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Showing posts from July, 2021

--- क्यों नही आज ---

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गर बिछड गया जो,कल को मै तुमसे.... तुम आंसू बहाओगे पर वो देख कहां मै पाउँगा! गर करते हो प्यार जो इतना तो जताते क्यों नही आज!! फूल चढ़ाओगे मेरी अर्थी पर पर वो खुशबू कहां मै ले पाउँगा! गर चाहते हो खुशबू फैलाना तो वो फूल भेजते क्यों नही आज!! तब बांधोगे तारीफों के पुल पर वो सुन कहां मै पाउँगा! गर बात मेरी कोई अच्छी लगती है  तो बताते मुझको क्यों नही आज!! तब सोचोगे काश बिता पाते पल कुछ और हमारे साथ! मिले है पल जो ये किस्मत से जी लेते उन्हें क्यों नही आज!! भुला दोगे सब गिले-शिकवे तब पर जान कहां मै पाउँगा! गर मिल सकते है भुला कर सब  तो फिर मिलते क्यों नही आज!! तरसोगे सुनने को इक आवाज़ मेरी  पर तब बोल कहां मै पाउँगा! गर दिल चाहता कुछ बात करें हम  तो फिर करते क्यों नही आज !! सतीश निर्दोष रेवाड़ी (हरियाणा )

शिव महिमा

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मस्तक पर है चन्द्र विराजे गले नाग लिपटाते है, जटा बीच सोहति है गंगे तभी तो वो शिव कहलाते है। अमंगल वस्तु को कर धारण जो मंगल के धाम कहाते है, कौड़ी नही खजाने में फिर भी त्रिलोकी नाथ कहलाते है। मलते तन पर राख अपावन फिर भी पतित पावन कहाते है, काम और क्रोध को जीतने वाले तभी तो वो शिव कहलाते है। करते है बूढ़े बैल सवारी  डमरू  मधुर बजाते है, संग विराजत भूतों की टोली जो इनके मन भाते है। बाम  भाग में सदा  बिराजति गौरी नाथ कहते है। करते सदा प्रेम प्रकृति से तभी तो वो शिव कहलाते है। नही चाहते पुष्प सुवाषित आंक धतूरा भाते है, करते है नंदी की सवारी तन मृगचर्म सुहाते  है। गल मुंडों की माला पहने नील कंठ कहलाते है, राम नाम का जाप है करते तभी तो वो शिव कहलाते है। जटा जूट को बांधने वाले प्रेम का पाठ पढ़ाते है, मृत शरीर ले मातु सती का विरह योग में जलते है। वरन करी गिरिराज कुमारी ने गौरी नाथ कहाते है, हुए अर्धनारीश्वर फिर वो तभी तो शिव कहलाते है। भक्ति भाव से जो कोई ध्याबे मनबांछित फल देते है, नही चाहिए छप्पन व्यंजन भांग का भोग लगाते है, मन मानस में सदा बिराजौ भक्त अरदास लगात...

आओ प्रेमचन्द्र को नमन करों !

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वराणसी   के लम्ही गाँव में, भारत का आया दुःख हरण l सन  अट्ठारह सौ  अस्सी में, प्रेमचंद्र का हुआ अवतरण  l माता -पिता, परिवार सबकुछ खोया, समाज की कुरीति का गबन बताया  l बड़े भाई साहब को भी सामने लाया, अल्पायु  में ही  कलम को पाया l फिर लिख दिया लेखनी  से धरा , कलम का सिपाही  बनाया  वतन निर्मला,कम्बल के बिना हल्कु मरा जीवंत पात्र हैं बूढी काकी, कफ़न l उपन्यास सम्राट का जिया जीवन  हामिद चिमटा लेकर आया चमन  गोदान, पंच  परमेश्वर कालजयी ! समाजिक  पीड़ा देख रोया गगन l --डॉ. ज्योति सिंह वेदी "येशु "          मधेपुरा, विहार (स्वरचित एवं मौलिक रचना )

" कोरोना वैक्सीन का भूत " भाग ३

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मीरा और उसका पति धीरज वैक्सिनेशन हॉल पहुँच गये ,अब मीरा के पास कोई चारा नही था ,वहाँ चुपचाप बैठने के अलावा , काफी भीड़ थी लोगों की , कुछ आ रहे हैं , कुछ जा रहे हैं ,मीरा वहाँ बैठकर सबकों देख रही हैं , कुछ देर बैठी रही , फिर अचानक से कुछ बैचेनी सी महसूस हुई ,तो वहाँ से खड़े होकर बाहर की तरफ आ गई , उसे बाहर जाता देख धीरज भी उसके साथ बाहर आ गया ,ये देखने कि क्या हुआ , 🙎‍♂️ क्या हुआ बाहर कैसे आ गई अचानक से ,तुम ठीक तो हो , 🙍‍♀️ हाँ जी ,मै बिल्कुल ठीक हूँ ,आप परेशान ना हो , 🙎‍♂️ ठीक हैं ,तुम बैठो मैं देखता हूँ ,और कितना समय लगेगा , 🙍‍♀️  जी ठीक हैं , धीरज अंदर जाता हैं ,जाकर एक डॉक्टर से बात करता हैं , क्या पहले मीरा को वैक्सीन लग सकती हैं ,क्योकि उसे थोड़ी बैचेनी सी महसूस हो रही हैं, डॉक्टर ने कहा ठीक हैं ,भेज दें , धीरज मीरा को लाने बाहर आता हैं , 🙎‍♂️ चलों मीरा तुम्हारा नम्बर आ गया , 🙍‍♀️ जी , ये बोलकर मीरा धीरज के साथ चल देती हैं ,डॉक्टर के कैबिन में जाते ही मीरा पसीने से नहा जाती हैं ,डर के मारे थरथर कांप रही हैं ,धड़कन बढ़ती जा रही हैं , चेहरा एकदम लाल हो गया हैं , दोनों ...

