उड़ान

 

नभ में फैला अपने पर
भरते उड़ान अपनी
झुंडों के झुंड पक्षियों के
कहाॅ उड़ गये
नजर नहीं आते

वो पक्षियों का उड़ना
वी का धर आकार
बढते रहना लक्ष्य पर
अब नजर नहीं आता

घर की छत पर
दिखते हर रोज
झुंडों के वे अनेकों रूप
अब दिखते नहीं

युग बदला, विचार बदले
अनेकों पीढियों का परिवार टूट गया
परिवार एकाकी
मनुष्यों में, परिंदों में भी
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'

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