कुमाता भाग १३ - चिकित्सा और वरदान
आज मानव भले ही कितनी भी वैज्ञानिक उन्नति का दावा कर ले पर लगता है कि शायद विज्ञान पहले ज्यादा उन्नतशील था। अनेकों विद्या जो उस काल में सामान्य थीं, आज अनुपलब्ध हैं।
ऐसी अनेकों बातों जिन्हें पहले मात्र कहानियों का हिस्सा ही माना जाता था, आज विज्ञान उन्हें सत्य मानता है। सदियों तक केवल कहानी का हिस्सा माने जाते रहे विमान आज यथार्थ में उपलब्ध हैं। युद्ध कला में हजारों किलोमीटर दूरी तक मार करने बाली मिसाइलें कहानियों के अचूक शस्त्रों की सत्यता को सिद्ध करती हैं। कुरुक्षेत्र की भूमि में रेडियोधर्मी तत्वों की बहुलता यह सोचने पर वाध्य करती है कि शायद इस स्थान पर कभी परमाणु हथियारों का भी प्रयोग हुआ हो।
महरोली का लोह स्तंभ आज भी वैज्ञानिकों के लिये चुनौती बना हुआ है। इतने काल में भी खुले वातावरण में खड़ा एक लोह स्तंभ जंग से पूर्णतः रहित है।
मिश्र के पिरामिड और ममी के रहस्यों को आज भी वैज्ञानिक पूरी तरह समझ नहीं पाये हैं। आज भी उस रसायन की तलाश की जा रही है जिससे लपेटी गयी लाशें कभी विकृत नहीं होती थीं। आज तक सुरक्षित हैं।
ऐसे अनेकों रहस्य जिन्हें कल्पना कहा जाता था, आज विज्ञान का हिस्सा हैं। संभव है कि ऐसे अनेकों रहस्य जिन्हें आज भी कल्पना कहा जाता है, कल विज्ञान द्वारा सही ठहराये जायें।
आज चिकित्सा विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है। पर आज भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त अंगों को हटाया ही जाता है ताकि शेष शरीर में इन्फेक्शन फैलने से रोका जा सके। कृत्रिम अंग भी पूरी तरह से सफल नहीं होते हैं।
आज के समय में कैकेयी की चिकित्सा करने बाले चिकित्सक निश्चित ही उसके दांये हाथ को उसके शरीर से अलग कर देते। फिर दवाइयों द्वारा शेष शरीर के इन्फेक्शन को रोकते। उसके घावों को भरते।
पर देवताओं के शल्य चिकित्सक दोनों अश्वनीकुमारों व देवों के वैद्य धन्वंतरि ने ऐसा नहीं किया। कैकेयी की चिकित्सा तीनों चिकित्सकों ने उस काल की सर्वोच्च चिकित्सा पद्यतियों से की। आखिर कैकेयी के पराक्रम के कारण ही तो देव रण में विजयी हुए थे।
सर्व प्रथम दर्द निवारक औषधि कैकेयी को पिलायी गयी। भले ही कैकेयी का हाथ पूरी तरह क्षतिग्रस्त था, फिर भी अब उसे कोई भी दर्द नहीं हो रहा था।
कैकेयी के हाथ व घावों को विशेष कीटाणुनाशक दवाइयों से धोया गया। जो पूर्णतः अशुद्ध मांस था, उसे भी हटा दिया गया।
फिर विशेष औजारों से कैकेयी के हाथ की शल्य चिकित्सा की गयी। टूटी हुई हड्डियों को एकदम सही तरह से बैठाया गया।
हाथ पर पट्टी बांधकर फिर कुछ खपच्चियों से हड्डियों को बांधा गया ताकि हड्डियां अपने स्थानों से न हिलें। घाव भरने के लिये पट्टी के ऊपर से ही तेल रूप में औषधि को डाला गया।
जल्द घाव भरने की, जल्द हड्डियों को जोड़ने बाली, जल्द मांस को भरकर त्वचा का निर्माण करने बाली वैद्यराज धन्वंतरि की औषधियों का सेवन कैकेयी को कराया गया।
