जय श्री कृष्णा

जग में छाया अंधेरा,रात घनघोर थी
कंस के ज़ुल्म से, त्राहिमाम चहुंओर थी
थी जरुरत हमें प्रभु, अवतार की
हर तरफ शोर था, अधर्म का जोर था !

भांदों महिना कृष्ण पक्ष अष्टमी
ग्रह अनुसार थे,है नक्षत्र रोहिणी,
प्रगटो ,हे प्रभु  धन्य धरती करो
देव सारे करें वन्दना आपकी!!

सुनकर पुकार सबकी करुणामयी
जन्मे प्रभु माता देवकी भयी,
वासुदेव से पितृ कारागार में
लेकर चले डगर यमुना सही !!

देवकी की व्यथा, कोई समझा कहां?
जन्म देते ही लाल ,तू चला हैं कहां?
मां की ममता हुई,कितनी बेहाल है
बेबसी साथ मेरे बस यही हाल है!!

हर्षोल्लास से छाए बंदनवार है
गोकुल की गली,धूम नंद द्वार है,
रेशम की लडी़, यशोदा झूला छरें
विष्णु का हुआ, कृष्ण अवतार है!!

गोकुल में मधुर बाललीला रची,
फोंडे़ माखन मटकी, हैं खाते दही
गोपी ग्वालों के संग रासलीला करें
मधुर बंसी की धुन पर राधा नची!!

मथुरा, बृंदावन, कुरुक्षेत्र का रण
कृष्ण प्रेम से मगन हुआ कण कण,
थामे सुदर्शन दिया गीता का ज्ञान
भाती मोहिनी मूरत,मुरारी प्रति क्षण!

स्वरचित, मौलिक✒️
       कीर्ति चौरसिया
     जबलपुर मध्यप्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४