महात्मा गांधी

आई कभी देश में एक अनोखी आंधी थी,
 जिसने परिचित हमें कराया हस्ती थी वे गांधीजी।
जिनके अथक प्रयासों से ही खुली हवा में जीते हैं हम 
जिन की कोशिश लाई थी भारत में खुशियों के रंग ,
तन पर रहती एक लंगोटी डंडा हाथ में रहता था 
झुका हुआ तन उनका था पर मस्तक ऊंचा रहता था।
जिनकी दुर्बल दुबली काया ही थी उनकी पहचान
 लगता था मानो सोई होगी उनमें एक अद्भुत जान,
 पर अंग्रेजी हुकूमत कांपती थी उनकी ललकार से 
आजादी के मतवाले करते उनकी जय-जयकार थे ।
सत्य ,अहिंसा का गांधी जी ने बिगुल बजाया था
 स्वदेशी को अपनाओ बस यही पाठ पढ़ाया था,
पर आज गांधी अपने भारत में वापस आपने आना है भ्रष्टाचार का वृक्ष जमा है उसको जरा हिलाना है।
 सोई जनता के मन में फिर से देश प्रेम जगाना है
 सोने की चिड़िया को फिर से दुनिया में चमकाना है,
 शत् शत् प्रणाम तुमको आज जन्म दिवसपर करते हैं
 चले आपकी ही राह पर हम यही प्रयास करते हैं।
वंदे मातरम

स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा

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