अवतार लो


  घिर चला यूँ घोर तम,
 डूबा सा विश्व अधमतम
 हे ज्योतिर्मय ,लो अवतार पुनः हो प्रकाश- पुंज l

है  पथ भ्रमित मानव , 
पथ न सूझे न पथ- कर्म 
हे पार्थ सारथी, प्रकट हो फिर दो गीता सा ज्ञानl

अमानवीयता मानो कालिया नाग सी,
भू जलधि पर तांडव में लगी,
हे जगदीश्वर, ला मानवता करो इसका मर्दनl

चहुँओर बिछी है चौसर,
अस्मिता है लगी दाँव पर
हे दयानिधि,आर्द्र विनय सुन रखलो लाज आज फिर नारी कीl
 
 घट भर छलके पाप की,
 माखनचोर आ फोड़ो मटकी
हे चक्रधर, करो संहार एक बार फिर गहि चक्र सुदर्शनl

 मधुर प्रेम की तान सुना दो, 
मैं को मेरे चित्त से मिटा दो
हे मुरलीधर,सत् चित आनंद रत करो जन- गण- मन कोl
निगम झा
स. उप निरीक्षक, स. सी. बल
सिलीगुड़ी

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