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Showing posts from September, 2021

धोखा भाग ९

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सर मुझे अपनी भाभी पर शक है _अभय ने कहा।  ऐसा आरोप लगाने की वजह क्या है? _सबइंस्पेक्टर ने कहा। सर मैं भैया की अनुपस्थिति में जब उनके घर गया था ,अभी 3 महीने पहले तो ,मुझे उनके कमरे में किसी पुरुष के आने जाने  का शक  हुआ था। अच्छा!!_संजय ने गंभीर  मुद्रा में सर हिलाया। देखता हूं तुम्हारी भाभी से बात करके _सबइंस्पेक्टर संजय ने कहा। पर सर !! इस समय ?अभय बोला। अरे नहीं, मैं ये नहीं जताऊंगा कि हमें उन पर शक है। मैं बस रूटिनल पूछ ताछ करूंगा एसिड हमले के सिलसिले में । थाने से एक सिपाही शैव्या के पास पहुंचा_साहब ने आपको थाने बुलाया है। मुझे!! _शैव्या हड़बड़ाई। जी ,थोड़ी पूछ ताछ करनी है साहब को_सिपाही ने बात बताई। ओके मैं अभी थोड़ी देर में आती हूं,तब तक अभय हॉस्पिटल पहुंच गया। उसने अभय को देखकर कहा_भैया अच्छा हुआ अभी आप आ गए ,थोड़ी देर रचित के पास रुकें , मैं थोड़ा बाहर हो कर आती हूं ,जरूरी काम है। अभय ने कहा _ठीक है भाभी , मैं भैया के पास हूं,आप अपना काम कर आइए। शैव्या सीधे थाने पहुंची। सब इंस्पेक्टर सर कहां हैं? _शैव्या ने दरवाजे पर खड़े  सिपाही से पूछा। सिपाही न...

दिल का रोग

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❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️ कभी कभी सोचती हूँ बैठे बैठे हमने यूँ जाने अनजाने में क्या कर बैठे है जिसका कोई दवा नहीं होता इस जहाँ में हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे है....!! चैन से रहता था ये दिल हर पल हमने यूँ शौख से बेचैनी को गले लगा बैठे है अब समझ नहीं आता की क्या आलम है ये की हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे है.....!! बढ़ा सुकून से सोते थे हम रातो में ज़ब तक दिल में कोई अहसास न था उड़ गयीं हिअ नींदे जाने किस जहाँ में रातो की की हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे.....!! कश्मकश में है धड़कने भी मेरी की ये कैसा फैसला ज़िन्दगी का हम कर बैठे भूल कर भी कभी भूल न पाउ उस शख्स को जो मेरे दिल में अपना घर बना बैठे है.....!! सिर्फ मुझे ही छेड़ा है ये अहसास नई या उनका भी दिल मेरे लिए धड़का है ए फ़िज़ा अब तुम्ही बता अब मैं क्या करू की पता चले क्या वो भी ये रोग लगा बैठे...? बढ़ा दिलकश सुरूर होता है यादो में उनकी जो हमने सारी दुनिया भुला बैठे है कहु भी तो क्या कहु नैना बहुत मुश्किल है की हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे....!! ❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️🌷❣️ नैना.... ✍️✍️ काल्पनिक...

कुमाता भाग १४ - पुरानी भूल

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   ईश्वर की भी लीला न्यारी है। एक तरफ देवों को आश्वासन दे रखा था कि वह दशरथ के पुत्र के रूप में अवतरित होंगें। वहीं न जाने क्यों देरी करते रहे। कह सकते हैं कि माता सुमित्रा और माता कैकेयी को भी अपनी नरलीला में स्थान देना था। पर माता कैकेयी के भी महाराज दशरथ के जीवन में आगमन के बाद भी अभी तक उनके अवतार का समय नहीं आया था। शायद अभी कुछ और शेष था। अनेकों बार मनुष्य से कुछ ऐसी भूल हो जाती है कि ईश्वर भी उस भूल का प्रायश्चित होने तक कुछ नहीं करते।    शायद अच्छाई और बुराई मन के विषय हैं। अनेकों बार राजधर्म निभाते समय राजा को अपने हृदय पर पत्थर रखते हुए ऐसे कर्म करने होते हैं, जिन्हें सही तो नहीं कहा जा सकता है। उचित और अनुचित का निर्णय करना कठिन होता है। अनुचित कृत्य में उचित मात्र इतना होता है कि वह अनुचित केवल प्रजा के हित की कामना से किया गया था। उस कृत्य को करने के बाद कितने ही दिन और रात आंसू बहाये थे। पर राजा का खुद का क्या सुख। राजा तो प्रजा के सुख से ही सुखी होता है और प्रजा के दुख से ही दुखी।   अयोध्या का राजमहल फिर भी बच्चों की किलकारियों की प्रतीक्षा कर रहा...

वसुधा की पुकार

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बचाओ ..... बचाओ ..… बचाओ ... कोई तों मुझे बचाओ ।  एक औरत की चीख संजय के कानों में लगातार आती ही जा रही थी । वह आवाज की तरफ धीरे - धीरे बढ़ने लगा ।  बचाओ .... बचाओ  की जिस आवाज को वह अपने नजदीक समझ रहा था   वह तो उसे दिख ही नहीं रही थी । केवल वह आवाज  उसके कानों में ही सुनाई पड़ रही थी ।  ' ऐसा कैसे हो सकता है कि आवाज आ रही हो लेकिन कोई हो ही ना ?  कही यह मेरा भ्रम तो नहीं ? ' संजय बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ रहा था ।   अभी भी बचाओ ... बचाओ .....की आवाज उसके  कानों में सुनाई दें ही रही थी । वह आवाज की तरफ बढ़ने लगा । वह सावधानी से आगे बढ़ रहा था क्योंकि वह जिस जगह में जा रहा था पहले यहाॅं घने जंगल थे लेकिन अभी कुछ महीनों पहले से ही यहाॅं  के जंगलों को काटा जा रहा था जिसके अवशेष अभी भी जमीन पर पड़े हुए थे।  पेड़ों  के कटे अवशेष उसे नुकसान ना पहुॅंचा दे इसीलिए संजय सावधानी से आगे बढ़ रहा था ।  अंधेरा होने की वजह से उसने अपने मोबाइल की फ्लैश लाइट जला रखी थी ताकि उसे उस अंधेरे में भी दिख सकें । वह आवाज की तरफ सावधान...

