संगीत और मन



मन के उठते जज्बातों में,
संगीत सुनाई देता है,
जब मन प्रियतम को याद करे,
झंकार उठे ढमन के अंदर,
प्रियतम का प्रणय निवेदन जब,
यादों के झोकों संग आए,
संगीत मधुर बजने लगता,
जीवन के हर स्वर्णिम पल में,
संगीत ध्वनित होता रहता,
प्रियतम का साथ रहे जब-तक,
प्रियसी के अंतः मन में,
प्रेम की रस गंगा बहती,
तब मन के उदगार संगीत बनें,
जज़्बात बने गीतों की माला,
संगीत उठे हृदयतल से,
होंठों पर मधुरिम गीत उठे,
मन की बगिया झंकृत होकर,
जीवन को मधुरिम संगीत करे,
संगीत की मधुरिम स्वर लहरी,
मन के दुःख कम कर जाती,
संगीत एक साधना है,
साधक की साधना जैसी हो,
संगीत वही रूप धारण करता।।
डॉ कंचन शुक्ला

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