वसुधा की पुकार

बचाओ ..... बचाओ ..… बचाओ ... कोई तों मुझे बचाओ ।  एक औरत की चीख संजय के कानों में लगातार आती ही जा रही थी । वह आवाज की तरफ धीरे - धीरे बढ़ने लगा । 

बचाओ .... बचाओ  की जिस आवाज को वह अपने नजदीक समझ रहा था   वह तो उसे दिख ही नहीं रही थी । केवल वह आवाज  उसके कानों में ही सुनाई पड़ रही थी । 

' ऐसा कैसे हो सकता है कि आवाज आ रही हो लेकिन कोई हो ही ना ?  कही यह मेरा भ्रम तो नहीं ? '
संजय बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ रहा था ।  

अभी भी बचाओ ... बचाओ .....की आवाज उसके  कानों में सुनाई दें ही रही थी । वह आवाज की तरफ बढ़ने लगा । वह सावधानी से आगे बढ़ रहा था क्योंकि वह जिस जगह में जा रहा था पहले यहाॅं घने जंगल थे लेकिन अभी कुछ महीनों पहले से ही यहाॅं  के जंगलों को काटा जा रहा था जिसके अवशेष अभी भी जमीन पर पड़े हुए थे।  पेड़ों  के कटे अवशेष उसे नुकसान ना पहुॅंचा दे इसीलिए संजय सावधानी से आगे बढ़ रहा था ।  अंधेरा होने की वजह से उसने अपने मोबाइल की फ्लैश लाइट जला रखी थी ताकि उसे उस अंधेरे में भी दिख सकें । वह आवाज की तरफ सावधानीपूर्वक बढ़  रहा था । कुछ दूर आगे बढ़ने पर वह एक जगह खड़ा हो गया । उसने अपने मोबाइल का फ्लैशलाइट चारों तरफ दिखानी शुरू की तभी एक छोटे से पेट के नीचे उसे लगा कि कोई बैठा हुआ है । 

संजय  उस छोटे पेड़ की तरह बढ़ने  लगा । पहाड़ी इलाका होने की वजह से वहाॅं  फिसलन भी थी इसीलिए वह अपने पैरों को जमीन पर अच्छी तरह से रखते हुए आगे बढ़ रहा था तभी अचानक से उसका पैर फैसला और वह नीचे की तरफ लुढ़कने लगा । फोन उठाते ही जा रहा था तभी  अचानक से उसे लगा कि किसी ने उसे पकड़ लिया है  चूंकि  डर के मारे उसने अपनी आंखें बंद कर ली थी लेकिन जब उसे लगा कि वह सुरक्षित हाथों में है ,  वह नीचे खाई में नहीं गिरा तब धीरे-धीरे उसने  अपनी  ऑंखें  खोली । 

संजय  एक औरत की गोदी में सुरक्षित एक बच्चे की तरह लेटा हुआ था । वह  सोच में पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक  कमजोर औरत उसे ढलान से बचाने में कामयाब हो गई हो ?  अभी वह अपने आप को बचाने वाली की   गोद में है  । जैसे एक मां अपने छोटे से बच्चे को गोद में रखकर प्यार से निहारती है , उसे दुलारती  है वैसे ही वह औरत संजय को स्नेहमय दृष्टि से  निहार रही थी ।  संजय को उस औरत में अपनी मां की छवि दिखने लगी । अनायास ही   उसके मुॅंह से माॅं ... माॅं  निकला । 

वह औरत मंद -  मंद मुस्कुरा रही थी । संजय ने उस औरत की गोद से अपने आपको अलग किया और अलग  जाकर खड़ा हो गया । अब भी वह औरत  संजय को देखकर मुस्कुरा ही रही थी । संजय ने उस औरत से पूछा कि आप कौन हैं और इस  निर्जन वन में अकेली क्या कर रही  हैं ? मैंने एक औरत की बचाओ ... बचाओ ... की आवाज इधर से ही सुनी थी इसीलिए यह  स्थान आप जैसी औरत के लिए सुरक्षित नहीं । आप मेरे साथ चलिए ।  मैं आप को सुरक्षित स्थान पर छोड़ आऊंगा । 


