एक पिता का त्याग
मंजिल तक तुझको पहुंचाया
कांटे चाहे लाख चुभे पर
कभी नही था वो घबराया
टूटी चप्पलें पहन पहन कर
अपने दिन उसने काटे थे
पर तेरी कामयाबी पर
गलियों में लड्डू बांटे थे
फटी शर्ट और फटे हैं जूते
इस पर उसका ध्यान कहां था
उसकी दृष्टि बेटे पर थी जो
लक्ष्य प्राप्ति के लिए खड़ा था
रात रात भर जाग के उसने
अपने घर का बजट बनाया
बहुत कटौती की थी उसने
पर तेरा लक्ष्य तुझे दिलाया
आज उसी इंसान की आंखे
क्यों चुपके चुपके रोती हैं
तेरे लिए वो हरदम जागा
तेरी भावना क्यों सोती हैं?
क्या उस बाप के आंखों में
तुझको विश्वास नहीं दिखता
अपना परिवार अलग कर लिया
मां बाप का त्याग नहीं दिखता
संगीता शर्मा "प्रिया"
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