नन्ही उम्मीदें

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                                  नन्ही नन्ही उम्मीदें बांधकर । जीत लिया जग सारा। छोटी छोटी आशाओं से। प्रफुल्लित हो गया जीवन सारा। न कभी की कोई बहुत बड़ी लालसा। जो अपनी चादर से बाहर हो। उतने पैर फैलाएं हमनें। जिस से जिस्मानी न भुख हो। आत्मा तृप्ति हो जाए । जब नाम ईश का हम जपे। तृपण कर दे अपने लोभ। सुख सुविधाओं का न भोग लगे। एक गुब्बारे से भी आसमां में उड़ने की चाहत पूरी होती हैं। एक बच्चे की मासूम मुस्कान से। दिन मे भी दिवाली होती हैं। नीलम गुप्ता नजरिया दिल्ली

एक नज्म पिता के नाम

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समुन्दर माँ की ममता का भी गहराई ना छुपाया ! हजारो छंद लिखदु तुलसी की चौपाई ना छुपाया मुझे बचपन मे पापा ने छुवाई थी जो कन्धों से जहाजो से भी उड़ कर वो उचाई ना छू पाया।।             वो इंसान ही क्या जिसमे स्वभिमान नही। वो गीत ही क्या जिस में कोई तान नही मंदिर की मूर्तियो से दुवा मांगने वालों    माँ बाप से बढ़कर कोई भगवान नही होता    उसी का अंश है हम सब उसी से सच्चा नाता है। उसी के परबारिस से अपना जीवन सांसे पता है वही बचपन मे हम को अपने कंधों पे बैठाया है हमे उंगली पकड़ कर बस वही चलना सिखाता है हमारे वास्ते जो आपने सब दुख भूल जाते है पिता कहते है हम जिसको वही अपना बिधाता है।। पिता उपवास राह कर आपने बचो को खिलाते है। पिता बचो के सुख में अपना सब दुख भूल जाते है पिता बचो को आपने गोद मे मेला घूमते है पिता बचो के सपनो को भी इस दुनिया मे लाते है पिता का नाम तोता जिंदगी ही काम आता है      पिता कहते हम जिसको वही हमारा बिधता है। पालक से चांद सुराज और तारे कौन देता है।। मुसीबत से निकलने की इसारे कौन देता है कदम जब डगमगाते है...

"कलम की अभिलाषा"

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चाह नहीं में सरकारी सिंहासन का गुण गान करूँ। चाह नहीं अमरावति की सुंदरियों का मान करूँ। चाह नहीं देवो के चरणों मे झुक कर के शीश नवाऊँ। चाह नहीं में स्वर्ग लोक की खुशियों की गाथा गाऊं। अत्याचार अधर्म अनीति का सदां करूँगी में प्रतिकार। शब्द शब्द में भारत माँ की बोलूँगी में जय जयकार। चाय यही है रणवीरों की समर भूमि की गाथा गाऊँ। वीर सपूतों के चरणों का बंदन कर में शीश झुकाऊँ। दीन दुःखी निर्बल जन का में जीवन भर सहयोग करूँ। नीच अधर्मी अपराधों के सम्मुख जा कर नहीं डरूँ। और तिरंगे का में जग में करती रहूँ सदां गुणगान। शब्द शब्द में बोलूँ तन कर जयति जयति जय हिंदुस्तान।                                     मोहन तोमर 'रिठौना'                                  अम्बाह मुरैना मध्यप्रदेश

आइना बन जाऊं मैं

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क्या_बोले_तस्वीर ********************* और थोड़ा सा तो वक्त बचा है,  जरा इंतजामें सफर कर लूं। जो जिंदगी गुजरी है अब तक,  वो लम्हें फिर से बसर कर लूं। थोड़ा सा रुककर अभी जरा,  एक बार सुस्ताने तो दो मुझे, सबकी फिक्र में कटी जिंदगी,  अब अपनी फिकर कर लूं। बंद आंखों में देख लूं  फिर से ,  अपनी दास्तां के खास पल , जरा पूरी जिंदगी के किस्सा ही,  इक छोटी सी खबर कर लूं। टिक टिक करती घड़ी और,  रुक रुक कर चलती सांस मेरी, समय से बंधी सांस की डोर पे,  मजबूत अपनी पकड़ कर लूं। पके हुए फलों की तरह जो,  बिखरे हैं जमीन पर ”बेफिक्र", तेरे मेरे कुछ ख्वाबों को थाम,  दोनो की एक डगर कर लूं।  ********************** ~रंजन लाल "बेफिक्र"✍️ **********************

"खुशी"

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क्या पता है तुम्हे क्या होती है खुशी कभी कभी आंखों से आंसू बनके भी छलकती है खुशी....! कुछ पाने की चाहत और उसको पा लेने के बीच  जो उम्मीद होती है ना वो होती है खुशी....! कल की फिकर और आज की कश्मकश के बीच जो दो पल का सुकून होता है ना वो होती है खुशी....! बीज बोने से लेकर फसल को काटने के बाद एक किसान की जब पूरी मेहनत वसूल होती है ना वो होती है खुशी....! सौ दर्द सह कर जब एक मां  अपने बच्चे का मुंह देखती है ना वो होती है खुशी....! किसी रोते हुए को हंसा कर मन को जो सुकून मिलता है ना वो होती है खुशी....! सच कहूं तो इंतजार के साथ साथ किसी  उम्मीद के पूरे होने का ही दूसरा नाम है खुशी....!!  कविता गौतम...✍️

