"कमला काकी" भाग- 2

                 
पिछला भाग:-- 
हम सभी लोगों ने वहाँ पर चाय पी....उसके बाद हम 
लोग जहाँ पर श्रमदान करना था.... वहाँ पहुंच गये.... वहाँ शहर से मिलाने वाली सड़क तैयार हो रही थी.....
अब आगे:--
हम सभी वहाँ जाकर थोड़ी थोड़ी दूरी पर खड़े हो गये…..एक तरफ़ मलबे से भरी तगाड़ियाँ पास करना 
थी... और एक तरफ से खाली तगाड़ीं पास करना थीं.... हम सभी आमने सामने पंक्ति बद्ध
खड़े हो गये.....अब शुरु हुआ श्रम दान भरी तगाड़ी 
पास करना खाली करके....सामने पंक्ति में देना....
फिर भरी तगाड़ी...फिर खाली.... बस यही सिलसिला जारी था.... एक तरह से तो कहा जा सकता है पासिंग पासिंग का खेल चल रहा था.... सबको मजा भी आ 
रहा था.... साथ में मस्ती भी चालू थी.... पर एक गड़बड़ हुयी मेरे पास जैसे ही भरी तगाड़ी आये तो मुझसे सम्हालते ही न बने...और तगाड़ी नीचे गिर जाये दो 
तीन बार हो गया... आखिर हमें खाली तगाड़ी वाली 
पंक्ति में खड़ा कर दिया गया.... हमको अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था.....बताओ एक छोटी सी तगाड़ी 
नहीं सम्हाल पा रहे थे.... पर क्या कर सकते थे मौका 
तो बराबर दिया गया.....

खैर दो घंटे सतत काम चला.... फिर लंच का समय
हो गया था सो हम सभी ने टेंट में पहुँच कर...अपना अपना टिफिन निकाला...सभी ने मिल जुल कर खा
लिया... बहुत अच्छा भी लगा...सबने साथ बैठकर
मिल बाँट कर खाया.....

थोड़ा आराम करने के बाद हम सभी घूमने निकल 
लिए.... गाँव का जीवन पास से देखने जो मिल रहा था....कैसा होता है गाँव का जीवन.... कैसे लोग
होते हैं यहाँ के....खेत खलियान चारों ओर हरियाली
ही हरियाली छायी थी....गाँव की शुद्ध आवोहवा
मन मयूर सा नाच रहा था....हम लोग एक झोपड़ी 
के सामने रुके....एक माताराम बाहर बैठी सूपे में
गेंहूँ फटक रहीं थीं....हम लोगों ने नमस्ते करी और
उनके आँगन में आ गये...आओ आओ कहते उन्होंने 
बड़े प्यार से हम सभी को बैठाया....कोई खटिया पर 
तो कोई मेड़ों पर बैठ गये.....

माता राम अंदर जाकर पानी लेकर आंईं.... फिर लौटा गिलास अंदर रख कर आंईं....तो उनके हाथ में एक 
सूपा था जो उन्होंने सभी के सामने रख दिया...... 
उसमें बढ़िया गर्मा गरम मूंगफली और गुड़ रखा था..... खाओ भई तुम औरें सकुचाओ ने...
हमोंरों के मेहमान आओ तुम औरें.....
हम सभी ने मूंगफली गुड़ के साथ खायीं... बहुत बढ़िया लगा....फिर हम लोग उठ खड़े हुए जाने को तो वो बोलीं बेटा आज खाना हमारे यहाँ खाना है....अरे नहीं नहीं आप परेशान न हों हम लोग...
हमारी बात पूरी नहीं हो पायी...वो बोलीं बेटा हम आवे वारे हते तुम औरों को बोलवे के लाने.....
इते से लघ्घर तीन घरों में खाना आये तुमाओ.....
संजा होतयी आ जईयो तुम औरें हम कमला काकी
आयें ऐ गाँव की...सबयीं कमला काकी कहत आयें
हमाये लाने कमला काकी......
क्रमशः--

          कहानीकार- रजनी कटारे
               जबलपुर ( म.प्र.)

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