प्रेमचंद और किसान

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आपको ह्रदय तल से नमन ना कोई हुआ है ना होगा तुमसा कोई महान,नाम धराया तुमने मुंशी प्रेमचंद पर थे आप किसान महान!  साहित्य पर मजबूत पकड आप रखते थे, रचनाओ मे अपनी किसानो से मजबूत जुडाव आप रचते थे! नेक भावना से ही प्रेरित होकर, बडे घर की बेटी,नमक का दारोगा,सौत,आभूषण, कामना, प्रायश्चित,सति आदि रच पाए थे, अंतिम रचना मंगलसूत्र रचकर महान कथा सम्राट यूं ही नही कहलाए थे! किसानो की दुर्दशा पर महाकाव्य 'प्रेमाश्रय' रच डाला, सवा सेर गेहूं  मे किसानो की कर्ज को लेकर हुई दुर्गति पर प्रकाश डाला! गोदान मे पात्र 'होरी' का मार्मिक चित्रण दिल दहलाता है, आपके जैसा कृषक प्रेमी सदियो तक स्मृति पटल पर अक्स अपना दिखलाता है!                                                                         श्वेता अरोडा

मुंशी प्रेमचंद्र (एक अमिट सहित्य नायक)

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सुनो सुनो ये भाई बहनों,  प्रेमचंद्र की अमिट कहानी!  वो सहित्य कार पूज्य है इतना,  उसका न है कोई सानी!!  वाराणसी के लमही गाँव में ,  इक्कतीस जुलाई, सन् उन्नीस  सौ अस्सी में जन्म हुआ!  पिता अजायब लाल,  आंनदी मां,  की कोख, में फिर अवतरण हुआ!!  धनपत राय नाम मिला उनको,  खेल कूद बचपन बीता, बी ए परीक्षा,  मे अव्वल आ!  शिक्षा विभाग में, इस्पेक्टर पद प्राप्त किया!!  पहला लेख, "राष्ट्र विलाप लिखा," उनका बडा विरोध हुआ!  इस घटना के बाद ही, प्रेमचंद्र का जन्म हुआ!!  अधुनिक काल के, पितामह बन!  सभी विधाये लिख डाली!!  आदर्शवाद, यथार्थ वाद को लिखकर!  उस नायक ने, प्रगतिशीलता लिख डाली!!  हर लेखन को कलमबद्धकर,!  प्रेमचंद्र  मुम्बई आये!!  उर्दू हिन्दी पत्रिका में छपकर!  जनता के मन मे छाये!!  सरस्वती, माधुरी मर्यादा!  चांद सुधा में नाम किया!!  सेवासदन, रंगभूमि, कर्मभूमि,  फिर लिख डाली!  निर्मला, गबन, गोदान लिखा फिर,  मानसरोवर रच डाली!!  कफन लिखा अखिरी सफर ...

स्वतंत्रता सेनानी

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भारत मां के लिए दी गयीं कईं वीरो की कुर्बानी। आजादी की उठा मसाल चले स्वतंत्रता सेनानी।। अपने जीवन का न लालच दिल में बस अरमान था। जीवन में जीवन से बढ़कर मातृभूमि सम्मान था।। बच्चों ने जीवन दे दिया वयस्क जवानी दे गए। आजादी की कीमत क्या है यह कहानी दे गए।। कैसे उनका दम घुटता था मिलती कईं निशानी। आजादी की उठा मशाल चले स्वतंत्रता सेनानी।। भगत सिंह फांसी पर झूले किंतु कभी हार न मानी। स्वाभिमान की खातिर मिट गई मण्डला की रानी।। कईं वीरों ने जान गवाई कईयों ने अस्तित्व खो दिया। इन वीरों की कुर्बानी ने आजादी का बीज बो दिया।। वह वीर मिटकर दे गए हमें अनेक नई कहानी। आजादी की उठा मसाल चले स्वतंत्रता सेनानी।। नाम - विक्रांत चम्बली पता - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

सबसे छूपा कर

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🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 बयां नहीं करते हैं दिल के दर्द सबसे उसे दिल में ही कही छुपा लिया करते हैं रोके भी जो ना रुके नमी आँखों में तो  सबसे छुपा कर आसानी से वो किनारे पोछ लिया करते हैं...!! बहुत मुश्किल होती हैं समझ पाना उस दर्दे दिल को  जो जख्म कभी भरता नहीं वो किसी अपने ही दी हो चुभती हैं साँसे भी जीना मुश्किल हो जाया करते हैं  सबसे छुपा कर आसानी से वो किनारे पोछ लिया करते हैं...!! रहा करते हैं भीड़ में भी तन्हा कोई भी खुशी रास नहीं आती मर चुके होते हैं असल में वो बस फर्क इतना हैं जान नहीं जाती खलती हैं हर वक़्त कमी किसी के जब कोई हाले दिल पूछता नहीं तो सबसे छुपा कर आसानी से वो किनारे पोछ लिया करते हैं...!! कितना तकलीफ होती हैं ज़िन्दगी में जब हँसना भी हो मज़बूरी यादो में जिया करते हैं किसीके मरना भी नहीं होती हैं मंज़ूरी क्या होती हैं दर्द ज़िन्दगी की जाकर उस दर्दे दिल से पूछे जो सबसे छुपा कर नैना आसानी से वो किनारे पोछ लिया करते हैं...!! 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 नैना...✍️✍️💔

किसान की घर की रानी

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"""""""""""'''""""""""""""""""""" खेत में घुट्टी भर कादो भरल रिमझिम बरसे पानी । निहुरी-निहुरी धान रोपे किसान के घर की रानी । कादो सने अंगिया-साड़ी तब होए खेती-बाडी । धूप में तपे जवानी । निहुरी निहुरी धान रोपे किसान के घर की रानी । धीरे-धीरे दाना लगे दाने में दूध भरे। हरियर खेत पक होए धानी । निहुरी निहुरी धान रोपे किसान के घर की रानी । काटी काटी धान माथे बोझा ढोआवे तब जाकर धान खलिहान में आवे । खुशहाली में लगे मेला नेवानी । निहुरी निहुरी धान रोपे किसान के घर की रानी । पहिन लाल साड़ी खोंस खोपा गेंदा फूल मिलकर चले संगे उड़ा के सभे धूल  । झूम झूम गीत गावे होके मस्तानी । निहुरी निहुरी धान रोपे किसान के घर की रानी ।       पिंकी मिश्रा भागलपुर बिहार ।

