"कलम की अभिलाषा"
चाह नहीं में सरकारी सिंहासन का गुण गान करूँ।
चाह नहीं अमरावति की सुंदरियों का मान करूँ।
चाह नहीं देवो के चरणों मे झुक कर के शीश नवाऊँ।
चाह नहीं में स्वर्ग लोक की खुशियों की गाथा गाऊं।
अत्याचार अधर्म अनीति का सदां करूँगी में प्रतिकार।
शब्द शब्द में भारत माँ की बोलूँगी में जय जयकार।
चाय यही है रणवीरों की समर भूमि की गाथा गाऊँ।
वीर सपूतों के चरणों का बंदन कर में शीश झुकाऊँ।
दीन दुःखी निर्बल जन का में जीवन भर सहयोग करूँ।
नीच अधर्मी अपराधों के सम्मुख जा कर नहीं डरूँ।
और तिरंगे का में जग में करती रहूँ सदां गुणगान।
शब्द शब्द में बोलूँ तन कर जयति जयति जय हिंदुस्तान।
मोहन तोमर 'रिठौना'
अम्बाह मुरैना मध्यप्रदेश
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