कर्म -फल
कर्म पुण्यफल के रूप में भी संचित होता है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं।
"या कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन "
यानि हमें अपना कर्म करना चाहिए फल की चिंता त्याग देनी चाहिए। लेकिन कर्म फल भी संचित होता है, इसका एक उद्धरण महाभारत की कथा में मिलती है। जब अश्वत्थामा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है फलस्वरूप एक मृत शिशु का जन्म होता है। श्रीकृष्ण को जब इस बात का पता चलता है तो अपने सभी पुण्यकर्म का फल उस मृत शिशु को दे देते हैं, फलस्वरुप वह शिशु जीवित हो जाता है। यानि कर्म के फल संचित होते है। तब से आज तक माताएं अपने बच्चों के लम्बी उम्र के लिए जीवितपुत्रिका व्रत करती हैँ। यह व्रत बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में माएं अपने बच्चों के लिए अन्न और जल का त्याग करके करती हैं।अश्वत्थामा को आज तक अपने बुरे कर्म का फल मिल रहा है।
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