" कोरोना वैक्सीन का भूत " भाग :- २

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वैक्सिनेशन का दिन गुजर गया ,मीरा ने सोचा ,चलों जान बची लाखों पायें , पति थोड़े नाराज़ हैं मना लूँगी , शाम को धीरज के ऑफिस से घर आने से पहले ही उसकी पसन्द की चीजें बना कर रख ली , जैसे ही दरवाजें की घण्टी बजी दौड़ कर मुस्कराते हुए दरवाजा खोला , पति देव जी अंदर आएं ,चाय ,पानी , वगैरह दिया ,और ये जानने के लिए कि जनाब का मूड कैसा हैं ,जान बूझ कर कभी कुछ बात तो कभी कुछ ,बार - बार पूछ रही हैं, धीरज अच्छे से समझ रहा हैं ,कि मीरा के दिमाग़ में क्या चल रहा है , लेकिन उसे भी एक खुरापाती उपाय सूझा ,उसने मीरा को थोड़ा और परेशान करने की सोची , वैसे मीरा जितनी शैतान , नटखट ,और चुलबुली  हैं ,धीरज  उतना शांत ,और समझदार व्यक्ति हैं ,कभी गुस्सा नही करता ,मीरा पर , उसका खूब ध्यान रखता हैं , रात में खाने के समय भी धीरज चुप - चुप , ना किसी बात का जवाब दिया , और ना ही खाने की तारीफ़ की , अब मीरा सोचने पर मजबूर ,कि कैसे मनाया जायें , साहब को , आज तो भई बड़े गुस्से में नजर आ रहे हैं , अब से पहले तो कभी इतना गुस्सा नही किया , खैर ...देखते हैं क्या कर सकते हैं , 🙍‍♀️ सुनों जी बहुत गुस्सा हो क्या , 🙎‍...

माँ की पीड़ा

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बेटी ,बहन ,पत्नी ,बहू हर  रिश्ता     वो निभाती है, पर मां बनकर ही हर नारी संपूर्ण      कहलाती है।   पिता ,पति ,भाई -बहनों पर वारी -वारी जाती है,  पर जीवन की सारी ममता औलाद पर ही लुटाती है। सारे कांटे चुन-चुन कर वो  फूलों की राह बनाती है,  अपने सुख- दुख बिसरा कर वो उनकी मुस्कान सजाती है। उनके सपनों को वो अपने जीवन का लक्ष्य बनाती है,  अपनी खुशियों की कीमत पर उनकी खुशियां वो लाती है। मां के चरणों में स्वर्ग बसे ये सदियों से सुनते आए है, मां की महिमा के सभी है बरसों से सुनते आए। पर भर जाती हैं आंखें जब सच्चाई सामने आती है,  जब वृद्ध आश्रम की चौखट पर दुखिभर की  मातायेआती है। क्या यही मोल है ममता का ,कोई पूछे उन संतानों से, माता का कलेजा चीर दिया है जिसने अपने तानों से। नहीं बढ़ा है जीवन में जिसकी मां उसके साथ नहीं, वह सुखी नहीं रह सकता है  गर सर पर मां का हाथ नहीं। माँ के तप त्याग-तपस्या का कोई कर्ज़ उतार ना पाया है, उसे धन दौलत की चाह नहीं जिसने सर्वस्व लुटाया है। तो मातृ दिवस पर हर माता  अब ये याद द...

खत

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जो बात कहनी थी उनसे,  कह नही पाई,  जो सच बताना था उनको,  बता नहीं पाई,  थे पास मे ही  दोनों,  पर खत उनको मैं,  दे ना पाई ।

कस्तूरी दादी और बंटबारे का दंश

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कस्तूरी दादी रोज शाम को बच्चों की तरह पार्क में जाने के लिए घड़ी देखती रहती ,और इधर मैं भी रोज पार्क में जाने के लिए मचलते बच्चों को लेकर पहुंच जाती ,बच्चे भी बंद घरों की बंदिशों से निकल, अपने हम उम्र बच्चों को पाकर बहुत खुश होते । पार्क में खिले चारों तरफ पेड़ पौधे भी इन बच्चों का साथ  पाने के लिए शाम का इंतजार करते । तरह तरह के खेल बच्चे अपने दिमाग से ही तैयार कर लेते और खेल खेल कर आनंदित होते । कस्तूरी दादी अभी नई नई आई थी और साथ में कितना कुछ भरा पड़ा था ,उनके पास कहने के लिए ,पर चुप रहती थी ,पर उनकी आंखें बहुत कुछ बोलना चाहती थी । अच्छा लगने लगा ,मुझे उनके पास बैठने में और फिर उनकी यादों की परतें खुलने लगी । उनकी यादों को मैं स्तब्ध हो, मौन होकर सुनती रहती और महसूस करती ,कि उनकी जिंदगी में कितना मर्म ,दर्द ,पीड़ा  होने पर भी आंखों में शांति कैसे संभव है ? इतनी पीड़ा पीने वाली दादी जिंदगी के आखरी पडाव में पहुंचने पर भी जिंदगी के हर दर्द को कैसे स्वीकारती गई ।कभी किसी दर्द से आक्रांत नहीं ,कभी किसी पीड़ा का विरोध नहीं , कस्तूरी दादी ने बंटवारे का दंश झेला है ,तेरह स...

उस किनारे से

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 जब भी जाती हूँ सैर करने मैं उस पनघट के किनारे लगता हैं मुझे कोई देख रहा हो खड़े उस किनारे से कभी अजनबी तो कभी वो चेहरा पहचानी सी लगती हैं लगता हैं मुझे कोई देख रहा हो खड़े उस किनारे से जाने क्या हैं दिल में उसके जो रोज़ वहाँ चले आता हैं पता नहीं किस इरादे से निहारता हैं मुझे उस किनारे से कभी कभी सोचती हूँ पूछ ही लू मैं उस अजनबी से की क्यूँ आते हो यहाँ और क्या देखते हो उस किनारे से कुछ कदम बढ़ती हूँ उसके ओर फिर पीछे हट जाती हूँ डर लगता हैं कोई देख ना ले हमें साथ में उस किनारे से कभी कभी लगता हैं की कही वो मेरी दिल का वहम तो नहीं जो दिल मान बैठा हैं कोई अपना सा जो खड़ा हैं उस किनारे पे दुनिया तो हैं ही एक भूलभुलैया जो फ़साने भी हकीकत सा लगता हैं लगता हैं भरम हैं मेरे पागल दिल का जो इसे लगता हैं कोई देख रहा हो नैना खड़े उस किनारे से.....!! 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 नैना...✍️✍️❤️

ये मरना भी नही आसान औरत के लिए (हास्य)

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एक दिन देखा सपना मैने कि कल मै मर जाऊंगी! चिन्ता मे कट गई रात सारी कि गन्दे कपडे तो मशीन मे पडे हुए हैं धुले बिना, मलाई का कटोरा भी भरा पड़ा है,फ्रिज मे ढके बिना! आएंगे लोग मातम मनाने, तो चार नाम मै खाऊंगी! बर्तन का ढेर लगा है रसोई मे,कमरा भी सारा अस्त व्यस्त है, सोच सोच कर मन मेरा भीतर से बहुत त्रस्त है! साडियां सारी तह लगाकर प्यार से सहलाऊंगी,  अभी कर दो मरना कैंसिल,काम निपटा कर सारा परसो को मर जाऊंगी!                                    श्वेता अरोडा

