कौन कहते हैं भगवान आते नहीं

हे कान्हा  ,मैं नन्हा बालक अत्यंत डरा हुआ,तुम्हारे रचित इस संसार में बिल्कुल अकेला खड़ा हूं,मेरे  कानों में भयानक जीव ,सर्प ,और शेर जैसे हिंसक जानवरों की भयानक आवाजें गूंज रही हैं,जो मुझे प्रतिक्षण डरा रही हैं।
मैं कैसे इस जंगल को भयरहित पार कर अपने विद्यालय जाऊं।
आओ कान्हा....... मां ने कहा था तुम मुझ जैसे दीन दुखियों की मदद करते हो।
थर थर कांपता बालक  बांसुरी की स्वर लहरियों की आवाज सुन पलट कर देखता है ,उसके पीछे एक उसी के वय का बालक , गाय लेकर चला आ रहा था।
मन ही मन मोहन खुद से पूछता है _क्या यही कन्हैया है ,जिसका जिक्र मां हमेशा करती है।
जन्माष्टमी का  व्रत रखती है ,पैसे बचा कर एक नन्हे कन्हैया लाई थी। पहले उसको भोग लगाती है फिर खुद खाना खाती है।
उसकी सोच एक मीठी आवाज सुन थम जाती है ,क्या सोच रहे हो मित्र ?
अह ह अह.....।
तुम्ही कान्हा हो न?_मोहन ने हकलाते  हुए पूछा।
हां, मैं यहां गैया चरा रहा था ,तुम्हारे पुकारने की आवाज सुनी ,चला आया।
मैं बहुत डर रहा था,भयानक पशुओं की आवाज़ें आ रही थी,लेकिन तुम्हारे आते ही आवाज भी बंद हो गई और मेरा डर भी भाग गया।
तुम रोज आ जाया करो ,मेरा डर जाता रहेगा और मैं स्कूल आ जा पाऊंगा_ मोहन ने कहा।

ठीक है_ कह कर कन्हैया उसके साथ चलने लगा।
अब तो रोज ही मोहन जल्दी तैयार होकर स्कूल के लिए निकलता ताकि कुछ समय खेलने को मिले।

मां को आश्चर्य होता ,क्यों मोहन अब तुझे जंगल में डर नहीं लगता ,और बड़ी जल्दी मची रहती है तुझे स्कूल जाने की।

जानती हो मां,मेरा डर मेरे दोस्त कान्हा ने खत्म कर दिया ,उसकी सुरीली बंसी की धुन से सारा जंगल खामोश हो जाता है।और फिर हम खूब खेलते हैं।

क्या??सच में !!¡!!!!!!
कान्हा तुम्हारे साथ खेलने आते हैं,क्या उनके सर पर मोर पंख भी लगा रहता है ,बंसी भी , मां एक सांस में बोले जा रही थी।
हां _मोहन लापरवाही से बोला ।तुम्हें विश्वास क्यों नहीं हो रहा,तुम्ही ने तो कहा था कि जब तुम्हें डर लगे तो बुला लेना ।

मां की आंखों से अश्रु बह निकले, वह जान गई की उसके पुत्र को साक्षात ईश्वर का साथ मिला है।उसका मन करता मोहन के हाथ कन्हैया के लिए कुछ माखन ही होता तो भिजवा देती ,बड़ी मुश्किल से ही दो जून की रोटी का इंतजाम हो पाता था,तब भी उसने मोहन से कहा ,कन्हैया से पूछ लिया करना कि वो भूखे तो नहीं।

मोहन अगले दिन सूखी रोटी और गुड़ लेकर स्कूल गया तो ,उसने कान्हा से पूछा ,मित्र मैं तुम्हारे साथ खेलता हूं ,तुम दिन भर गैया चराते हो,मैने कभी तुमसे खाने के लिए कभी नहीं पूछा ,तुम्हें भूख लगती होगी। 
हां लगती तो है ,वैसे मेरी मैया मुझे माखन खिला कर भेजती है ,तुम क्या लाए हो,तनिक दिखाओ तो सही।
इतना सुन मोहन ने अपना खाना कान्हा की ओर बढ़ा दिया।
कान्हा उसकी रोटी खाने लगे।एक असीम आनंद उनके मुख मंडल पर दिखाई दे रहा था।
उन्होंने सारी रोटियां चट कर दी ,और पेट पर हाथ फेरते कहने लगे ,बहुत स्वादिष्ट खाना था ,बहुत दिनों के बाद खाया।

इधर मोहन की मां अपने  अंदर एक असीम आनंद महसूस कर रही थी।
और मोहन का पेट तो ऐसा भर गया ,जैसे उसने छप्पन भोग का आनंद लिया हो।

एक बार की बात है स्कूल में एक शिक्षक की मृत्यु हो गई , वे अनाथ थे ।प्रधानाध्यापक उन्हें अपने पुत्र की तरह प्यार करते थे,उन्होंने अंतिम संस्कार से लेकर सारे क्रियाकर्म की जिम्मेदारी खुद ले ली।
तेरहवीं से पहले उन्होंने हर बच्चे को अपने घर से कुछ न कुछ लाने को कहा था,जो उनके खेतों में बहुतायत उगता हो।

मोहन को उन्होंने कोई कार्य नहीं सौंपा न ही किसी वस्तु को लाने को कहा।
मोहन बहुत दुखी हुआ, वो उसके भी प्रिय शिक्षक थे,उनके लिए अपना योगदान देना उनके प्रति अपने प्रेम को दर्शाने का माध्यम था।
मोहन प्रधानाध्यापक के पास पहुंचा ,और अपने लिए कोई कार्य नहीं देने का कारण जानना चाहा।