एक शापित जगह

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🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱 एक वक़्त ऐसा भी था ज़िन्दगी में हमारी कभी जो दिल के दुनिया में हर पल मोहब्बत की एक दरिया बहती थीं हँसना व दिल से मुस्कुराना इन आँखों में न कभी कोई गम के न नमी रहती थीं चाहत के हँसीन सपनो में मेरे नींदे हर रात खोये रहते थे साँसो में खुशबू इश्क़ का कुछ इस तरह महका करते थे जाने खुदा को मंजूर न हुआ जो खुशी की मन्नते थीं उनसे या सितम हुआ तकदीर का हम पे ये ज़िन्दगी यूँ वीरान होगयी जिन आँखों में मस्ती भरी थीं प्यार का अब उनसे नदिया बहती है दर्द की अब किसी का बसेरा न दिल में यूँ लगता है नैना ये दिल की दुनिया एक शापित जगह होगयी.....!! 🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱🌼🌱 नैना... ✍️💕

तेरी चाहत थी मुझे लग रहा जमाने से

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आज की एक ताजा ग़ज़ल आप सभी मित्रों को समर्पित है--- भूल  पाता  नहीं हूं  तुझको  मैं भुलाने से। तेरी   चाहत थी  मुझे  लग रहा जमाने से। आ  गई  याद  तेरी  शरबती  निगाहों  की मेरी दहलीज के दीपक के टिमटिमाने से। तेरे  आने  से  मेरे  घर  में   बहारें    आईं खिल  गए  फूल  सभी  तेरे  मुस्कुराने से। प्यार का दिल में उजाला है भर दिया तुमने फायदा क्या है दिया अब कोई  जलाने से। बढ़  गए  जब से ये  सैयाद  इस जमाने में उड़  गए   सारे  परिंदे  ये  आशियाने   से। लूटने  की  ये  हविस  छोड़  दो मेरे यारों मजा आता है बहुत खुद को भी लुटाने से। तुमसे मिलकर ये महफिलों  सी जिंदगी थी मेरी आज  वीरानियां  हैं उसके उजड़ जाने से। किसी मजहब में भी इंसानियत नहीं आती दाढ़ी,  पगड़ी  ये  और  चोटियां  बढ़ाने से। सुबहें  रोशन  हैं  मेरी  ...

उड़ान

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  नभ में फैला अपने पर भरते उड़ान अपनी झुंडों के झुंड पक्षियों के कहाॅ उड़ गये नजर नहीं आते वो पक्षियों का उड़ना वी का धर आकार बढते रहना लक्ष्य पर अब नजर नहीं आता घर की छत पर दिखते हर रोज झुंडों के वे अनेकों रूप अब दिखते नहीं युग बदला, विचार बदले अनेकों पीढियों का परिवार टूट गया परिवार एकाकी मनुष्यों में, परिंदों में भी दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'

देवी

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सुनती हो ,मोहल्ले के लड़के आए हैं दुर्गा पूजा का चंदा लेने,ऑफिस जाते राम ने अपनी पत्नी आशा  को आवाज लगाई। अंतरा अंदर से कॉलेज निकलने ही वाली थी कि दरवाजे पर खड़े ,चंदू,विक्की,चंदन को देख सहम गई। तीनों दरवाजे पर रास्ता रोके खड़े थे।तब तक आशा देवी आ गई ,और सब रास्ते से हट कर किनारे हो गए,ताकि अंतरा जा सके ,लेकिन आशा देवी ने स्थिति को भांप लिया । उन्होंने बड़े प्यार से पूछा _किसलिए आए हो? अरे आंटी ,अंकल ने बताया नहीं की चंदा लेने आए हैं। हां मैने सुना ,लेकिन तुम अपने मुंह से बताओ ? अरे आंटी आप भी ना !सर खुजाते चंदन बोला। वो नवरात्र शुरू हो रही है न , मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित होगी ,ये अपना चंदू पूरे नव दिन का व्रत रखता है ,चंदू की पीठ ठोंकते हुए विक्की ने कहा। आशा देवी ने कहा _ ओह !क्या बात है ,पर पूजा क्यों?  साल में दो बार 9 दिन बड़े नियम धर्म निभाते हो तुम लोग ,इससे क्या देवी प्रसन्न हो जाती हैं। ।इन दिनो तुम जैसे देवी के भक्त  मिट्टी से बनी मूर्ति की आराधना करते हो ।फिर और दिन  साक्षात हाड़,मांस की देवियों  पर बुरी नजर रखते हो। मत करो पूजा ,जिस दिन त...

गाड़िया लौहार की छोरी भाग 1

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पंलपंख उडै मोरणी बनकै .... पाईजन खोज छन - छनछनकै ........ सतरंगी ओढ़ीररिया...... पचरंगी थिनम ........... लाल रंग की चोली ......... कोयल सी माइली बोय... चूहा स्वादिष्ट तै भर वह ...... सिर पेन तसला, झारणा......... छजला, चिमटा धर राहे ........ नकाबपोशों की शोभा न्यारी ........ देख मैला अच्छी सलामत..... जो देखता है वो बोलै है......... यो गढ़ लूहार की पाल्ती...... ******** मेरे जन्म स्थान के मुजफ्फरनगर जिला के एक छोटे से गाँव में है । मेरा बाल बार-बार बदलते रहते हैं। ये महाराणा प्रताप सिंह के वँशज मौसम . हमारे इन उत्पादों का आयात होता है। राजस्थान के रजवाडी खानदान से माने । ये एक क़बीला रहने वाले हैं ।इनका कोई घर नहीं। बक्सों के मध्य में . अच्छी तरह से ,खाना ,पीना ,सोना ,सब कुछ । ये लोगापाई का अर्थ नहीं है। भूमि पर . पुराने लौहे को आग में  तपाकर ,उससे चिमटा ,चालना, छलनी ,झारना ,हँसिया ,कलछी ,तसला ,आदि - आदि बनाकर उसे गाँव में घूम - घूम कर बेचते है ।उसी से गुजारा होता है । पशुओं के लिए नयार भूसा गाँव वालों से माँग कर ले आते हैं । ये अपने बच्चों की शादी सिर्फ अपने कबीले में ही करते है । ए...