लापरवाही

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  संजोग अपनी पत्नी का इलाज बड़े अस्पताल में करा रहा है। छोटे और सरकारी अस्पतालों में लापरवाही के किस्से सुन सुन कर उसका मन भर गया। इसलिये अपनी सामर्थ्य से भी बढकर इस बड़े अस्पताल में वह इलाज करा रहा है।    यहाॅ इलाज में कोई कौताही नहीं बरती जाती। नर्स सुबह सुबह पिछले दिन के खर्च की रसीद दे देती। संजोग भुगतान कर देता। भुगतान की रसीद नर्स को दिखाता। फिर पूरे दिन व राम की जिम्मेदारी डाक्टर व नर्सों की थी। न कहीं दवाई के लिये भागना और न कोई अन्य चिकचिक।    " आज मैडम को इमर्जेंसी इंजेक्शन लगाना है। आप यह बिल जमा करा कर आयें।" नर्स ने रोज की तरह पर्ची पकड़ा दी।  "  सर आपके एटीएम की लिमिट कम है। कल ज्यादा मंहगी दवाइयां दी गयी थीं। "   केश कांउटर पर मौजूद स्टाफ ने स्थिति साफ कर दी। संजोग चेक बुक निकालने लगा।  ". एक्च्यूम मी सर ।चेक  नहीं। दरअसल बहुत से चेक बाउंस हो गये थे। अस्पताल ने यही नियम बना दिया है। मैं तो यहाँ नौकर हूं। अस्पताल के हिसाब से काम करना है। " " फिर बिल कैसे जमा करूं।"    " कोई बात नहीं सर। आप हमारे खाते में आर टी जी ...

खेवैया

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तुमसा लगा कोई प्यारा नहीं,  तुमसे बढ़कर कोई सहारा नहीं। खुशी हो या ग़म तू ही है संग,  तेरे बिन ज़िंदगी का गुजारा नहीं। कहे तुम्हें शशि शशांक औघड़दानी,  ब्रह्मांड में तुमसा कोई न्यारा नहीं।  तेरे चरणों को छोड़ कहीं और जाऊँ,  ऐसा कोई ठिकाना अब गँवारा नहीं।  मझधार में फँसी नाव के"झा"खेवैया तुम,  तुम ना हो तो,मिले नाव को किनारा नहीं। आरती झा(स्वरचित व मौलिक)  दिल्ली

प्रख्यात कहानीकार,उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर शत शत नमन विशेष

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*************************************** श्री मुंशी प्रेमचंद्र जी प्रतिभा से थे बड़े विराट, प्रख्यात कहानीकार और थे उपन्यास सम्राट। माँ थी आनंदी देवी पिता मुंशी अजायब राय, बचपन में मुंशी जी का एक नाम नायब राय। धनपत राय नाम है असली हैं कायस्थ सम्राट, दुबले पतले कद काठी वाले तेजस्वी ललाट। पवित्र काशी की धरती वाराणसी के लमही में, जन्म हुआ था 31 जुलाई 1880को लमही में। अथाह ज्ञान से भरे हुए लेखन विद्या के भंडारी, सीधे साधे निर्मल मन के शिक्षा से थे संस्कारी। शुरू-2 में हंस पत्रिका का करते रहे ये संपादन, किन्तु बाद में एक नहीं कई कृतियों का लेखन। गोदान,गबन,निर्मला,सेवासदन,प्रेमाश्रम,रंगभूमि, हैं सभी उपन्यास कायाकल्प,प्रतिज्ञा व कर्मभूमि। बड़े घर की बेटी,दो बैलों की कथा व पूस की रात, पञ्च परमेश्वर,बूढ़ी काकी,कफ़न कहानियाँ खास। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद जिनका साहित्य विशेष,  अनमेल विवाह,छुआछूत,दहेज़,जाति भेद विशेष। पराधीनता,विधवा विवाह,एवं स्त्री पुरुष समानता, लगान,आधुनिकता जैसेबिंदु का चित्रण प्रधानता। प्रेमचंद्र की अधिक कहानी हिंदी उर्दू में प्रकाशित, जागरण पत्र व हंस पत्रिका स्वयं किये प्रकाशित। ...

"सावन की बूंदे"

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                           ये सावन की बूंदे, ये रिमझिम सा पानी, वो फिर याद आई, पुरानी कहानी, ये सावन की बूंदें..... ये मेघों की टोली, घिर आंई घटाएं कारी, वो फिर आई, पवन पुरवा सुहानी, ये सावन की बूंदें..... ये सावन और, भादौं का मिलना बाकी, वो फ़िर आई, ऋतु सुहानी सुहानी, ये सावन की बूंदे..... ये गिरी शिखरों से, झरनों का गिरना, वो फिर कल कल करती, नदिया बहकी, ये सावन की बूंदें..... ये बागों में, भंवरों का आना, वो फिर फ़िजा में,फूलों की खुशबू महकी, ये सावन की बूंदे..... ये बारिश में, गौरी का दिल धड़कना, वो भीगी लटों से,जो बूंदों का फिसलना, ये सावन की बूंदे..... बिन सजना के, ये कैसी है बारिश, विरहन को सताये, ये बारिश सुहानी, ये सावन की बूंदें..... आए न साजन, सूनी पड़ी दुअरिया, विरहा की अग्नि से, जल रही सुहागन, ये सावन की बूंदें..... बिन साजन के, कैसे करुं मैं श्रंगार, आऐं मेरे साजन, सखि आएं मेरे साजन, ये सावन की बूंदें..... ये सावन की बूंदें, ये रिमझिम सा पानी, वो फिर याद आई, पुरानी कहानी, ये सावन की बूंदें, ये रिमझिम सा पा...

