कृष्णा 🙏 🙏
भाद्र मास कृष्ण पक्ष,
मनोहारी रोहिणी नक्षत्र,
बन वासुदेव देवकी नंदन,
लिया जन्म मनोहारी ने।
धर्म अधर्म की आई बेला थी,
कंस के आंतक से धरा काँपी थी,
मृदुल मुस्कान हरि अवतार हुए,
लीला अद्भुत आँखों में चमक छाई थी।
घनघोर अँधेरी रात हुई थी,
ले चले बाबा वासुदेव यमुना तीरे थे,
उफनती नदी छूने पाँव आतुर थी,
पग बढ़ाए कन्हैया शांत हुई यमुना थी।
माता यशोदा के आँखों के तारा,
नंद के आंनद भयो चितचोर गोपाला हैं,
हृदय की धारा अमृत के प्याला हैं,
भक्तों के दयानिधि कृपाला हैं।
मस्तक मुकुट साजे मोर पंख है,
पग घुँघरू बाजे रुनझुन है,
मटकी फोड़ झुला झूले गोपियों संग,
राधा के प्रेम में किया अर्पण सर्वस्व है।
कृष्ण का नाम लेता संसार है,
सखा ऐसे जो दिल में बसे भक्तों के,
प्रेम का मर्म समझाने वो आए हैं,
कलियुग में भक्तों उद्धारक आए हैं।
आरती झा(स्वरचित व मौलिक)
दिल्ली
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