तेरी चाहत थी मुझे लग रहा जमाने से
आज की एक ताजा ग़ज़ल आप सभी मित्रों को समर्पित है---
भूल पाता नहीं हूं तुझको मैं भुलाने से।
तेरी चाहत थी मुझे लग रहा जमाने से।
आ गई याद तेरी शरबती निगाहों की
मेरी दहलीज के दीपक के टिमटिमाने से।
तेरे आने से मेरे घर में बहारें आईं
खिल गए फूल सभी तेरे मुस्कुराने से।
प्यार का दिल में उजाला है भर दिया तुमने
फायदा क्या है दिया अब कोई जलाने से।
बढ़ गए जब से ये सैयाद इस जमाने में
उड़ गए सारे परिंदे ये आशियाने से।
लूटने की ये हविस छोड़ दो मेरे यारों
मजा आता है बहुत खुद को भी लुटाने से।
तुमसे मिलकर ये महफिलों सी जिंदगी थी मेरी
आज वीरानियां हैं उसके उजड़ जाने से।
किसी मजहब में भी इंसानियत नहीं आती
दाढ़ी, पगड़ी ये और चोटियां बढ़ाने से।
सुबहें रोशन हैं मेरी शाम सुहानी है मेरी
गीत गजलों को ये "किंजल्क" गुनगुनाने से।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
--किञ्जल्क त्रिपाठी "किञ्जल्क"
आजमगढ़ (उ.प्र)
Comments
Post a Comment