दान

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देवों और दानवों में युद्ध छोड़ा था देवता। देवताल लगातार पराजित हो रहे थे। व्रत्रासुर ने तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा रखी थी। सभी लोग परेशान थे ब्रह्मा जी के पास गए और इस विपत्ति का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने कहा दधीचि ऋषि जो तपस्या में रत हैं। उनकी अस्थियों से जो अस्त्र बनेगा उससे ही वृत्रासुर का बध होगा । इंद्र ब्राह्मण का वेश बनाकर दधीचि ऋषि किसके पास पहुंचे और बोला ' मुझे आपसे दान चाहिए पहले आप वचन दीजिए कि आप मुझे वह दान देंगे।" दधीचि ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा आइए इंद्र मैं जानता हूं आप मेरी हड्डियों को प्राप्त करने के लिए आए हैं जो तपस्या से वज्र के समान हो गई हैं किंतु आप सोचिए आपको हड्डी देने का मतलब है अपना जीवन त्याग देना। किंतु आप जाइए एक गाय ले आइए तब तक मैं अपने प्राणों को ब्रह्मांड में स्थित कर लेता हूं और आप मेरे पूरे शरीर पर नमक लगाकर गाय से चट वाली जिएगा और इस प्रकार आपको मेरी अस्थियां प्राप्त हो जाएंगी। इंद्र ने दधीचि ऋषि के कहे अनुसार वैसे ही किया और अस्थियां प्राप्त की उन अस्थियों से विश्वकर्मा ने वज्र बनाया जिससे वृत्रासुर का वध हुआ ।इसीलिए कहा गया है सम...

कागज के जहाज

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बहुत बनाते थे बचपन में आड़े तिरछे रंग बिरंगे जहाज, कभी  क्लाश में तो कभी घर के आंगन में उड़ाते थे जहाज। मासूमियत भरे मन में अनेकों कल्पनाएं करते थे, कभी जमीं पर चलते थे तो कभी आसमाँ की सैर करते थे। बीत गया बचपन उम्र का एक नया पड़ाव आया, इश्क की चाहत से मेरे मन ने संगीत का स्वर गुनगुनाया। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पे लफ़्जों ने कह न पाया, वहाँ पर फिर मैंने इक कागज का जहाज उड़ाया। ले गया है वो मेरा सन्देश प्रियतम के पास, इकरार हुआ फिर नैनों में पूरी हुई आस। कल्पनाओं के जहाज में होकर सवार चल पड़ी इश्क की गली, अपने  सपनों को करने पूरा मैं उन्मुक्त  गगन में उड़ चली। कागज के उन रंगबिरंगे जहाजों ने मुझे मेरी तकदीर से मिलाया, कितना खूबसूरत है ये कल्पनाओं का आसमाँ मुझे दिखलाया।। शीला द्विवेदी "अक्षरा"

मासूम

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बता बेटा वो रामनाथ तुझसे क्या कह रहा था? मम्मी अंकल ने कहा -"लवी तेरी मम्मी तुझे बुला रही हैं बेटा।" "लेकिन अंकल मेरी माँ तो मार्किट गई है, वह मेरे लिए खिलौने लेकर आएगी।" "हाँ बेटा वह मार्किट ही गई थीं लेकिन अभी वे सुनीता आँटी के घर बैठी  हैं ।सुनीता आँटी पिज़्ज़ा बना रही हैं इसलिए तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें भी पिज़्ज़ा खाने के लिये बुलाया है।" "लेकिन अंकल रवि भैया तो वही पर होंगे वे क्यों नही आये मुझे बुलाने।" "बेटा मैं इधर ही आ रहा था इसलिए उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें लेकर आ जाऊँ।" "ठीक है अंकल मैं अभी अच्छे कपड़े पहनकर आती हूँ।" "बेटा दरवाजा खोल दो जबतक तुम तैयार होगी मैं यहीं बाहर खड़ा रहूँगा तो मेरे पैर दुख जाएंगे।" लवी दरवाजा खोलने ही जा रही थी कि अचानक उसके दिमाग में अपनी मम्मी की कही बात याद आ गई। मम्मी कहती हैं-"बेटा जिन्हें तुम अच्छी तरह से नहीं जानती ,मेरे घर से बाहर जाने पर यदि कोई आये तो दरवाजा मत खोलना।"  तभी उसे मम्मी की कही हुई एक बात और याद आ गई कि घर के लोगों के अलावा किसी के साथ अकेले ...

बरसात की वो रात अंतिम भाग

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अब  पहले जैसा श्याम नहीं था श्याम में बहुत परिवर्तन आ गए  थे वह बिंदु के आसपास ही मंडराया रहा करता था । मां और ननद जब कोई काम के लिए बिंदु को बोलती तो वह ज्यादातर मना कर देता। मां उस में आए परिवर्तन को देख कर कहती  ये तो जोरू का गुलाम हो चुका है । बिंदु खूब खुश थी  कुछ ही महीनों बाद बिंदु गर्भवती हो गई श्याम उसको हमेशा खुश रखने की कोशिश करता ।उसकी सास भी उससे घर का कोई काम नहीं कराती। सातवें महीने बिंदू के अंदर पल रहे बच्चे के लिए सीमंतोंन्नायन की पूजा (, बच्चे में अच्छे संस्कार ,गुण आए इसलिए) बिंदु की सास ने रखी। श्याम दो दिन के लिए शहर गया था,लौट कर आया तो उसके साथ में एक बुजुर्ग महिला भी थी,उसने  देखा घर में चहल पहल थी। उसने अपनी बहन राधा से पूछा _क्या बात है ? उसने कहा भैया ,तुम्हारे बच्चे के लिए पूजा रखी है। वो गुस्से से आग बबूला हो गया।क्या जरूरत थी इस पूजा की। बिंदु ने उसे समझाया कि ये हमारे बच्चे के लिए अच्छा है। वो बुजुर्ग महिला बिंदु के पेट की तरफ  अजीब नज़रों से घूर रही थी। खूब खुश ह पूजा की तैयारियों में बिंदु की सास ने ध्यान नहीं दिया उ...

कहानी आंसुओं की भाग १०

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   पहाड़ों की तलहटी में बसे एक गांव में एक लड़का पिछले आठ महीनों से रहा रहा है। गांव के गड़रियों को वह मृतपाय अवस्था में मिला था। वैसे कपड़ों से वह आर्मी का जवान लग रहा था। पर भोले भाले गांव बाले थोड़ा डरपोक भी थे। उसे आर्मी के कैंप में न ले जाकर अपने साथ ले गये।   कितने महीने उसकी देखभाल की। उसका इलाज किया। गांव का ही एक वैद्य उसकी चिकित्सा करता था। कई दिनों बाद उसे होश आया। पर चोट के कारण वह अपनी याददाश्त खो चुका था। पैरों में एक लचक जन्म ले चुकी थी।    गांव क्या था। बस डेढ दो सौ लोगों का एक समूह। मुश्किल हालातों में रहने के अभ्यासी। सच कहें तो खानाबदोश। जाड़ों में जब वर्फ पड़ने लगती तो पहाड़ों से बहुत नीचे उतर आते। मवेशी पालना, जंगली पेड़ों से फल तोड़ कर लाना, दुर्लभ औषधियाँ ढूंढना, यही इन लोगों की जीविका थी। भले ही सभ्य समाज इन्हें जंगली समझे पर इनके ज्ञान को चुनौती नहीं दी जा सकती है । एक असाध्य युवक इन्हीं जंगली समझे जाते लोगों के औषधि ज्ञान से आज स्वस्थ है। यही इनके चिकित्सकीय कुशलता का प्रमाण है।    दुश्यंत होश में आ गया और नहीं भी। उसे कुछ याद...