इल्म

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यूं तो माटी के ढेले हैं सारे यहाँ,  किरदार जो तराश दे, वो औज़ार है इल्म! पूरी दुनिया तुम्हे गलत साबित करने पर उतर भी आए, पूरी दुनिया से लड़ सकते हो जिसके भरोसे- वह अचूक हथियार है इल्म!  लुट जाते हैं हीरे-मोती सब कभी न कभी, जो लूट न सके कोई कभी,  ऐसी अनदेखी दौलत का अंबार है इल्म!  लोग आएंगे-जाएंगे जीवन में हज़ार,  उनको मत सोचो, कि दर्द गैर ही दिया करते हैं,  जो तुम्हें मिटने न देगा- वो आधार है इल्म! बांटते चलो जहान् में कि यह फर्ज भी है,  बेमोल बांट सकते हो जो हर ज़रूरतमंद को,  अनमोल खज़ाना है, इंसानियत से किया प्यार है इल्म!  स्वरचित- शालिनी अग्रवाल  जलंधर

वो पहाड़ की औरत

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वो पहाड़ की औरत वो पहाड़ की औरत  अक्सर दिख जाती है माल रोड पर  अपने पहाड़ी परिधान में कमर पर  उठाए हुए एक लकड़ी का गट्ठर, हांकते हुए अपनी भेड़ बकरियों को  एक मरियल सी गाय  जो उसी की तरह  जिंदगी से निराश ही लगती है। उस पहाड़ की औरत के संग  ना जाने कितने सैलानी  खिंचवाना चाहते हैं फोटो , और खुश होते हैं देखकर  उस औरत को कि कितनी खुशनसीब है , जो विषैले धुंए की नगरी से दूर  इन खुली वादियों की शांत सी हवा में  मस्त जिंदगी बिता रही है।  वो पहाड़ की औरत। ना जानते हुए कि कितनी दर्दनाक है उसकी जिंदगी,  जो ऊंचे नीचे बीहड़ पहाड़ों पर चढ़ते उतरते,  दो जून की रोटी को लक्ष्य मानकर बिता देती है  एक सधवा होते हुए भी विधवा की तरह जिंदगी।  वो पहाड़ की औरत। उसका मर्द पहाड़ों से दूर महानगरों में  जीवन यापन ढूंढते ढूंढते  अक्सर अपनी दैहिक भूख को  खत्म करने की खातिर  बसा लेते हैं एक नई दुनिया  उस औरत के बच्चे भी  अपने भविष्य की खातिर स्वीकार कर लेते हैं  उस नईऔरत को और रह जाते हैं उसी के...

कर्म -फल

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कर्म  पुण्यफल के रूप में भी संचित होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं।  "या कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन " यानि हमें अपना कर्म करना चाहिए फल की चिंता त्याग देनी चाहिए। लेकिन कर्म फल भी संचित होता है, इसका एक उद्धरण महाभारत की कथा में मिलती है। जब अश्वत्थामा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है फलस्वरूप एक मृत शिशु का जन्म होता है। श्रीकृष्ण को जब इस बात का पता चलता है तो अपने सभी पुण्यकर्म का फल  उस मृत शिशु को दे देते हैं, फलस्वरुप वह शिशु  जीवित हो जाता है। यानि कर्म के फल संचित होते है। तब से आज तक माताएं अपने बच्चों के लम्बी उम्र के लिए जीवितपुत्रिका व्रत करती हैँ। यह व्रत बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में माएं अपने बच्चों के लिए अन्न और जल का त्याग करके करती हैं।अश्वत्थामा को आज तक अपने बुरे कर्म का फल मिल रहा है।                                                   ...

कौन चाहता है

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❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ बहुत कुछ कह जाती है ख़ामोशी भी पर उसे पढ़ना कौन चाहता है हर कोई ढूंढ रहा है बात जुबानी आँखों को पढ़ना कौन चाहता है कहने को बहुत है इस जहाँ में जो हमदर्द बना फिरते है दर्द भी वही समझते है ज़ब तक बयां न हो दिल के दर्द बिन कहें कौन समझता है दुनिया में हर किसी को है ख्वाहिश कयी किसी को बनाले अपना या बन जाए हम किसीकी नाम की रिश्ते तो उस आंस्मा में उड़ते परिंदे भी निभाते है दिल से प्यार निभाना यहाँ कौन चाहता है करते है गुफ़्तगू कही, कही दिल लगी भी कर लेते छोड़ कर अपने घर की सम्मान किसी और पे दिल हार बैठते है जो सारी दुनिया छोड़ के इंतज़ार में बैठी होती है हर दिन सजाने वाले गैरों की महफ़िल घर की फिकर कौन करता है बहुत मुश्किल होजाता है बयां करना जो उठती है टिस दिल के हर कोने से श्याही से लिखा लफ़्ज़ नैना हर किसी ने पढ़ा यहाँ जो दिल पे निंशा है वो जख्म कौन पढ़ना है...!! ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ नैना... ✍️✍️

"कमला काकी" भाग- 2

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                  पिछला भाग:--  हम सभी लोगों ने वहाँ पर चाय पी....उसके बाद हम  लोग जहाँ पर श्रमदान करना था.... वहाँ पहुंच गये.... वहाँ शहर से मिलाने वाली सड़क तैयार हो रही थी..... अब आगे:-- हम सभी वहाँ जाकर थोड़ी थोड़ी दूरी पर खड़े हो गये…..एक तरफ़ मलबे से भरी तगाड़ियाँ पास करना  थी... और एक तरफ से खाली तगाड़ीं पास करना थीं.... हम सभी आमने सामने पंक्ति बद्ध खड़े हो गये.....अब शुरु हुआ श्रम दान भरी तगाड़ी  पास करना खाली करके....सामने पंक्ति में देना.... फिर भरी तगाड़ी...फिर खाली.... बस यही सिलसिला जारी था.... एक तरह से तो कहा जा सकता है पासिंग पासिंग का खेल चल रहा था.... सबको मजा भी आ  रहा था.... साथ में मस्ती भी चालू थी.... पर एक गड़बड़ हुयी मेरे पास जैसे ही भरी तगाड़ी आये तो मुझसे सम्हालते ही न बने...और तगाड़ी नीचे गिर जाये दो  तीन बार हो गया... आखिर हमें खाली तगाड़ी वाली  पंक्ति में खड़ा कर दिया गया.... हमको अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था.....बताओ एक छोटी सी तगाड़ी  नहीं सम्हाल पा रहे थे.... पर...