कैकेयी के हाय को सही होने में कुछ दिन लगे। पर वह कुछ दिन आज की चिकित्सा से हड्डी जोड़ने में लगने बाले दिनों की तुलना में कुछ भी न थे। इस बीच कैकेयी को लगातार महाराज दशरथ का सहयोग मिलता रहा। महाराज ने खुद को कैकेयी की सेवा में लगा दिया। वही कैकेयी के नित्य कर्मों में उसका सहयोग देते थे। समय पर उसे औषधि देते थे। कैकेयी को भोजन भी महाराज अपने हाथों से कराते थे। सभी नियम उभयपक्षी हैं। पति की सेवा करना पत्नी का कर्तव्य है तो पत्नी की सेवा करना भी पति का धर्म है।
कैकेयी के पूर्ण स्वस्थ हो जाने के बाद महाराज दशरथ कैकेयी सहित वापस अयोध्या के लिये चल दिये। इतने बीच में अयोध्या में महारानी कौशल्या और सुमित्रा दोनों बहुत चिंतित थीं। कभी भी महाराज की वापसी में इतने दिन नहीं लगे। फिर इस बार तो कैकेयी भी साथ गयी है। फिर कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी। दोनों ही अपने इष्ट देव की नित्य आराधना करतीं। महाराज के साथ साथ कैकेयी के सकुशल वापसी की प्रार्थना करती।
महाराज दशरथ और महारानी कैकेयी का प्रजा ने भव्य स्वागत किया। कैकेयी की वीरता की, और उसके प्रेम की गाथा खुद महाराज ने अपने मुख से सुनायीं।
प्रजा के साथ साथ महारानी कौशल्या और सुमित्रा का भी महारानी कैकेयी से प्रेम और विश्वास बहुत बढ गया। पर महाराज कुछ उदास थे। कैकेयी को प्रतिउत्तर में कुछ भी भेंट कर पाने में खुद को असमर्थ पा रहे थे।
आखिर महाराज दशरथ ने कैकेयी को बोल ही दिया।
" महारानी। मैं तुम्हें तुम्हारी मन मांगी भेंट देना चाहता हूं। यह मेरा जीवन भी तुम्हारा ही दिया हुआ है। मैं सत्य प्रतिज्ञा करता हू कि अपने वचन से पीछे नहीं हटूंगा।"
महाराज की बात सुन कैकेयी दुखी हो गयी। प्रेम कभी भी प्रतिउत्तर में उपहार नहीं चाहता है। प्रेम का प्रतिउत्तर तो बस प्रेम ही है। फिर मांगने और देने की बात कैसे।
बहुत देर वाद विवाद चलता रहा। अपने विचारों को स्पष्ट रखने बाली कैकेयी आज महाराज के शव्द जालों में फस रही थी। यह सत्य है कि प्रेमी बदले में कुछ नहीं चाहता। पर एक पत्नी का प्रेम तो पति से मांगने से आरंभ होकर इसी पर अंत होता है। भले ही कैकेयी को मांगना पसंद नहीं है। पर महाराज की इच्छा का भी तो मान रखना है। आखिर वह पति हैं।
चाहकर भी कैकेयी कुछ ऐसा नहीं तलाश पायी जिसे महाराज से मांगना चाहिये। हालांकि छोटी सोच के लिये तो मांगने के अनेकों विषय हैं। आभूषणों के साथ साथ विशेष अधिकारों की याचना की जा सकती थी। पर कैकेयी छोटी सोच की महिला तो न थी।वह अवध देश की रानी है। वह महाराज से वही मांगेगी जो अवध की प्रजा के हित में हो।
अंततः कैकेयी के दो वरदान महाराज पर उधार रहे। उन्हें वह कभी भी अपनी इच्छानुसार मांग लेगी। हालांकि न तो महाराज दशरथ को अनुमान था और न कैकेयी को कि इन्हीं दो वरदानों से अवध का इतिहास लिखा जायेगा। ये दो वरदान ही इतिहास में सत्यवादिता, पुत्र का धर्म, भाई भाई के मध्य प्रेम, अधर्मियों के संहार, धर्म की स्थापना का आधार बनेंगे। इन दो वरदानों के माध्यम से कैकेयी त्याग की वह नींव रखेगी जबकि राष्ट्र हित में एक रानी और पुत्र हित में एक माता अपयश को गले लगायेगी।
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'
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