पुनर्विवाह भाग - १२

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दुल्हन बनी स्वाति खुद को आईने में देख रही थी तभी नन्हे शिवांश ने आकर स्वाति को कसकर पकड़ लिया । शिवांश - मम्मा आज तो आप बहुत सुंदर लग रहे हो किसी राजकुमारी की तरह मम्मा आप हमेशा ऐसे ही तैयार क्यों नहीं होते हो ।  स्वाति ने मुस्कुराते हुए कहा - बेटा अब से मम्मा ऐसे ही तैयार होंगी । शिवांश - सच मम्मा !" बिल्कुल सच " स्वाति ने कहा ! तभी बाहर से आवाजें आने लगी । स्वाति के पिताजी उसकी मां को कह रहे थे । बारात पहुंच गई है , तुम जाओ और बारात की स्वागत की तैयारी करो । स्वाति की मौसी दौड़ते हुए आती है ‌। दीदी जल्दी कीजिए । बारात आ गई है , चलिए जल्दी कीजिए ।  स्वाति की मां - पिताजी और मौसी बाकि रिश्तेदारों के साथ बारात का स्वागत करने पहुंची । बारात स्वागत करने के बाद रविश को स्टेज पर बिठाया गया । रविश , सौरभ और पीहू और बाकि के घरवाले थे । शादी में ज्यादातर लड़के वाले ही नजर आ रहे थे । क्योंकि ये स्वाति की दूसरी शादी है ।  इसलिए स्वाति के पापा ने गिने चुने लोगों को ही बुलाया था । स्वाति बिना किसी ताम झाम के सिंपल तरीके से शादी करना चाहती थी लेकिन रवीश के घरवाले नहीं माने क्य...

मासूम सी वो लड़की

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मासूम सी वो लड़की थी मासूमियत बातों से झलकती थी नही दिया धोखा कभी किसी को शायद इसीलिए खुशियां उसके आँगन बरसती थी अकेली बैठी थी एक बार वो खोई अपने सपनों के राजकुमार  के ख्यालों में तभी पड़ी उस पर एक शिकारी की नजर उसके खराब हुई नीयत हर पल उसने भेष था उसके राजकुमार का बनाया रूप ऐसा जिसे देख लड़की का मन उस पर आया नही जानती थी वो इंसान नही भेड़िया है वो समझ उसे अपना गई उससे  लिपट उस शिकारी ने भी क्या जाल बिछाया उस लड़की को प्यार की बातों में उलझाया वो नासमझ थी गई उसके जाल में फंस कुछ पल के लिए गई वो उसके रँग में रंग तभी दूर से देखा तो सामने राजकुमार  को पाया अभी समझी वो शिकारी  भेष बदलकर आया अभी सोचे कैसे वो निकलेगी यहाँ से दी उसने आवाज अपनी सखी को वहाँ से उसकी सखी ने भी फिर एक जाल बिछाया अपनी सुंदरता से उस शिकारी को रिझाया वो भूल उस मासूम को गया दूजी के पास खुद अपने ही जाल में फंसता वो  गया। इस तरह से एक सखी ने अपनी सखी को बचाया उसकी मासूमियत को उसने शिकंजे से निकलवाया आज हो गई आजाद वो मासूम सी लड़की अभी उड़ती फिरे जहाँ में नही शिकारी का है डर मेरी बात गौर से सुनना...

चलो लौट चलें !

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""""""""""""""""""""" पलते थे रिश्ते कभी जिसकी छांव में , चलो वही कच्चा घर बनाए गांव में । फिर से गुजारें शाम, रेतीले नदी के किनारे । मन को भाते थे कितना, वो पहाड़ी नजारे । फिर गोबर से लिपें , आंगन औसारा , तुलसी का पिंडा, फूलों का चौबारा । फिर से नंगे पांव चलें, मिट्टी लगे पांव में । पलते थे रिश्ते कभी जिस की छांव में । चलो वही कच्चा घर बनाए गांव में । वही पलाश का जंगल हो, सिनवार की झुरमुट झाड़ी , गुलमोहर के फूल खिले हों ,सुबह कि नीरा ताड़ी । छोटे-छोटे बेर हों जंगली, जामुन और करौंदा फिर से बनाएं मिर्च मसाले वाला आम का सोंदा । सखुआ के पत्ते में खाएं, मिल अगरी की छांव में । पलते थे रिश्ते कभी जिसकी छांव में । चलो वही कच्चा घर बनाए गांव में । पिंकी मिश्रा भागलपुर बिहार ।

हो रहे विदा

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हो रहे  विदा, दे रहे विदाई हमे,  जी भर कर देख रहे मेरे अपने मुझे,  हो जाएगे अजनबी अपनो से ही,  मां का दुलार, पिता का प्यार, भाई बहनों की तकरार,  छुट रहा है मेरा ही घर _बार,  सोच सोच के हो रही घबराहट हमे खाली हो जाएगा कमरा  मेरा,  बिछड़ जाएगी सखियाँ सारी,  इक प्रित छुट रहा तो इक प्रित  मिल रहा,  जा रहे बाबूल का घर छोड़ के सोच के दिल घबरा रहा,  कैसे है ये रिती रिवाज कैसे है ये चोचले,  किसने यह रित बनाई पुछ रहा है दिल ये रब से,  कैसे रहेगी  वहाँ सब यही सोच रहे,    क्योंकी  मिल रही बाबा के अंगना से रिहाई हमें।  हो रहे विदा, दे रहे विदाई हमें।

