वो पहाड़ की औरत

वो पहाड़ की औरत
वो पहाड़ की औरत
 अक्सर दिख जाती है माल रोड पर 
अपने पहाड़ी परिधान में कमर पर
 उठाए हुए एक लकड़ी का गट्ठर,
हांकते हुए अपनी भेड़ बकरियों को 
एक मरियल सी गाय  जो उसी की तरह
 जिंदगी से निराश ही लगती है।
उस पहाड़ की औरत के संग
 ना जाने कितने सैलानी 
खिंचवाना चाहते हैं फोटो ,
और खुश होते हैं देखकर 
उस औरत को कि कितनी खुशनसीब है ,
जो विषैले धुंए की नगरी से दूर
 इन खुली वादियों की शांत सी हवा में 
मस्त जिंदगी बिता रही है।
 वो पहाड़ की औरत।
ना जानते हुए कि कितनी दर्दनाक है उसकी जिंदगी,
 जो ऊंचे नीचे बीहड़ पहाड़ों पर चढ़ते उतरते,
 दो जून की रोटी को लक्ष्य मानकर बिता देती है 
एक सधवा होते हुए भी विधवा की तरह जिंदगी।
 वो पहाड़ की औरत।
उसका मर्द पहाड़ों से दूर महानगरों में 
जीवन यापन ढूंढते ढूंढते 
अक्सर अपनी दैहिक भूख को
 खत्म करने की खातिर 
बसा लेते हैं एक नई दुनिया 
उस औरत के बच्चे भी
 अपने भविष्य की खातिर स्वीकार कर लेते हैं 
उस नईऔरत को और रह जाते हैं उसी के संग
वह पहाड़ की औरत पहाड़ों में 
उस मर्द के मां बापू, मरियल गाय ,भेड़, बकरी
 बंजर खेत और कभी 6 महीने में आए मनीआर्डर के संग काट देती है जिंदगीइसी उम्मीद में
 कि कभी तो वह भी जाएगी 
उस महानगर में इन वीरान पहाड़ों को छोड़ ,
अपनी दुनिया रंगीन करने ।
वो पहाड़ की औरत।
 स्वरचित सीमा कौशल 
यमुनानगर हरियाणा

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४