दिल का आईना
दिल के आइने में,
तेरा अश्क़ बसाया है,
कोई देख न ले,
इसलिए दिल में छुपाया है,
जब मैंने आईना देखा,
मेरे चेहरे की जगह,
तेरा चेहरा नज़र आया,
मैंने घबराकर,
बंद की आंखें,
जो राज़ दिल में छुपाया,
वह आइने में कैसे नज़र आया,
अपनी ही नादानी पर,
मैं मुस्कुराई,
इश्क़ की नादानियां,
कहां छुपती हैं,
यह तो आईना है,
जो जैसा है,
वही दिखाएगा,
इश्क़ कौन छुपा पाया है,
हवाओं में भी,
इसकी खुशबू बिखरती है,
आज मन का राज़,
आइने ने दिखाया है ।।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
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