जीने के लिए रोटी कपड़ा मकान काफ़ी है

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**************************************** ज़िंदादिली से दोस्तों मेहनत की रोटी खाइये। पराठा खाना है तो फिर तेल भी तो  लगाइये। हाला की इस जहां में तेल लगाने वाले भी  हैं। जिनको पसंद है तेल लगवाना वो वाले भी हैं। स्वाभिमान वाले बहुत ही कम यहाँ दिखते हैं। पर कतरते वाले ही अब तो ज्यादा दिखते हैं। गॉड फादर भी कोई जल्दी अब नहीं मिलता। मिलता भी है तो  खोट दिल  में लिए मिलता। इज्जत की रोटी तो मेहनत के पसीने से मिले। दाल रोटी मिले या भले ये सूखी रोटी ही मिले। पेट ही तो केवल सभी परिवार को ये भरना है। ज़िंदा रहने के लिए कुछ भी न ग़लत करना है। कोरोना में सब ने कितना ये बुरा हाल देखा है। अमीरों को भी वायरस से हुआ बेहाल देखा है। ग़रीबों की भी जानें गईं हैं वैश्विक महामारी में। पैसे वाले भी बचा ना पाये हैं जानें  बीमारी में। फिर क्यों तेल लगा कर के धन कमाया जाये। इज्जत के मिले जो  वही सिर्फ कमाया जाये। बेइमानी से लाख तिज़ोरी भले ही भरले कोई। फल जो मिलता है बुरे का तो ना संभले कोई। आहें बहुत लगती हैं अंतिम वक्त भी है आता। सब कुछ धरा यहीं का यहीं ये रहभी है जाता। जीने के लिए काफी ...

धर्म की पुस्तक

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  ईश्वर ने धर्म बनाया। अनेकों अच्छी अच्छी बातों को लिखकर बड़ी पुस्तक बना दी। विश्वास था कि इस पुस्तक को पढकर मनुष्य इंसानियत की राह पर चलेंगे। जीवन में खुशियां लायेंगे। मानवता का पाठ पढ़ायेंगे।   बहुत समय हो गया। ईश्वर भी निश्चित थे। आखिर धर्म की पुस्तक लिख दी थी। एक दिन यों ही संसार देखने चल दिये।   कुछ अलग दिखाई दिया। चारों तरफ मारकाट मची है। एक दूसरे को नीचा दिखाया जा रहा है। प्रदर्शनों का बोलबाला है। इंसान खुद व खुद बड़ा और छोटा हो गया है।बड़े छोटों पर अत्याचार कर रहे हैं। स्त्रियों का निरादर हो रहा है।    बताया जा रहा था कि यही वह धर्म है जो खुद ईश्वर ने लिखा है। और ईश्वर लिखित वह धर्म की पुस्तक रद्दी के ढेर में पड़ी थी। जिसकी तरफ कोई देख भी नहीं रहा था।  दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'

किसी एक की बात क्या करें

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🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 किसी एक की क्या बात करें हम इस जहाँ में हर किसी के दिल में कयी राज़ छुपे मिले हैं कुछ बोलना भी सज़ा हो जैसे सबके अपने होठों को कुछ ऐसे खामोश कर बैठे हैं कैसे कोई ख़ुश होजाते हैं किसी के जज़्बातो से खेल कर ज़रा भी आह नहीं होती हैं इन्हे जाने किस मिट्टी से बने हुए होते हैं सहने वाले दिल भी कमाल के हैं यहाँ के  अपने दर्द को भी दिल में ही कही दबा बैठे हैं मासूम दिल कभी दर्द बयां नहीं करता कही कोई अपनों में से दूर ना होजाए बांधे रखता हैं डोर रिस्तो के बड़े प्यार से लेकिन कयी दिलो ने नफरद के जाल बुने बैठे होते हैं  बहुत ही मुश्किल होता हैं पढ़ पाना ज़िन्दगी में  किसी के हँसती आँखों में छुपी नमी को शायद ही कोई दें पाये वो खुशी ऊन सुनी आँखों को जो बेरंग सी अपनी ज़िन्दगी लिए नैना  तन्हाई को ही अपनी हकीकत मान बैठे हैं किसी एक की क्या बात करें हम  इस जहाँ में हर किसी के दिल में कयी राज़ छुपे मिले हैं 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 नैना....✍️✍️✍️

"पैसों के बदले"

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------------------ " लहंगा कितने का है?' मौसिया सास ने बड़ी बहू से दुल्हन बनी उसकी नन्द की ओर इशारा करते हुए पूछा।      "यही कोई दस हजार के लगभग होगा.. उसने निराशा के भाव से बताया । उसकी ननद और सास इस शादी से खुश नहीं लग रही थी      "ओ!!! .. बहुत सुंदर है ... चलो आज शादी पड़ ही गई .. पिता के गुजर जाने के बाद तुमलोगो ने बखूबी जिम्मेदारी उठाई ... दोनों भाइयों ने दिन रात एक कर दिया इसके पढ़ाई लिखाई और शादी के लिए..."मौसी ने बड़ी बहू की मनोभावों को पढ़ते हुए कहा।      " हां मौसी ! बिन बाप की बेटी इनकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी आज ये लोग उस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे...पिता की छत्रछाया में बेटी  हो तो लोगो को कम खटकती है पर भाई सब कैसे नईया पार लगाएंगे ये देखने के लिए लोग बेचैन ही रहते हैं...।"  बगल में बैठ कर जयमाल प्रोग्राम देखते हुए उसकी मां की उम्र की चचेरी नन्द ने मौसी का समर्थन किया।       मौसी ने लंबी स्वांस भरी  " भगवान की दया से दोनों भाई उच्च पद पे हैं जिसकी वजह से इतनी धूमधाम से ब्याह संभव हो पाया ...

रिश्ते

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कुछ जाने से अनजाने से  कुछ रिश्ते नए पुराने से।।।।।।  कुछ मन को नहीं भाते हैं  कुछ प्रीत नहीं निभाते हैं  लगते हैं बड़े दीवाने से  कुछ रिश्ते नए पुराने से ।।।।।। कुछ खून से रिश्ते जुड़ते हैं  कुछ बिना खून के बढ़ते हैं,  कभी लगते सब अपने से हैं , कभी लगते हैं अनजाने से।  कुछ रिश्ते नये पुराने से।।।।।।।  रिश्तो के उलझे जंगल में  मन की नदिया के कल कल में खुशियां सी छा जाते हैं  जब दोस्त मिले पुराने से।  कुछ रिश्ते नए पुराने से ।।।।।। जब मन को मन पहचानेगा  एक दूजे का दुख जानेगा,  कभी गैर भी अपने हो जाते  कभी अपने लगे बेगाने से।  कुछ रिश्ते नए पुराने से।।।।।।।  स्वरचित सीमा कौशल  यमुनानगर हरियाणा

" कोरोना वैक्सीन का भूत "

