दिल का रोग

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कभी कभी सोचती हूँ बैठे बैठे
हमने यूँ जाने अनजाने में क्या कर बैठे है
जिसका कोई दवा नहीं होता इस जहाँ में
हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे है....!!

चैन से रहता था ये दिल हर पल
हमने यूँ शौख से बेचैनी को गले लगा बैठे है
अब समझ नहीं आता की क्या आलम है ये
की हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे है.....!!

बढ़ा सुकून से सोते थे हम रातो में
ज़ब तक दिल में कोई अहसास न था
उड़ गयीं हिअ नींदे जाने किस जहाँ में रातो की
की हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे.....!!

कश्मकश में है धड़कने भी मेरी
की ये कैसा फैसला ज़िन्दगी का हम कर बैठे
भूल कर भी कभी भूल न पाउ उस शख्स को
जो मेरे दिल में अपना घर बना बैठे है.....!!

सिर्फ मुझे ही छेड़ा है ये अहसास नई
या उनका भी दिल मेरे लिए धड़का है
ए फ़िज़ा अब तुम्ही बता अब मैं क्या करू
की पता चले क्या वो भी ये रोग लगा बैठे...?

बढ़ा दिलकश सुरूर होता है यादो में उनकी
जो हमने सारी दुनिया भुला बैठे है
कहु भी तो क्या कहु नैना बहुत मुश्किल है
की हमने यूँ दिल का रोग लगा बैठे....!!
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नैना.... ✍️✍️
काल्पनिक...

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