गाड़िया लौहार की छोरी भाग 1



पंलपंख उडै मोरणी बनकै ....
पाईजन खोज छन - छनछनकै ........
सतरंगी ओढ़ीररिया......
पचरंगी थिनम ...........
लाल रंग की चोली .........
कोयल सी माइली बोय...
चूहा स्वादिष्ट तै भर वह ......
सिर पेन तसला, झारणा.........
छजला, चिमटा धर राहे ........
नकाबपोशों की शोभा न्यारी ........
देख मैला अच्छी सलामत.....
जो देखता है वो बोलै है.........
यो गढ़ लूहार की पाल्ती......

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मेरे जन्म स्थान के मुजफ्फरनगर जिला के एक छोटे से गाँव में है । मेरा बाल बार-बार बदलते रहते हैं। ये महाराणा प्रताप सिंह के वँशज मौसम . हमारे इन उत्पादों का आयात होता है। राजस्थान के रजवाडी खानदान से माने । ये एक क़बीला रहने वाले हैं ।इनका कोई घर नहीं। बक्सों के मध्य में . अच्छी तरह से ,खाना ,पीना ,सोना ,सब कुछ । ये लोगापाई का अर्थ नहीं है। भूमि पर .
पुराने लौहे को आग में  तपाकर ,उससे चिमटा ,चालना, छलनी ,झारना ,हँसिया ,कलछी ,तसला ,आदि - आदि बनाकर उसे गाँव में घूम - घूम कर बेचते है ।उसी से गुजारा होता है । पशुओं के लिए नयार भूसा गाँव वालों से माँग कर ले आते हैं । ये अपने बच्चों की शादी सिर्फ अपने कबीले में ही करते है । एक समूह के लड़के की शादी दूसरे समूह की लड़की से की जाती है । इन लोगों के पास गहने ख़ूब होते हैं आदमी और औरत दोनों ही पहनते हैं । कानो में बड़ी - बड़ी बालियां पैरों में मोटे - मोटे कड़े । जिन्हें ये लोग बाँक बोलते हैं । जैसा मुझे याद है ।  आदमी राजस्थानी आदमियों की तरह धोती कुर्ते जैसा पहनते है । 
गले में मोटी हँसली ,ताबीजी,कंठी दोनों ही पहनते हैं।
औरते नाक में दोनों तरफ मोटी -  मोटी नथनी पहनती हैं ।हाथों में राजस्थानी औरतो की तरह ऊपर - नीचे सीप के ( कुछ प्लास्टिक जैसा होता है सीप )कड़े - चूड़िया  पहनती है । गोटेदार चुनरी ...भारी घूमदार दामण ...
सामान्य श्रेणी के मुकाबले ....रूबदार चाल, मिठी वाणी, उसमे जब चिमटा लो, कल्छी लो,पुराने पीपे से बना बनाया गया था, झार फाईड लो, सलाला, छाजला, घर-घर के आधार पर प्राइमरी । भगभंग रूप जो देखें घड़ी 
ये लोग जिनके घरों में सामान बेचने जाती है उनकी औरतो को बाहण और आदमियो को जीजा कहकर बात करती हैं। देश रसीली बोय। ... बेन को कामणी चालै । ध्यातव्य भी मेने कर लो । पर मानती नहीं। मेरी प्यारी जीजा...सः। तो तन मननी बात बाती । भूसां 
तो लेकै ही जांगी  । मेरी बाहण का घर सः । फिर भला कौन मना कर सकता हैं ।जब कोई इतने अपनापन दिखाये । जैसी थोड़ी बहुत भाषा मुझें याद है । वो ही बता रही हूँ । ये लोग राजस्थानी भाषा का ही प्रयोग करतें हैं ।लेकिन जगह - जगह घूमने की वजह से ये लोग हिन्दी भाषा भी बोल लेते हैं । पर उसमे इनकी जो टोन होती हैं । वो वही होती हैं इनकी अपनी भाषा की । बदलते समय के साथ इनकी महिलाये सुट - सलवार भी पहनने लगी हैं ।और आदमी पेंट - शर्ट । क्योकि बहुत से लोग इन्हें कपड़े उपहार में दे देते हैं । जिसे ये बहुत खुश होकर लेते हैं ।हमारे यहां इन लोगों का बहुत सम्मान होता हैं ।

                     जारी है.......
नेहा धामा " विजेता "
 बागपत , उत्तर प्रदेश

  

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