देवी

सुनती हो ,मोहल्ले के लड़के आए हैं दुर्गा पूजा का चंदा लेने,ऑफिस जाते राम ने अपनी पत्नी आशा  को आवाज लगाई।
अंतरा अंदर से कॉलेज निकलने ही वाली थी कि दरवाजे पर खड़े ,चंदू,विक्की,चंदन को देख सहम गई।
तीनों दरवाजे पर रास्ता रोके खड़े थे।तब तक आशा देवी आ गई ,और सब रास्ते से हट कर किनारे हो गए,ताकि अंतरा जा सके ,लेकिन आशा देवी ने स्थिति को भांप लिया ।
उन्होंने बड़े प्यार से पूछा _किसलिए आए हो?
अरे आंटी ,अंकल ने बताया नहीं की चंदा लेने आए हैं।
हां मैने सुना ,लेकिन तुम अपने मुंह से बताओ ?
अरे आंटी आप भी ना !सर खुजाते चंदन बोला।
वो नवरात्र शुरू हो रही है न , मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित होगी ,ये अपना चंदू पूरे नव दिन का व्रत रखता है ,चंदू की पीठ ठोंकते हुए विक्की ने कहा।

आशा देवी ने कहा _ ओह !क्या बात है ,पर पूजा क्यों?  साल में दो बार 9 दिन बड़े नियम धर्म निभाते हो तुम लोग ,इससे क्या देवी प्रसन्न हो जाती हैं। ।इन दिनो तुम जैसे देवी के भक्त  मिट्टी से बनी मूर्ति की आराधना करते हो ।फिर और दिन  साक्षात हाड़,मांस की देवियों  पर बुरी नजर रखते हो।
मत करो पूजा ,जिस दिन तुमलोग भ्रूण में बेटियों  की हत्या,छोटी बच्चियों और लड़कियों पर अपनी बुरी निगाह ,घर में मां,पत्नी का उत्पीड़न बंद कर दोगे।  उसी दिन से देवी मां की कृपा शुरू हो जाएगी ।
जाओ कहीं और जाओ , मैं चंदा तभी दूंगी जब तुमलोग मोहल्ले की हर लड़की को उचित सम्मान दोगे ,उनकी रक्षा का वचन दोगे।
तीनों का मुंह बन गया था।चंदन धीरे से फुसफुसाया ,चंदा देना नहीं था ,.. और इतना सारा ज्ञान पिला गईं।
चल ....यार।
तब तक विक्की बोला ,आंटी चुनाव में खड़ी हो जाना ,मैं खूब वोट दिलवाऊंगा।
आशा देवी ने चुपचाप दरवाजा बंद कर लिया,और सोचने लगी ,हमारी इतनी समृद्ध परंपरा को कैसे वक्त ने सिर्फ दिखावा मात्र बना दिया।
शास्रों में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है और लिखा भी है, नारी की जहां पूजा नहीं होती वहां देवता भी निवास नहीं करते।
पूजा ,त्योहार सभी वर्गों के सम्मान के लिए है,दुर्गा पूजा में मां की मूर्ति गढ़ने के लिए ,तवायफों के आंगन की मिट्टी लाई जाती है ,इसलिए की उन्हें भी भरपूर सम्मान मिले, वे वंचित ,समाज का अंग होते हुए भी समाज से अलग हेय दृष्टि से देखी जाती हैं ।
समाज का कैसा दोगला रूप है ?नारी की पूजा भी और शोषण  भी ।
समाप्त

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