पुरुष भी प्रताड़ित होता है ....।



पुरुष भी प्रताड़ित होता है .....।
तानों को भी सुनता है ,
पिसता, घुटता रहता है ,
अंदर ही अंदर बिखरता है ,
पुरुष भी प्रताड़ित होता हैं।
रोता भी नहीं है ,
ना ही कुछ कह  पाता है ,
पिघलता नहीं आंसुओं में ,
प्रस्तर बन टूटता रहता है 
पुरुष भी प्रताड़ित होता है ...…।
सताया तो यह भी जाता है
उलाहनों में तड़ पाया जाता है ,
दहेज का आरोप लगा ,
मान सम्मान स्वाहा कर दिया जाता है।
 पुरुष भी प्रताड़ित होता है....।
 जी तोड़ मेहनत करता है ,
तिनका तिनका जोड़ता है ,
परिवार की खुशियों में ,
अपनी खुशी खोजता है ।
पुरुष भी प्रताड़ित होता है....।
 विवाह अग्नि में आहुति पुरुष भी देता है
 संग अपने नए रिश्तो को जोड़ता है ,
जिम्मेदारी की बाढ़ में झोंक दिया जाता है ।
पुरुष भी प्रताड़ित होता है....।
 मजबूती का ठप्पा लगा मुझ पर ,
इज्जत तार-तार कर दी जाती है ,
रिश्तो में रोजगार में बेवजह आरोप से ,
छलनी मेरा स्वाभिमान कर दिया जाता है ।
पुरुष भी प्रताड़ित होता है .......।
एक ऊँगली औरत की उठती है ,
मुझ पर व्यंग बाण चल जाते हैं, '
कई बार बिना गुनाह के भी,
 सलाखों के पीछे कर दिया जाता है।
 पुरुष भी प्रताड़ित होता है .......।
एक अश्रु भर टपकने पर मैं ,
हंसी का पात्र बनता हूँ ,
'मर्द होकर रोता है 'जुमला यही हर बार सुनता हूँ  पुरुष भी प्रताड़ित होता है .......।
हर स्त्री चरित्रवान हो ,
और हर पुरुष चरित्रहीन नहीं होता ,
हर बात का दोषी में ही नहीं होता , 
पुरुष श्याम वर्ण हो ,
मन से काला नहीं होता ।
श्वेत वर्ण स्त्री भी ,
मन से गौर वर्ण हो नहीं सकती ।
फिर क्यों पुरुष खुद को ही  कोसता है
 कुछ सपने पूर्ण न कर पाने पर ,
मन मलाल क्यों रखता है ।
पुरुष भी प्रताड़ित होता है .....
गरिमा राकेश गौत्तम
 कोटा राजस्थान

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