कौन चाहता है



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बहुत कुछ कह जाती है ख़ामोशी भी
पर उसे पढ़ना कौन चाहता है
हर कोई ढूंढ रहा है बात जुबानी
आँखों को पढ़ना कौन चाहता है

कहने को बहुत है इस जहाँ में
जो हमदर्द बना फिरते है
दर्द भी वही समझते है ज़ब तक बयां न हो
दिल के दर्द बिन कहें कौन समझता है

दुनिया में हर किसी को है ख्वाहिश कयी
किसी को बनाले अपना या बन जाए हम किसीकी
नाम की रिश्ते तो उस आंस्मा में उड़ते परिंदे भी निभाते है
दिल से प्यार निभाना यहाँ कौन चाहता है

करते है गुफ़्तगू कही, कही दिल लगी भी कर लेते
छोड़ कर अपने घर की सम्मान किसी और पे दिल हार बैठते है
जो सारी दुनिया छोड़ के इंतज़ार में बैठी होती है हर दिन
सजाने वाले गैरों की महफ़िल घर की फिकर कौन करता है

बहुत मुश्किल होजाता है बयां करना
जो उठती है टिस दिल के हर कोने से
श्याही से लिखा लफ़्ज़ नैना हर किसी ने पढ़ा यहाँ
जो दिल पे निंशा है वो जख्म कौन पढ़ना है...!!
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नैना... ✍️✍️

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