इल्म


यूं तो माटी के ढेले हैं सारे यहाँ, 
किरदार जो तराश दे, वो औज़ार है इल्म!

पूरी दुनिया तुम्हे गलत साबित करने पर उतर भी आए,
पूरी दुनिया से लड़ सकते हो जिसके भरोसे-
वह अचूक हथियार है इल्म! 

लुट जाते हैं हीरे-मोती सब कभी न कभी,
जो लूट न सके कोई कभी, 
ऐसी अनदेखी दौलत का अंबार है इल्म! 

लोग आएंगे-जाएंगे जीवन में हज़ार, 
उनको मत सोचो, कि दर्द गैर ही दिया करते हैं, 
जो तुम्हें मिटने न देगा- वो आधार है इल्म!

बांटते चलो जहान् में कि यह फर्ज भी है, 
बेमोल बांट सकते हो जो हर ज़रूरतमंद को, 
अनमोल खज़ाना है, इंसानियत से किया प्यार है इल्म! 

स्वरचित- शालिनी अग्रवाल 
जलंधर

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