तेरी प्रतिक्रिया



तेरी प्रतिक्रिया
उतनी ही जरूरी
है मेरे लिए।
जितना जरूरी है
पानी हैं
पौधे के लिए।
बिन पानी
पौंधा सूख
जाता हैं।
ना फूल खिलाता हैं
ना छाँव देता हैं।
ठूँठ बन
अपनी बेबसी
पर आँसू
बहाता हैं।
फिर एक दिन
वो काट
दिया जाता हैं।
कभी चूल्हें
में जलता हैं
कभी चिता में
जलता हैं।
जलना नही
मुझे पौधें
की तरह,
ना राख बन
धरती में समाना हैं।
राख बनने 
से पहले
फल-फूल 
और छाँव देना हैं
तेरी प्रतिक्रिया........।
गरिमा राकेश गौत्तम
खेड़ली चेचट, कोटा राजस्थान

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४