नन्ही उम्मीदें

                                 
नन्ही नन्ही उम्मीदें बांधकर ।
जीत लिया जग सारा।
छोटी छोटी आशाओं से।
प्रफुल्लित हो गया जीवन सारा।
न कभी की कोई बहुत बड़ी लालसा।
जो अपनी चादर से बाहर हो।
उतने पैर फैलाएं हमनें।
जिस से जिस्मानी न भुख हो।
आत्मा तृप्ति हो जाए ।
जब नाम ईश का हम जपे।
तृपण कर दे अपने लोभ।
सुख सुविधाओं का न भोग लगे।
एक गुब्बारे से भी आसमां में
उड़ने की चाहत पूरी होती हैं।
एक बच्चे की मासूम मुस्कान से।
दिन मे भी दिवाली होती हैं।
नीलम गुप्ता नजरिया दिल्ली

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