प्रधानाध्यापक उसके घर की स्थिति जानते थे और  इसलिए उसकी शिक्षा निःशुल्क थी।
उन्होंने कहा _तुम्हें कुछ लाने की जरूरत नहीं है ,तुम सिर्फ आ जाना।
मोहन हठ करने लगा ,तब उन्होंने उसे दूध लाने को कहा।
मोहन खुश हो गया,लौट कर घर में मां से उसने दूध स्कूल ले जाने की बात कही ।
मां उदास हो गई ,उसने कहा पुत्र बड़ी मुश्किल से किसी तरह रोटी का इंतजाम हो पाता है ,मैं दूध कहां से लाऊं,कौन देगा।
तो मैं कैसे  दूध ले जाऊंगा ?और रोने लगा।
मां ने कहा _तू उदास क्यों होता है ,कन्हैया तेरी मदद करेंगे।
इतना सुनते मोहन का चेहरा खिल उठा। हां ,मेरा दोस्त मेरी मदद अवश्य करेगा।

अगले दिन मोहन ने कान्हा को अपनी समस्या बताई ,कान्हा ने मुस्कुराते हुए एक लोटा गाय का दूध मोहन को पकड़ा दिया।
मोहन खुशी खुशी दूध लेकर स्कूल पहुंचा ।
उसने वहां कार्य करते लोगों से पूछा कि यह दूध कहां रखूं ।
तब वहां रखे ड्रम की ओर खाना बनाने वाले ने इशारा किया।

मोहन दूध लेकर ड्रम की ओर बढ़ा और दूध उसमे डालने लगा।ये क्या ,ड्रम भर गया !!!!
लेकिन लोटे में दूध अभी भरा था।
दूसरा ड्रम मंगाया गया ,वो भी भर गया।अब तो ये लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन गया था ।सभी हैरान था ,दूध लोटे से खत्म नहीं हो रहा था और ड्रम के ड्रम भरे जा रहे थे ।

अंत में प्रधानाध्यापक आए और उन्होंने दूध के संबंध में मोहन से बात की, उन्होंने पूछा_ कहां से लाए हो ये दूध?
जी मेरे मित्र ने दिया है ?मोहन ने कहा।
तुम्हारा मित्र कहां रहता है _प्रधानाध्यापक ने प्रश्न किया।
जी जंगल में?
प्रधानाध्यापक हैरान थे ,उन्होंने कहा तुम मुझे मिला सकते हो।

हां, हां क्यों नहीं ? 
ठीक है मैं तुम्हारे साथ कल चलूंगा।आज का कार्यक्रम निपटा लूं।
अगले दिन मोहन ,कान्हा से कहने लगा ,कल का दूध इतना ज्यादा था कि उसे रखने के लिए बर्तन ही नहीं बचे ,और जोर जोर से हंसने लगा ,उसका हंसने में  साथ स्वयं ईश्वर भी दे रहे थे।
मोहन कान्हा के ईश्वरीय अस्तित्व से अनजान था ,वह उसे सिर्फ एक साधारण बालक ही समझता था ,इसलिए उसमें कोई बनावटीपन नहीं था।
स्कूल पहुंचते ही उसने प्रधानाध्यापक को उसके साथ चलने को तैयार देखा।
वह उनके साथ हो लिया।जंगल में मोहन ने कान्हा को आवाज लगाई ,थोड़ी देर में कान्हा सामने था,लेकिन प्रधानाध्यापक को नहीं दिखाई दे रहा था।
मोहन ने हंसकर कहा ,जानते हो मित्र कल के दूध वाले चमत्कार को देख मेरे प्रधानाचार्य तुमसे मिलने आए हैं।
कान्हा ने हंसकर कहा _अच्छा।
प्रधानाचार्य परेशान वो केवल मोहन की बात सुन रहे थे ,जो वो किसी से कर रहा था ,लेकिन सामने उन्हें कोई दिख ही नहीं रहा था।
ऊब कर उन्होंने मोहन से कहा _तुम किस्से बात कर रहे हो ,मुझे तो कोई नहीं दिख रहा।
अरे मास्टर जी _सामने ही तो मेरा मित्र कान्हा खड़ा है ।
पर मुझे तो कोई नहीं दिख रहा।_प्रधानाचार्य का धैर्य जवाब दे रहा था।
तब मोहन कान्हा से कहता है ,तुम मास्टर साहब को क्यों नहीं दिख रहे हो।
उन्हें मुझे देखने की शक्ति नहीं है_कान्हा ने कहा।
ऐसा क्यों कह रहे हो ,उनकी आंखें तो ठीक हैं_मोहन मासूमियत से बोला।
तुम नहीं जानते ये तर्क से मुझे देखना चाह रहे , इनमें निश्छल भक्ति नहीं है ,स्वार्थ,दिखावा की परत आंखों पर जमी है ,इसलिए मैं इन्हें नहीं दिख रहा।
कान्हा ,मुझे तुम्हारी बातें समझ में नहीं आ रही ,पर मैं ये चाहता हूं कि एक झलक तुम इन्हें अपनी दिखा दो ,ताकि ये मुझे झूठा न समझें _मोहन ने विनती की।
तभी मास्टर साहब ने सांवले सलोने मोरपंख लगाए,अद्भुत छवि वाले बालक को अपने सामने देखा।
मास्टर साहब उस छवि को देख पलक झपकाना भूल गए,उनके अंदर का सारा मैल ,अश्रुओं के माध्यम से बहकर निकल गया,उनका अंतः करण शुद्ध हो गया।

इस तरह भक्त और भगवान का संबंध सदियों से किसी न किसी माध्यम से जुड़ा है।जो भी शुद्ध अंतः करण को उसको याद करता है ,भवसागर से पार लगाने कन्हैया दौड़े चले आते हैं।
जय श्रीकृष्ण
समाप्त

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