तेरी प्रतिक्रिया

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तेरी प्रतिक्रिया उतनी ही जरूरी है मेरे लिए। जितना जरूरी है पानी हैं पौधे के लिए। बिन पानी पौंधा सूख जाता हैं। ना फूल खिलाता हैं ना छाँव देता हैं। ठूँठ बन अपनी बेबसी पर आँसू बहाता हैं। फिर एक दिन वो काट दिया जाता हैं। कभी चूल्हें में जलता हैं कभी चिता में जलता हैं। जलना नही मुझे पौधें की तरह, ना राख बन धरती में समाना हैं। राख बनने  से पहले फल-फूल  और छाँव देना हैं तेरी प्रतिक्रिया........। गरिमा राकेश गौत्तम खेड़ली चेचट, कोटा राजस्थान

बेटी

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 कहते हैं, घर मे जब जन्म लेती है बेटी             ईश्वर की सौगात,  तारों की शीतल छाया है बेटी माँ के आंसू और पिता  का गम बांटती  हैं बेटी    खुशियाँ साथ लाती हैं बेटी          आगंन की चिड़िया है            अकेलेपन  का साथ है त्याग और  समर्पण की मुरत है बेटी          बेटीयाँ भी कम नहीं रोशन करते कुल का नाम  बेटे दो कुलो  को रोशन करती है बेटी  माँ का अभिमान पिता का गुमान है बेटी ना समझो पराया धन  दो घरों की शान है बेटी l

कुमाता भाग १३ - चिकित्सा और वरदान

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  आज मानव भले ही कितनी भी वैज्ञानिक उन्नति का दावा कर ले पर लगता है कि शायद विज्ञान पहले ज्यादा उन्नतशील था। अनेकों विद्या जो उस काल में सामान्य थीं, आज अनुपलब्ध हैं।    ऐसी अनेकों बातों जिन्हें पहले मात्र कहानियों का हिस्सा ही माना जाता था, आज विज्ञान उन्हें सत्य मानता है। सदियों तक केवल कहानी का हिस्सा माने जाते रहे विमान आज यथार्थ में उपलब्ध हैं। युद्ध कला में हजारों किलोमीटर दूरी तक मार करने बाली मिसाइलें कहानियों के अचूक शस्त्रों की सत्यता को सिद्ध करती हैं। कुरुक्षेत्र की भूमि में रेडियोधर्मी तत्वों की बहुलता यह सोचने पर वाध्य करती है कि शायद इस स्थान पर कभी परमाणु हथियारों का भी प्रयोग हुआ हो।   महरोली का लोह स्तंभ आज भी वैज्ञानिकों के लिये चुनौती बना हुआ है। इतने काल में भी खुले वातावरण में खड़ा एक लोह स्तंभ जंग से पूर्णतः रहित है।   मिश्र के पिरामिड और ममी के रहस्यों को आज भी वैज्ञानिक पूरी तरह समझ नहीं पाये हैं। आज भी उस रसायन की तलाश की जा रही है जिससे लपेटी गयी लाशें कभी विकृत नहीं होती थीं। आज तक सुरक्षित हैं।    ऐसे अनेकों रहस्य जिन्हें क...

अम्मा का प्यार

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अम्मा थी वह सब की पूरे बस्ती के लोग आदर और सम्मान करते थे मीरा नाम था छोटी कद की थी रंग सांवला था । कच्ची उम्र में ही शादी हो गई थी दुनियादारी की कोई जान पहचान नहीं और 16 वर्ष की होते होते विधवा भी हो गई। दुखों का पहाड़ ही टूट गया उस पर बस्ती के लोगों ने सहारा दिया । अम्मा दयालु और प्रेम की देवी थी , अम्मा के बिना बस्ती वालों का कोई काम नहीं होता था। आज बस्ती में कोई हलचल नहीं है अम्मा बहुत बीमार है। अम्मा उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं सबके चेहरे पर उदासी हैं डॉक्टर ने कह दिया अम्मा के पास बहुत कम समय है ।सब लोग अम्मा को घेरकर बैठे हुए हैं ।  सबकी आंखों में आंसू भरे हैं आज अंतिम सांसे गिन रही है अम्मा।बस्ती वालों का अम्मा के प्रति प्यार देखकर यमराज को भी सोचना पड़ेगा।                           ऋचा कर्ण✍✍✍✍

हिंदी लवर

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मथुरा निवासी लावण्या और दिल्ली के यश की शादी अरेंज विथ लव मैरिज थी। दोनों के ही परिवार उच्च शिक्षित एवं सम्पन्न थे। लावण्या स्वयं भी इंटीरियर डिजाइनर थी।उनके विवाह में सभी आये परन्तु यश की चार वर्ष बड़ी बहन  श्रेया जो सिक्किम में किसी कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत थी वह नहीं आ सकी। एक-दो बार फोन पर उनसे बात हुई, वो हमेशा अंग्रेजी में बात करती थीं,जबकि लावण्या अधिकतर सामान्य हिंदी में ही बात करती थी। लावण्या को अक्सर ही लगता जैसे श्रेया को उससे बात करने में विशेष रुचि नहीं है। पर वह समझदार थी इसलिए उसने इस बात को अधिक तूल नही दिया। शादी के दो महीने बाद उनका आने का प्रोग्राम बना। जब वह आई ,सभी ने उनका बहुत प्यार से स्वागत किया।लावण्या भी बेहद गर्मजोशी से उनसे मिली,पर श्रेया का व्यवहार प्रत्यक्ष मिलने पर भी उपेक्षापूर्ण ही रहा।बात बात पर उसे हिंदी में बात करने पर हीनता का एहसास कराती। एक दिन जब बाजार में श्रेया की एक सहेली नेहा मिली तो दोनों का परिचय करवाया, तभी किसी का कॉल आ गया और नेटवर्क की समस्या के कारण लावण्या कुछ दूर जाकर बात करने लगी।जब वह बात खत्म करके आ रही थी , तब उस...

