क्लास बंक भाग १

ये मेरी  वास्तविक कहानी है, जब मैं कक्षा तीन में थी ।
गांव में सर्वत्र अशिक्षा का माहौल ब्याप्त था। एक प्राइमरी स्कूल भी था गांव में, मेरे घर से पैदल जाने में बीस मिनट लगते।
पर कोई भी अपनी लड़की को स्कूल नहीं भेजता था। 
स्कूल तक जाने का  कोई सायकिल वाला रास्ता नहीं था। 
खेत की पगडंडीयो से होते हुए भैया या पापा मेरे साथ प्रतिदिन जाते-आते थे। 
हमारी फैमिली ने सभी पडोसियों से आग्रह किया कि अपने बच्चियों को स्कूल अवश्य भेजें।

फलस्वरूप एक पड़ोस की लड़की मीनू  मेरे साथ स्कूल जाने लगी। तबसे भैया -पापा को नहीं जाना पड़ा। 
मीनू का गांव में दो जगह मकान था, जहां एक जगह पूरा संयुक्त परिवार रहता था।और एक मकान हमारे घर के समीप था जहां सिर्फ महिलाओं का जमावड़ा लगा रहता। 

बड़ा सा घर जहां घर के अंदर एक बड़े से आंगन में बगीचा भी था। वहीं अमरूद का पेड़ और शहतूत के साथ अन्य पुष्प के पौधे भी थे। बड़ा मनोरम स्थान था जहां महिलाएं गपशप करती और हम बच्चे अमरूद और शहतूत खाने में लग जाते।

प्रतिदिन की भांति मीनू के साथ मैं स्कूल के लिए निकली। 
अमरूद घर के सामने पहुंचते ही अमरूद खाने की प्रबल इच्छा हो गई। अभी काफी समय था हमारे पास।  
हम दोनों आंगन में दाखिल हुए। डंडे से अमरूद तोड़ा गया, पर मनपसंद अमरूद नहीं टूट पाता। कच्चे अमरूद ही नीचे आते।

फिर मीनू ने कहा- चल पेड़ पर चढ़ा जाय। " 
पर देर होगी तब? हमने अपनी शंका जाहिर की। " 

मीनू ने युक्ति खोज ली। हमदोनों का जूता और बैग आंगन में छुपाया। और बोली-" 
आज नहीं जाएंगे स्कूल.." यहाँ आते किसी ने देखा भी नहीं है।" 

छुट्टी टाईम पर हम घर पहुँच जाएंगे। आज मन भर के अमरूद खाया जाय..।" 
तू भी चढ़ जा। " 
मुझे डर भी लगा.." 
पर पेड़ पर चढ़कर अमरूद खाने का आनंद .. " इस अनुभूति ने मेरा डर खत्म कर दिया। 
और हम दोनों पेड़ पर चढ़कर अमरूद खाने लगी। 

अमरूद से शहतूत के पेड़ पर चढना- खाना ,और बाकी महिलाओं के लिए भी तोड़ना। 
फिर पुष्प के पौधों पर से  तितलियों को पकड़ने में कब दोपहरी हो गई पता ही नहीं चला। 

दो बजे लगभग नौकी दादी हमारे लिए शामत बन के आ गई।  हम जान भी न पाये ,कब उन्होंने हम दोनों का जूता उठाया और बरामदे में रख आई। 

उसी समय बड़े भैया भूसा लाने खलिहान में जा रहे थे, और  उनकी  नजर हमारे जूतों पर पड़ी। भैया  धडधडाते हुए आंगन में आ गए। हम दोनों दुनिया से बेखबर हो कर अभी भी अमरूद के पेड़ पर हीं थे। बड़े भैया की आवाज़ सुन हमारे हाथ-पांव फूल गए।

मीनू पेड़ पर से कुद कर भाग गइ । और मैं पकड़ी गई।  फिर भैया ने  फिल्मी स्टाइल में थप्पड़ों की बारिश की और हमारे हेयर स्टाइल को   बिगाड़ते हुए बरामदे तक लाए। वहां से एक हाथ मे मेरा बैग व जूता उठाया और हनुमान जी के गदे की भांति मुझे कंधे पर रखा। और  स्कूल की तरफ दौड़े। 

दौड़ने के साथ हीं अपना डायलाग भी बोल रहे थे। 
चल! अभी तुझे वर्मा जी के पास ले जाता हूँ। आज तेरा अस्थिभंजन सुनिश्चित है। " 

वर्मा सर के नाम से बच्चे कांपते रहते थे। हमें लगा आज तो हम गए.. फिर हमने चिल्लाना सुरु किया। 
अब नहीं खाउंगी अमरूद भैया .." वर्मा सर से हमको बचाइये भैया .." हमने चिल्ला कर मुहल्ला इकट्ठा कर लिया। 
हमने पुनः क्लास न छोड़ने का निश्चय किया ..कान पकड़ा तब मुझे घर ले आये। पुनः क्लास बंक की पुनरावृत्ति हमने सातवीं कक्षा में की ..क्रमशः अगले अंक में ...।"

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