विश्वास

एक बार परख कर बार-बार तो मत परखो,
  किसी के विश्वास पर कुछ तो विश्वास  रखो।

हैऔरत काली भी, दुर्गा भी और लक्ष्मी भी,
 क्यों उसके चरित्र पर बार-बार उंगली रखो।

 सर्वस्व न्योछावर कर देती है सात फेरों की अग्नि में,
 तो क्या उसके दिल को भी तुम ना रखो। 

कभी सीता ,कभी मीरा ,कभी द्रौपदी बनती आई,
 आज उसके आंसुओं का कुछ तो मान रखो।

 न समझना कमजोर बस उसके दिलो दिमाग को ,'सीमा'
 बनी चिंगारी गर वो तो टूटे घरों का मजा चखो।
स्वरचित सीमा कौशल 
यमुनानगर हरियाणा

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