क्या लिखूँ?"

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                 वो कहती हैं मुझसे हमेशा,      कुछ अलग -सा गीतलिखो ।      खुशियों के सुरीले बोल लिये,      मीठे -मीठे से गीत  लिखो ।      कोयल- सी मीठी हो जो ऐसी,      मधुर -मधुर सा संगीत लिखो ।      खिल जाये उपवन की कलियां,      ऐसा सुन्दर -सा गीत चुनो ।      रंगों की सतरंगी रंगों वाली ,      हो जाये ऐसी बरसात  लिखो।      इन्द्रधनुष  रंगों -सी सुन्दर ,      मधुरिम मधुर गीत चुनो ।      राहों के कंटक -वंटक छोड़ो,      फूलों की सुन्दरता को देखो ।      छोड़ो दुख के राग कष्टदायी ,      कोई सुखद -सा गीत चुनो।      अमावस की छोड़ो कालीरातें ,      चाँदनी  चंचल रात  चुनो ।      वो कहती हैं मुझसे हमैशा ,      कुछ अलग सा गीत लिखो ।     ...

माता पिता

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🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹 प्यार ही प्यार  लुटाते है अपनी बच्चों पर हर एक सितम सह लेते है दुनिया हँस कर अपनी बच्चों के लिए खुद की खुशी मायने नहीं रहती इनके दिल में माता पिता ही है जो अपनी ख़ुशी खोजते है अपनी बच्चों के खुशी में.....!! छोटे हो या बड़े सबको एक जैसा प्यार करना कहाँ मिलता है परिवार के सिवा ऐसा निस्वार्थ प्यार जो लगता है समंदर जैसे अपनों में ही नहीं दुनिया से भी सिखाते है हर किसीसे मिलकर रहने का माता पिता ही है जो खोजते है अपनी बच्चों में अपनी दुनिया नयी......!! खुद की आँसू छुपाकर हमें जो हँसना सिखाये माता पिता जैसे कोई कहाँ मिलेंगे जहाँ में  जो हर मुश्किल में साया बनके साथ निभाए खुद भूखे रह कर हम बच्चों की पेट भरते है माता पिता ही है जिनके जुड़े है अपनी बच्चों से जाने आस कयी......!! जिस माँ ने अपनी लहू से सिंच कर हमें दूध है पिलाई पिता की उस आसमान की तरह गर सर पे साया हो तो ज़िन्दगी स्वर्ग से कम नहीं बहुत खुशकिस्मत वाले है जिनके जीवन में माता पिता की साथ है ज़िन्दगी में क्योकि वही तो होते है नैना जो खोजते है हमारी छोटी सी खुशी में ही अपनी सारी खुशी.....

"कमला काकी" भाग-1

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बारिश का मौसम कितना खुशनुमा मौसम होता है, ऐसे मौसम में हम लोगों के कॉलेज में बना प्रोग्राम..... बढ़िया हल्की-हल्की पानी की फुहार चल रही थी...... और ठंडी हवा के झोंके आ रहे थे..... चिड़िया चहचहा रहीं थी....ऐसे में खुशी में हम लोग फूले नहीं समा रहे थे, प्रातः काल का समय बहुत सुहावना मौसम लग रहा था.... सेवा कार्य के लिए जाना था..... पहले एन.एस.एस कैंप लगते थे जिसमें कि श्रमदान किया जाता था...सो 15-20 स्टूडेंट्स का नाम लिखा गया.... कॉलेज में श्रमदान के लिए.....हम लोगों के साथ में दो लेक्चरर भी थी और दो सर भी थे,जो हम लोगों को बस से पास ही के गाँव में श्रमदान के लिए लेकर गए...... बस में से हम लोग खूब खेत खलियान सब देखते हुए जा रहे थे..... हरे भरे खेत बहुत अच्छे लग रहे थे और कभी बंदरों के झुंड दिख जाते..... तो कभी हिरण के झुंड दिख जाते.... ऐसे देखते हुए हम लोग चले जा रहे थे फिर ख्याल आया.... ऐसे मौसम में अंत्याक्षरी का मजा कुछ और ही है.....  तो सोचा अंत्याक्षरी क्यों ना खेली जाए...?  फिर क्या था!! हम लोगों ने बस में खूब अंताक्षरी खेली खूब बारिश के गाने भी गाए.... बीच-बीच में...

हृदय दिवस" दिल का भी रखना ख्याल जरूरी

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"ह्रदय दिवस" है आज बंधुओं। रखिए अपने-2 दिल का ध्यान।। दिल की धड़कन सामान्य रहे। जिससे बिगड़े नहीं कोई काम।। दिल पर कभी बोझ मत लेना। दिल में दर्द हो हल्के में न लेना।। तुरन्त जाएं डॉक्टर को दिखाएं। हार्ट विशेषज्ञ से ये परामर्श लेना।। विशेषज्ञ जो भी उपचार बताएं। दवा परहेज बताएं वैसे ही लेना।। दिल का खुद ही ख्याल रखना। दिल ये स्वस्थ्य है तो मत डरना।। शेष बीमारी से भी बचके रहना। जीवन का आनंद उठाएं जीभर।। दिल की धड़कन ये सामान्य रहे। अपने हार्ट का ध्यान रखें जीभर।। होसके तो केवल अपना ही नहीं। औरों के दिल का भी ध्यान रखें।। एक अकेला दिल ही कर सकता। ये स्वस्थ रहे तो सब कर सकता।। बड़ा जरूरी रखें दिल का ध्यान। यह शरीर का है एक अंग महान।। यह दिल शरीर इंजन का पिस्टन। ये जबतक ठीक सही हर सिस्टम।। पिस्टन फेल तो गाड़ी बंद समझो। इसी लिए दिल का महत्व समझो।। शेष बीमारी में है सबकुछ चलता। हृदय रोग का रोगी ये कम चलता।। तनाव चिन्ता क्रोध दिल बोझ बुरा। इससे रहिये दूर सदैव ये बहुत बुरा।। रचयिता : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ सिटी,उ.प्र.

