हिंदी लवर
मथुरा निवासी लावण्या और दिल्ली के यश की शादी अरेंज विथ लव मैरिज थी। दोनों के ही परिवार उच्च शिक्षित एवं सम्पन्न थे। लावण्या स्वयं भी इंटीरियर डिजाइनर थी।उनके विवाह में सभी आये परन्तु यश की चार वर्ष बड़ी बहन श्रेया जो सिक्किम में किसी कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत थी वह नहीं आ सकी।
एक-दो बार फोन पर उनसे बात हुई, वो हमेशा अंग्रेजी में बात करती थीं,जबकि लावण्या अधिकतर सामान्य हिंदी में ही बात करती थी। लावण्या को अक्सर ही लगता जैसे श्रेया को उससे बात करने में विशेष रुचि नहीं है। पर वह समझदार थी इसलिए उसने इस बात को अधिक तूल नही दिया।
शादी के दो महीने बाद उनका आने का प्रोग्राम बना। जब वह आई ,सभी ने उनका बहुत प्यार से स्वागत किया।लावण्या भी बेहद गर्मजोशी से उनसे मिली,पर श्रेया का व्यवहार प्रत्यक्ष मिलने पर भी उपेक्षापूर्ण ही रहा।बात बात पर उसे हिंदी में बात करने पर हीनता का एहसास कराती।
एक दिन जब बाजार में श्रेया की एक सहेली नेहा मिली तो दोनों का परिचय करवाया, तभी किसी का कॉल आ गया और नेटवर्क की समस्या के कारण लावण्या कुछ दूर जाकर बात करने लगी।जब वह बात खत्म करके आ रही थी , तब उसके श्रेया को कहते हुए सुना कि भाभी छोटे शहर से हैं न ,इसलिए अंग्रेजी ठीक से नही आती।उनके तो व्हाट्सएप में तक भी हिंदी की बोर्ड सेट है।
अब उसे अपने प्रति श्रेया के बर्ताव का कारण समझ आ गया,परन्तु उसने ऐसे दिखाया जैसे कुछ सुना ही न हो।
तभी सड़क पर चलते हुए नेहा को एक बाइक सवार ने ठोकर मार दी,जिसके कारण उस के हाथ और पैर मे चोटें आ गई।लावण्या फटाफट उसे पास के हॉस्पिटल ले गई, श्रेया दर्द से बेहाल नेहा का ध्यान रख रही थी और लावण्या उसकी उपचार के लिये नर्स, डॉक्टर और दवाइयों का प्रबंध कर रही थी।वहां जब डॉक्टर,नर्स के साथ लावण्या ने धाराप्रवाह अंग्रेजी में बात की तो श्रेया तो आश्चर्य से उसका मुंह देखती रह गई।
उपचार के बाद नेहा को उसके घर छोड़ते हुए जब घर लौटे तो श्रेया ने उसे थैंक्स कहा और झेंपते हुए पूछ ही लिया कि भाभी आप हमेशा हिंदी में ही क्यों बात करती हो? मुझे तो पता ही नही था कि आप इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलती हो।
तो लावण्या ने मुस्कुराते हुए कहा –" दीदी, हिंदी हमारी मातृभाषा है, मातृ यानी माँ, तो अपनी माँ से तो सबसे ज्यादा प्यार होना भी चाहिए।और रही बात अंग्रेजी या उर्दू भाषा की, तो यह तो घर आये मेहमान की तरह हैं, जिन्हें हमने बड़े प्यार और सम्मान के साथ दिल से अपनाया है । मेहमान का सम्मान करना चाहिए पर यदि उसका सम्मान करते करते हम अपने परिवार का, अपनी माँ का ही अपमान करने लगें तो यह तो गलत है न।और वैसे भी जो अपनापन मुझे हिंदी में लगता वो किसी और भाषा में नहीं । "
"वाह मेरी हिंदी लवर भाभी, कितनी बड़ी बात आपने इतनी सरलतापूर्वक कही , मैं तो आपकी फैन हो गई। आपने तो मुझे एक नई सीख दी है ।अब मैं भी भले ही अंग्रेजी में बात करूँगी पर हिंदी बोलने वालों को हेय दृष्टि से नही देखूंगी।"
प्रीति ताम्रकार
जबलपुर(मप्र)
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