तुम कवि हृदया हो



"आज सकल विश्व भी करे स्त्रियों पर अभिमान,
बेटी, बहन और माँ बन बढ़ाया कुल का सम्मान।।

शिक्षिका और डॉक्टर बनकर करे जगत कल्याण।
थाम कलम को बेटी ने, दिया साहित्य में योगदान।।

कन्या घर में चन्द्र सम, कन्या ही सकल आकाश।
कन्या सूर्य सा तेज़ बन, करती घर-आँगन प्रकाश।।

बेटी बढ़ा रही हैं आज, देश का गौरव मान।
बेटों से भी आगे रहें, बेटियों के सारे काम।।"

"एक कवयित्री बेटी/स्त्री के सम्मान में..."

तुम उदीप्त प्रबल प्रकाश हो, जैसे शिव का कैलाश।
निज कलम से जब भी लिखो, करती दिव्यप्रकाश।।

जब जुगनू सी बनकर उड़ो, लगती फूल पलाश।
दामिनी-चपला सी चतुर, कभी न होती उदास।।

चुनकर शब्दों के मोती, भाव आँचल में भरती हो।
कवि हृदया हो भावों को भावों से भावों में लिखती हो।।

खुशियों की लताओं से, प्यार की ठंडी हवाओं से।
नवजीवन गीतों में भर देती हो, कवयित्री जो हो।।

विरह की लहर भी, खुशी संलिप्त चमक भी,
वियोग भी संयोग भी, महक थोड़े इंतज़ार की।।

हास्य-नैराश्य भाव तो कभी वीररस के प्रसार से।
प्रेम में भक्ति हो लक्षित तेरी लेखनी की धार से।।

लेखनी साधन, लिखना साध्य ज्ञान का हुआ प्रसार।
ज़रा अभिमान नहीं, पाठिका भी, तुम कलमकार।।

गली-मोहल्ले में मिल रहे, बदले भेष में सियार।
बना एक नई मिशाल, कलम को बनाया हथियार।।

कटार सी बन जाओ बेटियों, करती तेरी कलम पुकार।
बुरे के लिए बन जाती तुम, जलता हुआ कोई अंगार।।

माँ सरस्वती ने दिया वरदान, स्वर संग में परम ज्ञान।
दिया लक्ष्मी ने वर में निज सौन्दर्य अंश तेज़ अपार।।
...✍️परमानन्द 'प्रेम'

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