी,  पग बढ़ाए कन्हैया शांत हुई यमुना थी।  माता यशोदा के आँखों के तारा,  नंद के आंनद भयो चितचोर गोपाला हैं,  हृदय की धारा अमृत के प्याला हैं,  भक्तों के दयानिधि कृपाला हैं।  मस्तक मुकुट साजे मोर पंख है,  पग घुँघरू बाजे रुनझुन है,  मटकी फोड़ झुला झूले गोपियों संग,  राधा के प्रेम में किया अर्पण सर्वस्व है।  कृष्ण का नाम लेता संसार है,  सखा ऐसे जो दिल में बसे भक्तों के,  प्रेम का मर्म समझाने वो आए हैं,  कलियुग में भक्तों उद्धारक आए हैं।  आरती झा(स्वरचित व मौलिक)  दिल्ली  सर्वाधिकार सुरक्षित©®

चितचोर कन्हैया

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सुन री यशोदा मैया, बड़ा चितचोर तेरा कन्हैया....।       कभी माखन चुराये,      कभी चीर चुराये कभी चुराये वो सबकी निंदिया बड़ा चितचोर तेरा कन्हैया सुन री यशोदा मैया......।       कभी गैया चरावे,        कभी बंसी बजावे         कभी नाचे वो ता, ता , थैया          सब लेवे है उसकी बलैया           बड़ा चितचोर तेरा कन्हैया           सुन री यशोदा मैया......।          कभी असुर को मारे,           कभी वकासुर को मारे           सबकी पार लगाए वो नैया         बड़ा चितचोर तेरा कन्हैया         सुन री यशोदा मैया ........।                                      ऋचा कर्ण✍✍😊🙏 ( श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं)🌹🌹

"जियो नंद लाला"

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                   जियो नंद लाला, जियो नंद लाला, मौरयाई पगड़ी, श्याम रंग वाला, जियो नंद लाला..... अष्टमी की रात आई, घटाएं घनघोर, जन्में कृष्णा, रोवें जोर जोर, जियो नंद लाला..... खुल गये हैं ताले, देखो जेलों के, चले वसुदेव लेके, गोकुल की ओर, जियो नंद लाला..... बारिश भी आई, पूरे जोरों से, छाता तना देखो, शेष नागों का, जियो नंद लाला..... जमुना भी आई, दौड़ दौड़ के, छूके चरण, हटी एकई ओर, जियो नंद लाला..... प्रभु के दर्शन, पाई जमुना ने,  राह बनाई, छूकर के पाँव, जियो नंद लाला..... पहुँचे गोकुल, सो रहे लोग, प्रभु को धर के, बिटिया पाई, जियो नंद लाला..... मथुरा आकर, बेड़ियां पड़ीं, पट हो गये बंद, जागे द्वारपाल सब, जियो नंद लाला..... हो गयी खबर, कंस राजा को, बिटिया को पटका, छिटक गयी दूर, जियो नंद लाला..... मैं तो आई हूँ, बिजली बन के, आ गया अंत तेरा, गोकुल में, जियो नंद लाला..... नंद के घर आए, नंद लाला, आया है अंत अब, अत्याचारी का, जियो नंद लाला..... जियो नंद लाला, जियो नंद लाला, मौरयाई पगड़ी, श्याम रंग वाला, जियो नंद लाला.....।   ...

दुख और खुशी

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ये वो एहसास है जिसका कोई नाम नही।  देश दुनिया के साथ इस को कौई काम नही। रिश्ता तो बस उस खुदा से है,  और किसी से तो सरोकार नही। मागते है तो हम अपने खुदा से, हम किसी के यहा मोहताज नही। वो ही आएगा मुझे दर्द ओ गम से बचाने के लिए।  किसी और का अब मुझ को इन्तजार नही।  जानता है वो मेरी आदत को, मेरी हालत से बो अनजान नही। सच तो यह है की भरी दुनिया मे, उसके सिवाय किसी की पहचान नही। रितु शर्मा

