आज राधा रूठी है
प्रभु क्रीङा की याद
पवित्र वृन्दावन धाम
निकट राधा बल्लभ
रहतीं विधवा नारि
कहाती आनंदी माँ
पूजती प्रभु श्याम
रख वात्सल्य भाव
सुत बना घनश्याम
ज्यों हो नंदरानि
आज राधा रूठी है
रहतीं भावलोक में
जग से अनजान
राधा श्याम रचाते लीला
मान वृद्धा को मात
आज राधा रूठी है
मंदिर माँ आनंदी
बंद है आज
बहू राधा आज
रूठ गयी काहि
लङका तैयार भूखा
थक गया मनाय
प्रभु कुछ करो उपाय
आज राधा रूठी है
मेरे कौन दस पांच
एक सुत, बधू एक
बधू सुंदरी सुलक्षणी
पत्नी का अधिकार
आज रूठ बैठी लङके से
आज राधा रूठी है
बहू जा अब मान
सच बता बात
क्यों रूठी है आज
जग की क्या चिंता
हो जा तैयार
बनायी मनपसंद खिचङी
लगा भोग
मुस्करा दो अब
आज राधा रूठी है
अरे मंहगे वस्त्र
चाहती राधा
बेटी मैं कंजूस
दोष न कृष्ण का
भविष्य की चाह
बहू बेटे के लिये बचत
नहीं पसंद राधा को
खूब पहनो खाओ
मेरा कितना जीवन
आज राधा रूठी है
माँ चली तुरंत बाजार
लायी मंहगें कपङों के भंडार
मंदिर में दर्शक अपार
पर्दे के पीछे माँ हर्षित
अब मुस्करा रही राधा
होती तैयार खुश होकर
कुछ मिनट में हटा पर्दा
अद्भुत राधा कृष्ण का श्रंगार
एक अनजान सा रहस्य
कैसे राधा की तैयार
समय इतना कम
ज्यों वस्त्र पहने खुद किसी नारि ने
क्या सचमुच राधा रूठी थी?
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'
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