शुभता का जन्मोत्सव
आज ही के दिन कान्हा आए,
आज ही प्रकटी योगमाया...
देव का कर होना था अंतर्ध्यान,
नारायण से वर था पाया
विश्व-दुर्ग से रक्षा करती
शक्ति ने दुर्गा नाम था पाया!
ब्रह्मांड ने तब धरा पर
शुभता का जन्मोत्सव मनाया!
आसुरी शक्ति के अंत का
वचन तब सच होने को आया!
खिल उठे सब वन- उपवन,
भादों में भी आया सावन,
अधीर यमुना का व्याकुल मन भी
चरण पखार तब शांति पाया!
महकी धरती, झूमा अंबर
जीव कोटि का मन हर्षाया!
देव कृपा से देव दृष्टि जो पडी
बरसों से सूने आंगन में..
मैया यशोदा ने भी झूला सजाया!
पावन बेला ऐसी आई..
सांझी बेला में भी नंदबाबा के
जीवन में आनंद भर आया!
मोरमुकुट धारी कान्हा के दर्शन को
देवलोक भी पृथ्वी पर आया!
मन मुदित, तन प्रफुल्लित
धरती ने भी उत्सव मनाया...
लीलाधर ने बडी लीला की,
नित्य नया इक रूप दिखाया-
नटखट कान्हा यशोदानंदन
माखन खा आनंदित होते
जितना भी दोनो, कम ही लागे,
अत् वो नन्हा माखनचोर कहलाया!
भक्ति भाव ही ग्रहण किया
जब जब कान्हा ने माखन खाया।
बस भाव का भूखा है कान्हा,
भाव- अ-भाव के मन ने
जीवन में अभाव है पाया!
छकडा भर माखन खाने को भी
गोप होते थे जिनके सहाय
आई विपदा तो उठा गोवर्धन
तब गिरिधर नाम था पाया!
आह! बंसी की धुन में नाचा वृंदावन
मोह लिया जग को जिसने अपनी इक मुस्कान से
वो निर्मोही इस जगत से मोहन नाम था पाया!
प्रेम ही जिस जीवन का आधारशिला,
प्रेम से जब जब रास रचाया-
प्रेम दीवानी राधा रानी
प्रेमस्वरूपिणी राधा का मन था मुस्काया।
पाना ही प्रेम नहीं है जग में
सब समर्पण उत्तम है--
मीरा सी भक्ति ने जग को
प्रेम शक्ति का बोध कराया!
प्रेम शक्ति से जग पालनहार ने
धर्म का बोध कराया
मुट्ठी भर चावल के बदले
एक सखा सुदामा को
दे दिया वैभव अकूत;
एक सखी थी कृष्णा उनकी,
जब डाली कुरुवंश ने कुदृष्टि जिसपर
लाज बचाने वो पल में प्रकट
देखते रहे अचंभित सारे
इतना द्रौपदी का चीर बढ़ाया!
नारी ममता है नारी सम्मान है
नारी जल भी है नारी अग्नि समान है,
नीचता है नारी का शोषण,
नाश होगा वंश वो समूल,
जिसने शक्ति का मान घटाया!
एक सखा था अर्जुन जिसको
धर्म रक्षा के लिए क्षत्रिय धर्म निभाने
युद्ध का था मार्ग दिखाया
अधिकार कभी यूँ नहीं मिलते
पुरुषार्थ केवल एक उपाय है
दे कर ज्ञान गीता का,
जग को यह सत्य समझाया!
अमर ऋषि मार्कंडेय ने
माया का आवाह्न किया जब
बालमुकुंद बन आए- कृष्ण
प्रलय काल में चरणाश्रय का
तब जग तो महत्व समझाया!
शालिनी अग्रवाल
जलंधर
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