वह औरत  अभी भी मुस्कुरा ही रही थी ।  उस औरत की मंद मुस्कान संजय को आश्चर्य में डाल रही थी । उसने  पहले तो पास ही  पड़े शिला पर संजय को बैठने का इशारा किया ।  संजय जब बैठ गया  उस औरत ने संजय के  पास बैठकर कहना शुरू किया :- " मेरा नाम वसुधा है और मैं इस प्रकृति का ही रूप हूॅं ।  लोग मुझे धरती माॅं  के नाम से भी जानते हैं । जिस औरत की चीख तुम्हें यहाॅं तक खींच लाई है वाकई में वह मेरी चीख  है । आज पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई इंसान मेरी चीख सुनकर मेरे पास आया है ।  मेरी करुण  वेदना की पुकार सुनकर वन्य  प्राणियों के दिलों में तो  करूणा भर  जाती है लेकिन यहाॅं  रहने  वाले  लोगों  पर  इसका कोई असर  नहीं होता हैं  । वें  मेरी पुकार को नजरंदाज कर आगे निकल जाते हैं  ।  मैं वों शक्ति  हूॅं  जो  सारे विश्व को स्वयं पर  धारण करती हूॅं  लेकिन विगत कुछ वर्षों में लोगों ने अपने  कृत्य  से मुझे शक्तिविहीन कर दिया हैं । मेरी ऐसी कोई चीज नहीं जिसका तुम मानवों ने व्यापार ना किया हो । वह चाहे मेरे पेड़  हो ...  हवा हो ....या पानी  । मैं तो तुम मनुष्यों  को अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए सभी प्रकार के साधन प्रदान करती हूॅं  लेकिन तुम मनुष्य ने मेरे साथ क्या किया ?  यहाॅं  तक कि अपने फायदे के लिए समस्त जंगल को काट दिया ...  इसमें आग  भी लगाई ....प्रदूषण भी फैला दिया  और यहाॅं  तक कि पानी का दोहन भी किया ।  हमारे द्वारा बनाए गए नियमों और कार्यों में तुम मनुष्यों  ने विगत कुछ वर्षों में व्यवधान पैदा करना शुरू कर दिया है । मेरी इस धरा  पर हर किसी का अपना महत्व है । एक छोटा सा कीड़ा भी हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि तुम मनुष्य  किंतु तुम  मनुष्यों  ने  तो उन सबसे उनका आसरा ही छीन लिया है  । अपने आश्रय के लिए तुम  मनुष्यों ने समस्त  वन्य  प्राणियों के आश्रय   को  ही नष्ट कर दिया ।" 

थोड़ी देर रुककर वसुधा माॅं ने पुनः संजय से कहा :-
" जिस तरह एक माॅं  अपने बच्चों के गलती करने पर उन्हें क्षमा कर देती है उसी प्रकार में वसुधा भी क्षमा का ही साक्षात रूप है क्योंकि मैंने समस्त विश्व को स्वयं पर धारण किया हुआ है इस कारण यहाॅं रहने वाले समस्त प्राणियों की मैं माॅं  हूॅं  और एक माॅं अपने बच्चों को  गलती सुधारने का मौका अवश्य देती है । मैं जानती हूॅं  कि तुम वन विभाग के बड़े अफसर हो ।  और लोगों की तरह तुम भी लालच में आकर ऐसा कृत्य कर रहे हो जो समस्त मानव जाति के लिए दुष्परिणाम साबित हो सकता है । हमारी तरफ से अनेक आपदाओं के माध्यम से समस्त मानव जाति को चेतावनी भी दी जा चुकी है लेकिन तुम सभी  इससे कोई शिक्षा ग्रहण नहीं करते हुए अभी भी आर्थिक विकास की होड़  में लगे हुए हो ।  आज की परिस्थितियों को समझो .... लालची मत बनो ....  प्रकृति का विनाश मत करो । अब समय आ गया है कि समस्त मानव जाति अत्यधिक उपभोक्तावादी ना होते हुए प्रकृति के साथ अनुकूल आचरण करें । 

संजय वसुधा माॅं  की बातें ध्यान से सुन रहा था।  उसे आज अपनी पिछली की गई समस्त गलतियों का एहसास हो रहा था । कैसे उसने चंद रुपयों के लालच में आकर अपनी माॅं  के साथ गद्दारी की थी ? एक चलचित्र की तरह उसके द्वारा किए गए एक - एक कृत्य उसकी ऑंखो के सामने आ - जा रहें थें ।  जिस वन विभाग को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उसे दी गई थी उसी को उसने कुछ पैसों के लालच में आकर तहस-नहस कर दिया था । वह अपने विचारों में इतना लीन  हो गया कि जब उसने साथ बैठे अपनी वसुधा माॅं  की तरफ नजरें उठाई । वहाॅं पर  कोई नहीं था । वह वसुधा माॅं ...  माॅं ...  माॅं  चिल्लाने लगा और उन्हें चारों तरफ ढूंढने लगा  तभी अचानक से उसे लगा कि कोई उसे जोर से हिला रहा है ।  उसने धीरे-धीरे अपनी ऑंखें  खोली ।  सामने उसकी पत्नी रंजना खड़ी थी । 

आप बार-बार वसुधा माॅं ... वसुधा माॅं .. क्यों  चिल्ला रहे थे ? कौन है यह वसुधा माॅं  और आप नींद में उन्हें बार-बार क्यों बुला रहे थे । कहीं आपने कोई बुरा स्वप्न  तो नहीं देखा है ? रंजना  के बोल संजय के कानों में तो जा रहे थे लेकिन उसके कानों में तो बस वसुधा  माॅं  की पुकार और उनके द्वारा दी गई सीख ही  गूंज रही थी ।  संजय ने रंजना से कहा कि मैं तुम्हें सारी बातें बाद में बताऊंगा अभी मेरे  लिए चाय ला दो ।

रंजना चाय लेने चली गई और संजय बिस्तर पर बैठे हुए अपने आप से यह प्रण  करने लगा कि आज के बाद वह किसी को भी अपनी वसुधा माॅं  का खनन नहीं करने देगा । चाहे उसके लिए उसे कठिन से कठिन परिस्थितियों का ही सामना क्यों न करना पड़े  साथ ही संजय ने अपने विभाग के और भी लोगों को समझाने की मुहिम को भी चलाने का प्रण किया ताकि समय रहते लालची लोग संभल जाए और इसके दुष्परिणाम समस्त मानव जाति को न भुगतना पड़े । 


                                          धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

" गुॅंजन कमल " 💗💞💓

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४