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भाग :- १ 🙎‍♂️ सुनो ..मीरा  कल वैक्सिनेशन  हैं ,समय से तैयार हो जाना ,फटाफट लगवा आएंगे, फिर मुझें ऑफिस भी जाना हैं , धीरज  ये बोल कर सोने चले गये ,  🙆‍♀️ अब बची मीरा , सिर पकड़ कर बैठ गई ,   वैक्सीन , अरे बाप रे , कैसे लगवाऊंगी , मुझें नही लगवानी , कोई वैक्सीन , सोने गई ,पर नींद नही आई ,रात भर करवट बदलती रही , सुबह उठी , वही रोज का गृह कार्य  , उसी में लग गई , 🙎‍♂️ धीरज सोकर उठें , उठते ही बोले, अरे, अब तक तैयार नहीं हुई ,जल्दी करो ,वरना फालतू में देर हो जायेगी , 🙍‍♀️ देखिये ,चाहें कुछ भी हो जाये ,वैक्सीन तो नही लगवाऊंगी , 🙍‍♂️ क्या , अब ये क्या बचपना हैं , जल्दी करों यार , मुझें ऑफिस भी जाना हैं , 🙍‍♀️ बिल्कुल नही , किसी कीमत पर भी  नही , आप ऑफिस जायें , 🙎‍♂️ ऐसे मत बोलों , कृपया ,चलों , इसमें तुम्हारा ही फ़ायदा हैं , घर में और लोग भी हैं ,उनके बारे में तो सोचों , 🙍‍♀️  कौन सा फ़ायदा ,मारना चाहते हो ,वैक्सीन के बहाने से , मैं नही जाऊँगी ,मुझें नही मरना , 🙎‍♂️ वैक्सीन से कौन मरता है ,सब लोग लगवा रहें हैं ,किसी को कुछ हुआ ...

पुनर्विवाह भाग - ११

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रचना - उनके जाते ही रविश के माता-पिता ने हल्दी की रस्म को कुछ देर के लिए टाल कर स्वाति के माता-पिता अपने समधी और रविश को बुलाकर बात करने लगे । सबसे पहले उन्होंने रविश को स्वाति के बारे में पूछा ! जिसे रविश ने साफ शब्दों में कह दिया कि वो स्वाति को पसंद करता है और उससे शादी करना चाहता है । स्वाति के मां पिताजी रविश की बात सुनकर की वो स्वाति से शादी करना चाहता है । स्वाति की शादी का पूरा सच उन्हें बता दिया और रविश से पूछा - क्या अब भी तुम स्वाति से शादी करना चाहते हो ? रविश के हां कहते ही स्वाति के मां - पिताजी खुश होकर ।  स्वाति के पिताजी - इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है हमारे लिए । हमें इस शादी से कोई आपत्ति नहीं है । बस हमें एक बार स्वाति से इस बारे में पूछना पड़ेगा । क्योंकि वो एक बार दर्द से गुजर चुकी हैं । पता नहीं वो शादी के लिए मानेगी या नहीं !  रविश - अंकल , आप बिल्कुल फ़िक्र ना करें । सब एक जैसे नहीं होते और मैं आपसे वादा करता हूं । स्वाति की आंख में एक आंसू भी नहीं आने दूंगा ।  रविश की बातें सुनकर उनके माता-पिता ने कहा ! अगर रविश स्वाति से शादी ...

स्पंदन राजकहानी,"

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बेखबर सी आरोही, सुनसान सड़क पर दौडी जा रही थी! उसनें जो कुछ देखा क्या वो सही था!  या फिर उसके दिमाग ने उसे छला, बहुत सी बार कुछ ऐसा घटित हो जाता है! जो हकीकत मे होता नही, अचानक एक रोशनी कौधी, उसके कदम रूक गये!  उसने इधर उधर देखा सुनसान सडक स्याह रात, कुछ नजर नही आ रहा था! अखिर वो भाग क्यू रही है और किससे, उसने दिमाग पर जोर दिया कुछ याद न आया, कुछ दिन पहले की ही बात थी, जब वो आनंद के साथ उस खडहर नुमा महल को देखने गयी थी,!  फिर से बिजली कौंधी, आरोही ने ऊपर आसमान की ओर देखा बदल घुमड रहे थे, जैसे अभी फट जाऐगें,  दृश्य कुछ डरावना सा हो रहा था!  अब शरीर में भी कंपन हो रही थी, अचानक उसे महसूस हुआ दो हाथों ने उसे पकडा, वो जोर से चीखी, आंनद,, क्या क्या हुआ आरोही, दूर से आंनद की आवाज़ सुनायी दी,  आरोही क्या हुआ, उठो उठो,  आरोही ने धीरे से आंखे खोली, वो अपने पंलग पर थी! सामने भयभीत सा आनंद खडा था, क्या हुआ आरोही, कोई बुरा सपना देखा क्या, शायद हा मे गर्दन हिलायी आरोही ने,  वो आनंद को कैसे बताये आजकल उसके साथ क्या हो रहा है, वो दोहरी जिदंगी जी रही है!  आर...

खुशियों की बचत

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एक गुल्लक खरीदी मैं,     रखती हूं उसे अपने पास हर वक्त      क्योंकि करती हूं मैं खुशियों की बचत .......☺ रोज डालती हूं इस में, खुशी का एक सिक्का गुल्लक से ये वादा किया मैंने पक्का......☺                      जब कभी जिंदगी गम,                         के कर्ज में होगी                      खुशियों से भरी                    मेरी गुल्लक काम आएगी.....☺ तोड़ दूंगी उस दिन, मैं गुल्लक को और दिल खोल के खुशियाँ लुटा आऊंगी.... ☺ऋचा✍🙏                      

डायरी

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सखी सहेली अलबेली ज़िंदगी बनती है पहेली सन्नाटों को है चीरती तन्हाइयों को समेटती परतों को खोलती डायरी लबों पर होती है मुस्कान मन में होता अंतर्द्वंद का भान  वक़्त की स्याही सुलगते शब्द खुशी ग़म का करते हुए आलिंगन  जीवन को अपना बना जाती डायरी  बीतते दिन रात जब कहते कहानी  जैसे पथ पर फैल गई हो निशानी  उलझते रहे जाने किस कशमकश में  मुखौटे को उतार मुड़ कर देखा पीछे हर ताले की कुंजी सी दिखी है डायरी  किस तलाश में भटक रहे थे आजतलक  मुक्कमल हुई हर तलाश खुद पर आकर  तमाशाई भीड़ छुपी थी जाने कहाँ कहाँ  मन्द मुस्कान ने यादों की परचम जो हटाया  हकीकत से रूबरू कराती दिखी डायरी  आरती झा(स्वरचित व मौलिक)  दिल्ली  सर्वाधिकार सुरक्षित©®