मरते रिश्ते

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पिता जी की मृत्यु हो गई ,भाई आ जाओ ,बहन ने रोते रोते कहा। कही काम से निकले प्रवीण ने बुदबुदाते हुए कहा इनको भी आज ही मरना था। मां की मृत्यु के बाद पिता ही अकेले रह गए थे,शहर में उनका अपना मकान था , जिसमें दोनों दंपत्ति रिटायरमेंट के बाद अपनी जीवन संध्या सुख पूर्वक गुजार रहे थे कि अचानक पत्नी ने उनसे हाथ छुड़ा ,मृत्यु का दामन थाम लिया। अकेले रह गए इस अवस्था में । बेटे ने अपना पल्ला पहले झाड़ लिया , कि पापा आपके टोका टाकी करने से हमारे वैवाहिक जीवन  की शांति बिगड़ जाती है। बेटी का अपना परिवार था ,जहां ज्यादातर दोनों दंपत्ति जाया करते थे। आखिर पत्नी की मृत्यु के बाद  उन्होंने गांव जाना सही समझा कि संयुक्त परिवार में सबका गुजर बसर हो जाता है मेरा भी हो जाएगा।  शहर का मकान बेटे ने पिता को समझा बुझा कर चालाकी से अपने हाथ में ले उसे किराए पर उठा दिया। गांव से जब  उनका मन ऊबता तो बेटी के घर आ  जाते,शादीशुदा बेटियों की भी अपनी एक सीमा होती है ।बेटी की सास बड़बड़ाती ,जब देखो मुंह उठाए चले आते हैं,हमारी तरफ   तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पिया जाता । ऐसे ...

"मजबूरियों में"

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जिंदगी तूने मुझे, जीना सिखा दिया सोए हुए ख्वाब को, फिर से जगा दिया ।। मुश्किलों से मुझे, लड़ना सिखा दिया उलझनों से मुझे, सुलझना सिखा दिया ।। जिंदगी तूने मुझे जीना सिखा दिया...। मजबूरियों को मुझे ,समझना सिखा दिया दर्द में भी मुझको, हंसना सिखा दिया ।। जिंदगी तूने मुझे जीना सिखा दिया...। टूटी हुई उम्मीदों को, फिर से जगा दिया मंजिल को मेरी, मुझसे मिला दिया ।। जिंदगी तूने मुझे जीना सिखा दिया...। मजबूरियों में भी मुझको,हौसला दिया भटके हुए राही को, जैसे रस्ता दिखा दिया ।। जिंदगी तूने मुझे जीना सिखा दिया सोए हुए ख्वाब को, फिर से जगा दिया ।। "स्वरचित" कविता गौतम...✍️

महात्मा गांधी

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आई कभी देश में एक अनोखी आंधी थी,  जिसने परिचित हमें कराया हस्ती थी वे गांधीजी। जिनके अथक प्रयासों से ही खुली हवा में जीते हैं हम  जिन की कोशिश लाई थी भारत में खुशियों के रंग , तन पर रहती एक लंगोटी डंडा हाथ में रहता था  झुका हुआ तन उनका था पर मस्तक ऊंचा रहता था। जिनकी दुर्बल दुबली काया ही थी उनकी पहचान  लगता था मानो सोई होगी उनमें एक अद्भुत जान,  पर अंग्रेजी हुकूमत कांपती थी उनकी ललकार से  आजादी के मतवाले करते उनकी जय-जयकार थे । सत्य ,अहिंसा का गांधी जी ने बिगुल बजाया था  स्वदेशी को अपनाओ बस यही पाठ पढ़ाया था, पर आज गांधी अपने भारत में वापस आपने आना है भ्रष्टाचार का वृक्ष जमा है उसको जरा हिलाना है।  सोई जनता के मन में फिर से देश प्रेम जगाना है  सोने की चिड़िया को फिर से दुनिया में चमकाना है,  शत् शत् प्रणाम तुमको आज जन्म दिवसपर करते हैं  चले आपकी ही राह पर हम यही प्रयास करते हैं। वंदे मातरम स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा

संगीत और मन

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मन के उठते जज्बातों में, संगीत सुनाई देता है, जब मन प्रियतम को याद करे, झंकार उठे ढमन के अंदर, प्रियतम का प्रणय निवेदन जब, यादों के झोकों संग आए, संगीत मधुर बजने लगता, जीवन के हर स्वर्णिम पल में, संगीत ध्वनित होता रहता, प्रियतम का साथ रहे जब-तक, प्रियसी के अंतः मन में, प्रेम की रस गंगा बहती, तब मन के उदगार संगीत बनें, जज़्बात बने गीतों की माला, संगीत उठे हृदयतल से, होंठों पर मधुरिम गीत उठे, मन की बगिया झंकृत होकर, जीवन को मधुरिम संगीत करे, संगीत की मधुरिम स्वर लहरी, मन के दुःख कम कर जाती, संगीत एक साधना है, साधक की साधना जैसी हो, संगीत वही रूप धारण करता।। डॉ कंचन शुक्ला