जय श्री कृष्णा

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जग में छाया अंधेरा,रात घनघोर थी कंस के ज़ुल्म से, त्राहिमाम चहुंओर थी थी जरुरत हमें प्रभु, अवतार की हर तरफ शोर था, अधर्म का जोर था ! भांदों महिना कृष्ण पक्ष अष्टमी ग्रह अनुसार थे,है नक्षत्र रोहिणी, प्रगटो ,हे प्रभु  धन्य धरती करो देव सारे करें वन्दना आपकी!! सुनकर पुकार सबकी करुणामयी जन्मे प्रभु माता देवकी भयी, वासुदेव से पितृ कारागार में लेकर चले डगर यमुना सही !! देवकी की व्यथा, कोई समझा कहां? जन्म देते ही लाल ,तू चला हैं कहां? मां की ममता हुई,कितनी बेहाल है बेबसी साथ मेरे बस यही हाल है!! हर्षोल्लास से छाए बंदनवार है गोकुल की गली,धूम नंद द्वार है, रेशम की लडी़, यशोदा झूला छरें विष्णु का हुआ, कृष्ण अवतार है!! गोकुल में मधुर बाललीला रची, फोंडे़ माखन मटकी, हैं खाते दही गोपी ग्वालों के संग रासलीला करें मधुर बंसी की धुन पर राधा नची!! मथुरा, बृंदावन, कुरुक्षेत्र का रण कृष्ण प्रेम से मगन हुआ कण कण, थामे सुदर्शन दिया गीता का ज्ञान भाती मोहिनी मूरत,मुरारी प्रति क्षण! स्वरचित, मौलिक✒️        कीर्ति चौरसिया      जबलपुर मध्यप्रदेश

कम ना हो

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💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞 बहुत मुश्किल है छुपा पाना अपने दिल के अहसासों को हुआ है प्यार अगर दिल से तो कोई रोक नहीं पायेगा दिलवालो को ये वो गुनाह है जिसे हर इंसान करता है चल पढ़ते है काँटों पे, पार कर जाते है हर इम्तिहानो को जिसे गवारा नहीं होता सुकून से जानबूझ कर जागते है रातो को देकर बेचैनी दिल से जो निभाते है वफ़ाए सजाते है चाहत के फूल से काँटों से भरी आशियाने को चाहे जैसे भी हालात ज़िन्दगी की हो ढूंढ़ते है खुशियाँ एक दूजे में कोई नहीं चाहता महबूब की पलकें नम हो दुआ किया करते है खुदा से हमेशा दिल से नैना की मोहब्बत कभी कम ना हो....!! 💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞 नैना....✍️✍️✍️💓

महारास

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                   मनमोहन  की बांसुरी,करे चित्त में बास। पैरों में थिरकन बढ़े, और मन में उल्लास।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 व्याकुल है हर ग्वालिनी,धरे न मन में धीर। श्याम बजाए बांसुरी, जब यमुना के तीर। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सुन बंशी की धुन मधुर, और कर श्रृंगार। अपने घर को छोड़ कर, चली आज ब्रजनार।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 मधुर चांदनी खिल रही, मधुवन हुआ उजास। नंदलाल करने लगे, आज मधुर महारास।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 महारास में रम रहे, कान्हा राधा साथ। बन कर नारी नाचते, बमबम भोलेनाथ।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 राधा के संग रम रहे, देखो नंद किशोर।  महारास में हो गई, धीरे धीरे भोर।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 आप सभी को मेरी तरफ से श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🌹🌹🌹🌹 श्वेता कर्ण

कौन कहते हैं भगवान आते नहीं

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हे कान्हा  ,मैं नन्हा बालक अत्यंत डरा हुआ,तुम्हारे रचित इस संसार में बिल्कुल अकेला खड़ा हूं,मेरे  कानों में भयानक जीव ,सर्प ,और शेर जैसे हिंसक जानवरों की भयानक आवाजें गूंज रही हैं,जो मुझे प्रतिक्षण डरा रही हैं। मैं कैसे इस जंगल को भयरहित पार कर अपने विद्यालय जाऊं। आओ कान्हा....... मां ने कहा था तुम मुझ जैसे दीन दुखियों की मदद करते हो। थर थर कांपता बालक  बांसुरी की स्वर लहरियों की आवाज सुन पलट कर देखता है ,उसके पीछे एक उसी के वय का बालक , गाय लेकर चला आ रहा था। मन ही मन मोहन खुद से पूछता है _क्या यही कन्हैया है ,जिसका जिक्र मां हमेशा करती है। जन्माष्टमी का  व्रत रखती है ,पैसे बचा कर एक नन्हे कन्हैया लाई थी। पहले उसको भोग लगाती है फिर खुद खाना खाती है। उसकी सोच एक मीठी आवाज सुन थम जाती है ,क्या सोच रहे हो मित्र ? अह ह अह.....। तुम्ही कान्हा हो न?_मोहन ने हकलाते  हुए पूछा। हां, मैं यहां गैया चरा रहा था ,तुम्हारे पुकारने की आवाज सुनी ,चला आया। मैं बहुत डर रहा था,भयानक पशुओं की आवाज़ें आ रही थी,लेकिन तुम्हारे आते ही आवाज भी बंद हो गई और मेरा डर भी भाग गया। तु...