मरते रिश्ते
कही काम से निकले प्रवीण ने बुदबुदाते हुए कहा इनको भी आज ही मरना था।
मां की मृत्यु के बाद पिता ही अकेले रह गए थे,शहर में उनका अपना मकान था , जिसमें दोनों दंपत्ति रिटायरमेंट के बाद अपनी जीवन संध्या सुख पूर्वक गुजार रहे थे कि अचानक पत्नी ने उनसे हाथ छुड़ा ,मृत्यु का दामन थाम लिया।
अकेले रह गए इस अवस्था में ।
बेटे ने अपना पल्ला पहले झाड़ लिया , कि पापा आपके टोका टाकी करने से हमारे वैवाहिक जीवन की शांति बिगड़ जाती है।
बेटी का अपना परिवार था ,जहां ज्यादातर दोनों दंपत्ति जाया करते थे।
आखिर पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने गांव जाना सही समझा कि संयुक्त परिवार में सबका गुजर बसर हो जाता है मेरा भी हो जाएगा।
शहर का मकान बेटे ने पिता को समझा बुझा कर चालाकी से अपने हाथ में ले उसे किराए पर उठा दिया।
गांव से जब उनका मन ऊबता तो बेटी के घर आ जाते,शादीशुदा बेटियों की भी अपनी एक सीमा होती है ।बेटी की सास बड़बड़ाती ,जब देखो मुंह उठाए चले आते हैं,हमारी तरफ तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पिया जाता ।
ऐसे में अपमान और कुंठा से जिंदगी बीत रही थी ,वो खाली समय में डायरी लिखा करते थे।
पुत्र ने उन्हें हर मौके पर दुत्कारा , बहू ने अपने घर आने को मना ही कर दिया था ।बेटी ने सास की परवाह किए ,जब भी आए सेवा ,सम्मान दिया।
आज मृत्यु के बाद भाई ने पहले क्रिया कर्म निपटाया ,फिर उनके सारे सामान की तलाशी लेनी शुरू की। एटीएम कार्ड,बैंक का पासबुक,डायरी जिसमें उन्होंने पैसे का हिसाब लिख रखा था,बचे खुचे जेवर,मोबाइल सब कुछ अपने कब्जे में ले लिया।
13 दिन गांव में उनकी तेरहवीं के लिए रुकना था ,उतने ही दिनों में उन्होंने पिता की सारी छोड़ी संपत्ति का पता लगा अपने नाम करा लिया।
,जिस पिता के लिए उनके घर के दरवाजे बंद थे ,उनकी संपत्ति को लेते शर्म नहीं आई ,और इतना तक की मकान के आगे पिता के नाम का नेम प्लेट भी हटवा अपना नाम करवा लिया।
बहन तो पराई थी ,पराई ही रही ।लेकिन ये सब देखकर उसका दिल चीत्कार रहा था,जिस माता पिता ने खून पसीने से सींचा , वे कूड़ा थे,लेकिन सोना चांदी पैसे रुपए को उनके कूड़ा समझ गरीबों में दान नहीं किया।
आज बहुत श्रद्धा से उनका श्राद्ध किया जाता है ,जीते जी तो श्रद्धा वे पाए नहीं ,अब देकर भी क्या होगा।
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