तुम कवि हृदया हो

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"आज सकल विश्व भी करे स्त्रियों पर अभिमान, बेटी, बहन और माँ बन बढ़ाया कुल का सम्मान।। शिक्षिका और डॉक्टर बनकर करे जगत कल्याण। थाम कलम को बेटी ने, दिया साहित्य में योगदान।। कन्या घर में चन्द्र सम, कन्या ही सकल आकाश। कन्या सूर्य सा तेज़ बन, करती घर-आँगन प्रकाश।। बेटी बढ़ा रही हैं आज, देश का गौरव मान। बेटों से भी आगे रहें, बेटियों के सारे काम।।" "एक कवयित्री बेटी/स्त्री के सम्मान में..." तुम उदीप्त प्रबल प्रकाश हो, जैसे शिव का कैलाश। निज कलम से जब भी लिखो, करती दिव्यप्रकाश।। जब जुगनू सी बनकर उड़ो, लगती फूल पलाश। दामिनी-चपला सी चतुर, कभी न होती उदास।। चुनकर शब्दों के मोती, भाव आँचल में भरती हो। कवि हृदया हो भावों को भावों से भावों में लिखती हो।। खुशियों की लताओं से, प्यार की ठंडी हवाओं से। नवजीवन गीतों में भर देती हो, कवयित्री जो हो।। विरह की लहर भी, खुशी संलिप्त चमक भी, वियोग भी संयोग भी, महक थोड़े इंतज़ार की।। हास्य-नैराश्य भाव तो कभी वीररस के प्रसार से। प्रेम में भक्ति हो लक्षित तेरी लेखनी की धार से।। लेखनी साधन, लिखना साध्य ज्ञान का हुआ प्रसार। ज़रा अभिमान नहीं, पाठिका भी, ...

अधूरी प्रेम कहानी

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क्या लिखूं मैं वो अनजानी अधूरी कहानी ,  दो दिलो में सिमटी वो प्रेम कहानी । बेखबर बेपरवाह बीते वो पल , कब सिमट गयी वो उसमे उन लम्हों कि रवानी । वो भी क्या दिन था जिस दिन मिला था मैं उस अनजानी से, छिपकर तकती वो कहती नजरे , आस पास रहकर सब कुछ  समेटती वो नजरे । गुम होते वो पल ,बढते वो अरमान , नया जीवन जीने को वो चढ़ते परवान । वो भी तो थे बिल्कुल  अनजान , हँसते थे मिलते थे करते थे वो बातें तमाम । मिलते ही खो जाते,  शायद  कभी न पुरे होने वाले सपनो में । पर घूमा जब वो समय का पहिया , कर कुछ न सके , हुए मजबूर हर किसी के लिये, छोड़ दिए वो  सपने तमाम । थे मजबूर वो एक दूसरे की कही बातों से, समझा न सके किसी को वो  अपने दिल के वो जज्बात  । बीतते गये पल ,बन गये वो पल से दिन दिन से महीने और महीनों से बन गये साल । थे मजबूर ,हावी थे हालात , छोड़ सारी मिलने कि आस , चल पड़े थे मिलाने जीवन से ताल । आज भी समझ नही आती ‌  वो अनजानी अधूरी , दो दिलो में सिमटी वो प्रेम कहानी .............. मुकेश दुहन "मुकू"

तुमसे ही ख़ुशियाँ

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तुमसे ही ख़ुशियाँ मेरी,तुमसे ही दुनिया तुम हो मेरे सतरंगी ख़्वाबों का कारवाँ अधूरी हूँ मैं तुम बिन ,अधूरा है मेरा प्यार तुझमें ही सिमटा हुआ खुशियों का संसार जिधर भी जाती हैं ये नजरें हमारी उधर ही दिखाई देती है सूरत तुम्हारी जी न पाएँगे तुझसे बिछड़कर एक दिन तन्हा तन्हा से हो जाएंगे आपके बिन.....                  नेहा शर्मा

कशिश

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****** कुछ सवाल सुलगते से लगे उसकी आँखों में, शायद.... कुछ कहना था उसे आखिरी लम्हों में। अनकहा बोझ  जो उसके मन पर था न जाने क्यों .... जाते-जाते कह न सका। मैं जानता हूँ... जो रिश्ता कभी मरा है, न जाने क्यों दिल के किसी कोने में आज तक सुलग रहा है। शायद उसके वायदे सुलग रहे हैं या मेरी तन्हाईयाँ... बस एक धुन्ध है हमारे दरम्यां। फ़िज़ाओं में घुला है उसका अल्हड़पन, जैसे एक दूजे को ढूंढता हो वाबरा मन। हर तरफ एक अनदेखी दीवार है एक नदी के इस पार है एक उस पर है। एक कशिश.... जिसे आंखों से बहना था, शायद उसे आखिरी लम्हों में कुछ कहना था। ************************ डॉ0 अजीत खरे         प्राचार्य एम0 बी0 एल0 डी0 महाविद्यालय स्वरचित व मौलिक ***************************

कुमाता भाग १२ - पत्नी धर्म तथा प्रेम में बलिदान

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  विभिन्न कथाओं के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के पुत्र देव हुए तथा उनकी पत्नी दिति के पुत्र दैत्य या असुर हुए। इस तरह देव और असुर दोनों एक ही पिता की संतान भाई भाई हैं। देवों और असुरों के विचार कभी नहीं मिले। दोनों के मध्य अक्सर संग्राम होता रहा है। उसी संग्राम को देवासुर संग्राम कहा जाता है।   असुरों के कुल में उत्पन्न हिरश्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त हुए। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लिया था।   प्रह्लाद के पुत्र विरोचन के विषय में कथा है कि विरोचन व इंंद्र दोनों भाई ब्रह्मा जी के समक्ष एक ही प्रश्न लेकर उपस्थित हुए। " परम पिता। यह आत्मतत्व क्या है।" " जो दर्पण में दिखता है, वही तो आत्मा है। इसी आत्मा को पुष्ट करना ही आत्मतत्व है।" परमपिता ने बहुत संक्षेप में उत्तर दिया।   कथा के अनुसार विरोचन परमपिता की बात का सही अर्थ न समझ पाये। दर्पण में दिखे शरीर को ही आत्मा समझ गये। जबकि इंद्र ने मन रूपी दर्पण में आत्मा को देखा।   कथा कुछ भी रहे। पर लगता है कि विरोचन आत्मतत्व को सही समझ गये थे। शायद इंद्र...